अभिनव ज्ञान - by Akanksha


 कवियों की गूढ़ कल्पना सा

 आता नया सवेरा

  स्नेह दीपक सा जगमगाता 

 नवनीत ह्रदय था मेरा


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 हुआ जब संध्या आलोक

 लगा यूँ नहीं था वहां कोई शोक

 अरुण अधरों सी वह पल्लव प्रात

 मोतियों से हिलता हिम प्रभात


 उषा से किरणों का पर्दा हटाता

 मानों मेघमणि से कोई सितारा टिमटिमाता

दिखता वह जग ऐसा नाम रूप गुण अजान

 ज्यों धूल की ढेरी में छिपे मधुमय गान


 वो रवि करता तेरा दिव्य ज्योति से अभिषेक

 ना रहे जीवन दीप्ति  में कोई गम निश्शेष

 गत दिवस तेरे जाने से  निकल पड़ी कविता अनजान

 नवप्रभात के उल्लास में उपजा यह अभिनव ज्ञान।


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