चीरहरण ( अब तो महाभारत ही होगा ) - by Abhilasha "Abha"


स्त्री जाति का चीरहरण हुआ,

द्रौपदी के नाम पर,

कलंक क्यों तूने लगाया दुर्योधन,

आर्यावर्त के नाम पर।


कौरव वंश का नाश होगा,

पांडवों ने कसम ये खाई है,

भाई ही भाई से युद्ध करेंगे,

ये ही परिस्थिति आई है।


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धृतराष्ट्र अंधे थे आंँखों से,

मन से अंधे क्यों हो गए,

पुत्र के मोहपाश में पड़कर,

आप तो निष्ठुर हो गए।


पुत्रवधू थी द्रौपदी आपकी,

इस सत्य को मिथ्या किया,

दु:शासन को ना रोक कर,

भरी सभा में उसका अपमान किया।


सारे अपनों ने ही मिलकर,

षड्यंत्र की रचना कर दी,

एक राज्य पाने की लालसा ने,

सारी मर्यादा तोड़कर रख दी।


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जुए में हार गए जिसे तुम पांडव,

वो कोई तुच्छ वस्तु तो ना थी,

ब्याह कर जिसे तुम सब लाए,

जीती जागती वह सुंदर स्त्री थी।


चित्कार करती रही द्रौपदी,

सब बहरे क्यों हो गए,

भीष्म पितामह, द्रोण और संजय,

तुम सब महारथी भी,

दुर्योधन की कुटिल चाल पर,

जाने कैसे मौन रह गए।


गोविन्द को पुकारा द्रौपदी ने,

मुरलीधर ने लाज बचाई,

इस तरह से द्रौपदी के भेष में,

सारी स्त्रियों की लज्जा वापस आई।


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आकांक्षाओं का गुबार उठा था,

अहंकार का मेला था,

अनुज अग्रज का सवाल ही नहीं,

वहांँ तो अहम का झमेला था।


स्वजन आपस में लड़ गए,

क्योंकि अपनी ही बुद्धि की हानि थी,

मामा शकुनि ने जाल बुना था,

सबने तो उसी की ही मानी थी।


आर्यावर्त की भूमि पर,

अब तो युद्ध ही होगा,

रक्त बहेंगे स्वजनों के,

अब तो महाभारत ही होगा।


Writer:- Abhilasha "Abha"
From:- Patna, Bihar


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