चंद्रशेखर तुम आजाद थे - by Abhilasha "Abha"
चंद्रशेखर, नाम तुम्हारा आज़ाद,
कर्म से भी तुम आज़ाद रहोगे,
तुम बरसों बरस तक,
भारत की हर जवानी में बहोगे।
मौत से आंखें जो चार करता था,
आज़ाद तुम्हारे गरम खून पर,
भारत का हर बच्चा बच्चा,
नाज़ करता था।
गांधी की चाहत थी आजादी,
जिद थी तुम्हें पाने की आज़ादी,
अंग्रेजों ने ना देनी चाही आज़ादी,
पर तुम्हारे जेहन में बसी थी आज़ादी।
बापू थे नरम दल के नेता,
तुम तो थे गरम दल के प्रणेता।
चंद्रशेखर का खून गरम था,
जानता नहीं वो माफी मांगना,
ना उसके होंठों पर थे,
रोना और गिड़गिड़ाना।
कर रहा था चंद्रशेखर,
आज़ादी पाने के लिए सभा,
किसी गद्दार ने उसी समय,
कर दिया देश से दगा।
गोरों को जाकर उसने,
सभा की बात बताई,
कैसा निर्लज्ज भारतवासी था,
समय देगा उसके गद्दारी की दुहाई।
गोरी सेना ने घेर लिया,
कर दी गोलियों की बौछार,
सारे साथियों को रोककर,
आज़ाद अकेले ही करने लगा वार।
अब तो एक ही गोली,
बची थी आज़ाद के बंदूक में,
सोचा कुछ भी नहीं,
अपने जीवन के पक्ष में।
सटा ली बंदूक अपनी कनपटी पर,
किया भारत मां का घोष,
मैं आज़ाद हूं, आज़ाद ही रहूंगा,
यही है मेरा दोष।
उस निर्भय वीर ने दाग ली,
अपनी ही बंदूक से गोली,
हे भारत माता, देख लो,
खेल ली एक मां के लाल ने,
आज अपने ही खून की होली।
Writer:- Abhilasha "Abha"
From:- Patna, Bihar
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