भारतीय संस्कृति - by Anamika Vaish Aina



भारतीय संस्कृति का परिचय

संस्कृति शब्द सुनते ही अनेक प्रश्न मन में विचलित होते हैं जैसे-

संस्कृति आख़िर ये है क्या? कैसे बनती है? इससे क्या होता है? किस प्रकार ये मानवीय जीवन को प्रभावित करती हैं? इसका क्या कार्य है? इसकी क्या विशेषता है? किस प्रकार ये भारत को अन्य देशों से अलग बनाती है? इसका क्या महत्व है? इत्यादि।

तो आइये सबसे पहले यही जानते हैं कि संस्कृति क्या है और हम समझते हैं इसके कार्य और महत्व को...

संस्कृति का अर्थ और परिभाषा

किसी भी देश की संस्कृति व्यवस्था वह है जिसमें उस देश के  गौरवशाली इतिहास, विलक्षण भूगोल विभिन्न धर्म, जाति, भाषा, रीति-रिवाज़, सभ्यताएं, युग, परंपराएं, प्रथाएं, रहन-सहन, नृत्य, खेल, साहित्य, शास्त्र, भावों-विचारों आदि का समावेश मिलता है।

भारतीय संस्कृति की अवधारणा अत्यंत विस्तृत, प्रभावशाली एवं महत्वपूर्ण है जिसने भारतीय) यहाँ की संस्कृति और पंरपराओं को देश-विदेश के विभिन्न हिस्सों को बहुत ज्यादा ही प्रभावित किया है परिणामस्वरूप विदेशों में भी भारतीय संस्कृति का प्रचार प्रसार तेज़ी से बढ़ा और वहाँ के लोगों ने भी भारतीय संस्कृति के विभिन्न पहलुओं की सराहना की है।

संस्कृति का महत्व-

प्रत्येक व्यक्ति के लिए उसकी संस्कृति एक विशेष महत्व रखती है। संस्कृति मानव जाति के लिए अमूल्य निधि के रूप में कार्य करती है। संस्कृति के द्वारा ही मनुष्य में सामाजिक विकास होता है। अपने आसपास के परिवेश से ही मानव को संस्कृति, रहन-सहन, बोलचाल, कार्य-व्यवहार आदि की जानकारी होती है। संस्कृति का पालन करके ही मनुष्य सामाजिक प्राणी बनता है और उसे नवल पहचान मिलती है। अर्थात संस्कृति वह है जो एक मनुष्य को दूसरे मनुष्य से, एक समाज को दूसरे समाज से तथा एक समुदाय को दूसरे समुदाय से अलग करती है। संस्कृति से प्रभावित होकर ही मानव किसी पर्यावरणीय अनुकूलन करने में समर्थ हो पाता है और जिन मानवीय परिस्थितियों द्वारा मानव प्रभावित होता है उस संस्कृति और संस्कृति के परिवेश को सांस्कृतिक पर्यावरण कहते हैं।

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि संस्कृति ही सीखे हुए व्यवहारों की सम्पूर्णता है।

संस्कृति-एक व्यवस्था

किसी देश की संस्कृति ही एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें मानव जीवन के प्रत्येक प्रतिमानों, अनेकानेक भौतिक और अभौतिक परम्पराओं, आचरण के तरीकों, विचारों, मानवीय क्रियाओं आविष्कारों तथा सामाजिक मूल्यों को समावेशित किया जाता है। मानव के सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक, कलात्मक, दार्शनिक, कार्यकलापों प्रथाओं परंपराओं, रहन-सहन, खानपान, वेश-भूषा, संस्कार आदि को ही संस्कृति में शामिल किया जाता है। अर्थात्‌ कहने का मतलब यह है कि इन्सान का आचार-विचार, जीवन जीने का तरीका और व्यवहार ही संस्कृति है।

भारतीय संस्कृति-संस्कार का परिवर्तित रूप

प्राचीन काल में वेदों-पुराणों, शास्त्रों, उपनिषदों, धर्म-दर्शन, आत्म-आध्यात्मिकता का जन्म हुआ जिसमें वायु पुराण के अनुसार भी मानव जीवन की घटनाओं जैसे धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को भी संस्कृति में समाहित किया गया था। विदूषकों द्वारा भी संस्कार के परिवर्तित रूप को ही संस्कृति की संज्ञा दी गई है।

भारतीय संस्कृति का स्वरुप-

भारतीय संस्कृति विश्व की सबसे प्राचीनतम संस्कृतियों में से एक है। इसका स्वरूप सर्वाधिक व्यवस्थित, लोकप्रिय, महत्वपूर्ण और प्रभावशाली है। वैदिक काल में वेदों के सृजन के बाद भारतीय संस्कृति में जो परिवर्तन और निखार आया वह अत्यंत अद्भुत और सराहनीय रहा। जो आज़ भी भारत के महत्व और शोभा को निरंतर विकसित करने में सक्षम हैं। भारतीय संस्कृति में योग और आयुर्वेद का जन्म हुआ जिनका उपयोग स्वास्थ्य संबंधी सभी समस्याओं के निराकरण हेतु किया जाता है जिनका प्रभाव अत्यंत ही अद्भुत, प्राकृतिक और चमत्कारिक देखने को मिलता है।

भारतीय संस्कृति की देन

किसी बच्चे को जो संस्कार बचपन में अपने परिवार और समाज के बीच रहकर मिलतें हैं वो हमारी संस्कृति की ही देन हैं। हमारे बड़े-बुजुर्ग हमें सदाचार, सद्भावना, सद्-विचार, सद् व्यवहार, सत्कर्म आदि की सीख देकर भावी जीवन के संघर्षों से लड़ने के लिए तैयार करते हैं। बचपन से ही अभिवादन, नैतिकता, सहयोग भावना, प्रेम, मृदुभाषा, शिष्टाचार आदि सिखाए जाते हैं।

प्राचीन काल में भारत की सभी संतानो को शिक्षा प्राप्ति हेतु गुरूकुलों में भेजा जाता था। जहाँ बच्चे धर्म, दर्शन, शस्त्र-शास्त्र, कला साहित्य विद्या राजनीति समाजशास्त्र भाषायी आदि की शिक्षा देकर बच्चे को सफ़ल भावी जीवन के लिए तैयार किया जाता था। आज भी विद्यालयों के माध्यम से यह कार्य निरंतर संपन्न हो रहा है परंतु स्वरूप में परिवर्तन हो गए हैं।

भारतीय संस्कृति के संस्कार

भारत में अनेक प्रकार के संस्कार पूरे उत्सव के साथ धूमधाम से मनाये जाते हैं जैसे- गर्भधारण समारोह से लेकर शिशु जन्मोत्सव, अन्न-प्राशन उत्सव, उपनयन/मुण्डन संस्कारोत्सव, विवाहोत्सव आदि। इन सभी संस्कारों में विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक, कलात्मक, नृत्य, गीत, संगीत, प्रथा, परंपरा आदि दर्शनीय होते हैं जो भारतीय संस्कृति के प्रतीक हैं हमारे भारत में हम सभी मिलजुलकर छोटी-छोटी खुशियाँ, प्रत्येक पर्व, मौसमी बदलाव, फ़सल परिवर्तन आदि बड़े पैमाने पर एक दूसरे के साथ बाँटते हैं।

विश्व में भारतीय संस्कृति का स्थान

भारतीय संस्कृति अनेक सिद्धांतों पर आश्रित है जो पुरातन होते हुए भी इसे नवलता प्रदान करती है। भारतीय इतिहास के अनुसार भारतीय संस्कृति पर विदेशियों, अँग्रेजों, मुग़लों और अन्य विभिन्न जातियों ने बहुतायत आघात किए लेकिन वो भारतीय संस्कृति का बाल भी बाँका नहीं कर पाये। भारतीय संस्कृति अपनी विशिष्ट विशेषता और महत्ता के कारण दृढ़ता से आज़ भी विभिन्न देशों में भी अपना विशेष स्थान बनाए रखने में सफल हुई है।

भारतीय संस्कृति की विशेषताएँ

भारतीय संस्कृति अध्यात्म और चिन्तन की श्रेष्ठ अभिव्यक्ति है। योग, आयुर्वेद, पूजा-पाठ, हवन, देवी-देवताओं की मान्यता, वेद, पुराण, श्रीमदभगवत् गीता, उपनिषद, दर्शन, शास्त्र, वैदिक धर्म भारतीय संस्कृति के आधारभूत तत्वों, जीवन के मूल्यों, वचन और कर्म पद्धति, नदियों-वृक्षों-सूर्य-चाँद-वायु-अग्नि-जल-धरा-नभ-प्रकृति आदि के प्रति मानवी मन में आस्था, श्रद्धा और विश्वास भावनायें आज भी अतुलनीय, अटल और अडिग है।

ये ही हमारे कर्म, धर्म और प्रेरणा जीवन के आधार स्त्रोत हैं जो कि आदिकाल से निरंतर ही हमारा साथ निभा रहे हैं।

भारतीय संस्कृति में जितनी सहिष्णुता और लचीलापन है उतना शायद विश्व की किसी भी संस्कृति में नहीं है। इसमें धार्मिक स्वतंत्रता और संस्कृति का कोई भी बंधन नहीं है। इसकी उदारता के कारण ही इसमें ग्रहणशीलता की प्रवृत्ति विकसित हुई है जिसके कारण मुगल, विदेशी, अंग्रेज आदि अन्य प्रजातियाँ भी यहाँ पर घुलमिल कर अपनी पहचान खो देते हैं।

इसके अतिरिक्त भारतीय संस्कृति की अनेकता में एकता की भावना ने एक अलग सराहनीय पहचान विकसित की। भौगोलिक विविधताओं के बावजूद भी भारत सांस्कृतिक रूप से एक सूत्र में बंधा हुआ है। माना कि कुछ भाषायी विविधताएं ज्यादा हैं लेकिन आचार-व्यवहार, रीति-रिवाज़, तीज-त्योहार, गीत-संगीत, नृत्य-नाट्य, धर्म-अध्यात्म, सम्प्रदाय मतों और पृथक आस्था-विश्वास में समानता का महादेश भारत ही है। तथापि सांस्कृतिक समुच्चय और अनेकता का एकता का स्वरुप विश्व के सभी देशों के लिए विस्मय का विषय हमेशा से ही रहा है।

भारतीय संस्कृति के आधार

भारतीय संस्कृति के तत्वों सिद्धांतों और जीवन प्रणाली के आधार हैं। ये सरस् है सरल है। जीवन के लौकिक और परलौकिक दोनों पक्षों से धर्म को बंधक किया है। धर्म, जिसके द्वारा मानव परमात्मा द्वारा दी गई शक्तियों को केंद्रित-विकसित करके अपने जीवन को सुखमय बनाता है और मृत्यु के पश्चात जीवात्मा की शांति का अनुभव प्राप्त करने का प्रयास करता हैं। मानव के सुखी जीवन की ऐसी चिंता सिर्फ और सिर्फ भारतीय संस्कृति में ही निहित है, विश्व की अन्य किसी और संस्कृति में नहीं है।

हस्तांतरणशीलता अर्थात्‌ अपने अच्छाइयों का आदान प्रदान करना, सामाजिकता अर्थात्‌ मिलजुलकर नैतिकता और प्रेम-सौहार्द भाव से रहना, आदर्शात्मकता, एकीकरण और अनुकूलन की क्षमता, सीखा हुआ व्यवहार और उससे प्राप्त अनुभव, पृथकता , अधि वैयक्तिक तथा सावयवी, आवश्यकताओं की पूर्ति, एक राष्ट्रभाषा आदि अनेक विशेष विशिष्टताओं से निर्मित है हमारी भारतीय संस्कृति।

हमारी संस्कृति में संपूर्ण पृथ्वी को एक परिवार घोषित कर दिया है जिसका एक अद्भुत मंत्र दिया "उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुंबकम्"। अर्थात् उदार चरित्र वाले/सज्जन पुरुष सम्पूर्ण सृष्टि/पृथ्वी को एक परिवार समझते हैं। यहाँ तक कि "अतिथि देवो भवः" अर्थात्‌ महमानों को ही ईश्वर और ईश्वर का स्वरुप मानते हैं जैसे अनेक पवित्र विचारधारा की गंगा प्रवाहित किया।

भारतीय संस्कृति की प्रचलित और लोकप्रिय प्रथाओं में स्वादिष्ट और सुगंधित छप्पन भोग परम्परा, सांस्कृतिक गीत-संगीत-नृत्य-नाट्यकला-कपड़े-गहने-मेहंदी आदि, फ़िल्में, मेले-पर्व, चित्रकारी, दृश्यकता, मूर्तियाँ, अभिवादन के तरीक़े अर्थात्‌ झुककर विनम्रतापूर्वक नमस्ते करना , स्वागत करने और सम्मान देने के लिए फूल-माला पहनाना, प्रकृति-पूजा, धार्मिकता, प्रदर्शन कला, साहित्य, स्त्री की महिमा, अदब, दया-करुणा, प्रेम-सौहार्द, त्याग, बलिदान आदि भारत की गरिमा को बेहद उन्नत कर देता है।

भारतीय संस्कृति देव संस्कृति

भारत ही ऐसा इकलौता देश है जहाँ पूजा-पाठ और कर्मकांडों को बहुत मान्यता दी जाती है। भारतीय संस्कृति में देव उपासना का महत्व विशेष रहा है अतः विद्वानों ने भारतीय संस्कृति को देव संस्कृति कहकर भी सम्मानित किया है। भारतीय लोग तो पशु-पक्षी, सूर्य-चाँद, पृथ्वी-वायु, आग-पानी, नदी-पत्थर और प्रकृति सभी में ही अपना ईश्वर दिखाई देता है। आस्था विश्वास और श्रद्धा के जिस समुन्दर में हम भारतीय डुबकी लगाते हैं वो आत्म-संतुष्टी देता हैं।

भारतीय संस्कृति ही मानव की उन्नति का स्तर उन्नत करती है। भारत में समय-समय पर जन्मे अनेक महान कवि, साधु-संत सुधारक, मनीषी, देवदूत आदि भी भारतीय संस्कृति के अद्भुत भाव-शैली से ही प्रभावित थे।

भारतीय मान्यताओं के अनुसार ईश्वर ने जब-जब भी जिस रूप में भी जन्म लिया है भारत में ही लिया है। ख़ुद ईश्वर ने भी भारतीय संस्कृति के रंग-ढंग से सुशोभित होने उसमें घुल मिल जाना स्वीकार किया। फ़िर हम तो इन्सान है.. बड़े सौभाग्य से ही हमें भारतीय संस्कृति का संरक्षण और दुलार मिला।

आध्यात्म से जुड़े मानवीय क्रियाकलापों में कुछ तत्व ऐसे भी हैं जो अत्यंत रोचक और आकर्षक है जैसे-- हिन्दू धर्म में पुरूषों का सिर पर शिखा(चोटी) रखना, माथे पर तिलक लगाना, माला और जनेऊ धारण करना, सूर्य-नमस्कार और जलापर्ण, श्राद्ध तर्पण आदि।इन मान्यताओं से जुड़े वैज्ञानिक तथ्य भी है जो इन तत्वों की महत्ता को स्पष्ट करती है।भारतीय संस्कृति के विकास में धर्म का महत्वपूर्ण योगदान है अर्थात्‌ भारतीय संस्कृति धर्म के आधार पर ही विकसित हुई है फलस्वरुप इसमें दृढ़ता है। भारतीय  संस्कृति व्यक्ति को व्यक्तित्व देती है। 

भारतीय संस्कृति का पालन करते हुए आज भी हम अपने बड़े-बुजुर्गों के समक्ष ससम्मान नतमस्तक होकर चरण स्पर्श करते है, अभिवादन करते हैं।

साथ ही किसी भी देश या व्यक्ति को खुद से छोटा नहीं मानते.. सबको समकक्ष समझते हैं फ़िर चाहे वो कमज़ोर हो मजबूर हो या फिर ग़रीब। ये भाव भारतीय संस्कृति को सबसे महान बनाता है।

भारतीय संस्कृति- धरोहर और विरासत

भारतीय संस्कृति हमारे देश की सबसे पुरानी और अमूल्य धरोहर है और इस धरोहर के पाँच महत्वपूर्ण आधार स्तंभ हैं- गुरु, गायत्री, गंगा, गौ और गीता। भारत का इतिहास एक समृद्ध विरासत का गुणगान करता है जो हमारे देश के गौरवशाली अतीत को परिलक्षित करता है। हमारे पूर्वजों ने भारतीय संस्कृति को धरोहर के रूप में अनेक आकर्षण और स्मरणीय सांस्कृतिक इमारतें और किले आदि का भव्य निर्माण कराया जिन्होंने आज तक हमारी परंपरा को बनाये रखने और भारतीय संस्कृति की जड़ों को जकड़े रखने का कार्य किया है।

भारत में अनेकानेक संस्कृतियों और परंपराओं का बोलबाला है इसीलिए भारत को परंपराओं का देश भी कहते हैं। जहाँ अलग-अलग धर्म जाति पंथ के लोग अपने-अपने धर्म और परंपराओं का पालन करते हुए प्रेम-सौहार्दपूर्ण ढंग से प्रसन्नतापूर्वक रहते हैं। साथ ही एक दूसरे का सहयोग भी करते हैं। विनम्रता भाव, एक दूसरे को सम्मान देना, दया और करुणा प्रेम-त्याग आदि सद्भावों से सजी हुई है- अपनी भारतीय संस्कृति।

भारतीय संस्कृति के अनुसार परमार्थ और सबका कल्याण मूल रत्न हैं और आत्मवत् सर्वभूतेषु अर्थात्‌ आत्मा(हृदय) के आनंद में ही आंतरिक संतोष और सुख-शांति की अनुभूति होती है।


भारतीय संस्कृति की विशिष्टता (उपसंहार)


भारत का इतिहास यहाँ की वीरता, भाइचारे और सहयोग भावना के उदाहरणों से ही निर्मित है। परिवर्तनशीलता ही भारतीय संस्कृति की सबसे अनूठी बात है।

भारतीय संस्कृति विश्व की सबसे प्राचीनतम संस्कृतियों में से एक है। इसका स्वरूप सर्वाधिक व्यवस्थित, लोकप्रिय, महत्वपूर्ण और प्रभावशाली है। वैदिक काल में वेदों के सृजन के बाद भारतीय संस्कृति में जो परिवर्तन और निखार आया वह अत्यंत अद्भुत और सराहनीय रहा। जो आज़ भी भारत के महत्व और शोभा को निरंतर विकसित करने में सक्षम हैं। भारतीय 
यहाँ के परंपरागत अस्तित्व के कारण ही भारतीय संस्कृति आज भी अजेय अमर सदा से थी, सदा से रही है और सदा ही रहेगी। भारतीय संस्कृति ने अपनी उदारता और समन्वयवादी गुणों को समाहित तो किया लेकिन अपने अस्तित्व को भारतीय संस्कृति ने हमेशा ही सुरक्षित रखा। भारतीय संस्कृति एक ऐसी भावना है जो किसी चमकते आईने के समान पारदर्शी और प्रभावशाली है।


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