आपके आलोचक ही आप के सच्चे मार्गदर्शक - by Anita Negi


आलोचना एक ऐसा शब्द है जिसका सामना हर व्यक्ति को अपने जीवन काल में कभी ना कभी करना पड़ता है| किसी व्यक्ति की आलोचना ना हुई हो यह संभव नहीं क्योंकि यह सफलता का प्रथम सोपान है| अक्सर जब लोग आपके द्वारा किए गए कार्य की सराहना नहीं करते या आप अपनी उन्नति के लिए जो भी कार्य करते हैं आपकी उन्नति जब किसी को सहन नहीं होती और उसे हमेशा ईर्ष्या रहती है कि:-


* आप आगे कैसे बढ़ गये?

* क्या कारण है जो आप सफल हो रहे हैं?


तो वह व्यक्ति आपकी आलोचना करने लगता है आपके हर कार्य में दोष निकालने लगता है| आलोचना को अंग्रेजी में criticism कहा जाता है|


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आलोचना क्या है?

वैसे तो आलोचना एक नकारात्मक सोच को दर्शाती है, परंतु ठीक इसके विपरीत अगर देखा जाए तो आलोचना एक 'सकारात्मक' शब्द है| आलोचना मतलब आपके कार्यों में निकाला गया दोष ,गलती या त्रुटि|


आलोचना का मन पर प्रभाव :-

अक्सर जब कोई हम पर दोषारोपण करता है, बुराई करता है तो हम आहत होते हैं हम कई तरह की नकारात्मकता से भर जाते हैं और  हतोत्साहित हो जाते हैं, हमारा विश्वास आत्मविश्वास डगमगा जाता है परंतु एक  आत्ममंथन करें और देखें क्या वास्तव में दुखी होने की आवश्यकता है|

दो प्रकार से आलोचना का हमारे जीवन में प्रभाव होता है- 1: नकारात्मक प्रभाव 2:  सकारात्मक प्रभाव


यहां पर नकारात्मकता को पहले नंबर पर इसलिए रखा गया है क्योंकि होता यही है कि  सबसे पहला और सीधा प्रभाव जो पड़ता है वह  है नकारात्मक प्रभाव| यह एक सामान्य स्थिति है कि जब सामने वाला आपके प्रयासों में दोष निकालता है असंतुष्ट होता है, आपका उपहास करता है तो उस पीड़ा को सिर्फ आप समझ सकते हैं या तो प्रत्युत्तर में आप सामने वाले को बुरा-भला कहेंगे या आप कुछ कह तो नहीं पाते लेकिन मन ही मन कुंठित होते रहते हैं और अपने और अगले व्यक्ति के प्रति नकारात्मक धारणा बना लेते हैं और हीन भावना से ग्रसित हो जाते हैं इसका सीधा प्रभाव आपकी सफलता आपके विचारों और आपके व्यक्तित्व पर पड़ता है| आप प्रयास करना छोड़ देते हैं या अपने मन में ठान लेते हैं कि 'मुझसे नहीं होगा' वास्तव में यह सोच अधिक भयावह है क्योंकि मुझसे नहीं हो पाएगा यह वाक्य अगर आपके मन में बैठ गया तो स्थिति गंभीर हो सकती है आप अपनी क्षमताओं को अनदेखा करेंगे तो इस प्रकार समझा जा सकता है कि आलोचना के नकारात्मक प्रभाव से हमें बचना होगा|


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आलोचना का सकारात्मक प्रभाव :-

अगर आप आलोचना को सकारात्मक रूप से स्वीकार करते हैं तो पाएंगे कि आलोचना आपके प्रयासों को और अधिक प्रभावशाली बनाती है| आलोचना से आपको पता चलता है कि आपके प्रयासों में कहां-कहां पर कमियां रह गई हैं कौन कौन सी नीति और तरीके हैं जो आपके कार्यों को और ज्यादा प्रभावशाली बना सकते हैं|आवश्यकता है आलोचना में छिपे सफलता के रहस्य को पहचानने की| आलोचना के माध्यम से हमें हमारी कमियों का बोध होता है और हम उन कमियों को पूरा करने का प्रयास करते हैं यह हमें मजबूत बनाती हैं|


कौन होते हैं आलोचक?

वैसे तो आलोचकों का तात्पर्य सकारात्मकता के परिवेश में लिया जाता है मतलब लोग जो आपके कार्यों का मूल्यांकन करके उसमें रही कमियों और दोषों को बताने का कार्य करते हैं और इसके विपरीत अगर हम मान लें कि आलोचक आपको सफल नहीं होने देते|


दो तरह के आलोचक होते हैं -

पहले वे जो आपको सफल होते देखना चाहते हैं और आपके कार्यों प्रयासों में क्या कमी रह गई हैं अपने अनुभवों के आधार पर मूल्यांकन करते हैं और आपसे आशा करते हैं कि आप उन त्रुटियों को सुधारें दूसरे आलोचक वे होते हैं जब उन्हें लगता है कि वे आपकी बराबरी नहीं कर सकते और किसी ना किसी तरह आप का मनोबल गिराने का प्रयास करते हैं आपको हतोत्साहित करने का पूरा प्रयास करते हैं तरह-तरह के षड्यंत्र रचते हैं और जब अपने मंसूबों में कामयाब नहीं होते तो एकमात्र कार्य करते हैं आपकी बुराई अवहेलना करने का कार्य|  वे परिश्रम करने की बजाय  ईर्ष्यावश बुराई करने कमियां बताने  जैसा सबसे सरल कार्य करते हैं| अब यह आप निर्भर करता है कि आपको सही आलोचको को पहचानना है और बुरे लोगों को उनका कार्य करने देना है मगर इस बात का ध्यान रहे कि आप प्रभावित ना हों यदि आप उन्हें अवसर देते हैं तो आप गलत लोगों को कामयाब होने का मौका देते हैं|  धैर्य और विश्वास से मिथ्या व आरोपों का सामना किया जा सकता है| हमेशा यह सोच रखनी चाहिए कि स्थितियां बेहतर होंगी  यह सोच आपको हारने नहीं देगी| बेबुनियादी आलोचनाओं को नजरअंदाज करें क्योंकि अगर आप प्रभावित होंगे तो आपके  आलोचको को यकीन हो जाएगा कि उनकी बातों का असर आप पर हो रहा है|


आलोचनाओं का स्वागत करें:-

आलोचनाओं को हमेशा नकारात्मक तरीके से लेने की बजाय सकारात्मक तरीके से लें और उनका स्वागत करें क्योंकि यही आलोचनाऐं आपको जीवन में सफल बनाती हैं और यही आलोचक आपका मार्गदर्शन करते हैं|


मानसिक रूप से परिपक्व बने:- 

आलोचना हमेशा हमें हतोत्साहित ही नहीं करती अपितु यह आपके व्यक्तित्व और कार्य करने की कला को निखारती है, आप को मजबूत तटस्थ व स्थिर बनाती है परंतु यह तभी संभव है जब आप मानसिक रूप से परिपक्व होंगे अतः यह आवश्यक है कि आप आलोचना को स्वस्थ तरीके से अपने जीवन में  ग्रहण करें संकीर्ण और हीन मानसिकता से यदि आलोचनाओं को सुनेंगे तो सफल नहीं बन पाएंगे|


आत्ममंथन है जरूरी:-

आलोचना से निराश होने की बजाय आत्ममंथन करेंगे तो पाएंगे कि यह  आपके हक में बेहतरीन है, मनन करेंगे तो समझ जाएंगे की आलोचना आपकी कमियों को बताती है आपके द्वारा किए गए कार्यों में क्या अधूरा रह गया है यह दर्शाती है।


निष्कर्ष:-

अतएव  कहा जा सकता है कि आलोचनाएं आपको कितना और कैसे प्रभावित करती हैं ? यह आपके नजरिए पर निर्भर करता है| स्वस्थ मानसिकता से आलोचनाओं का स्वागत करने पर यह आपकी सफलता का मार्ग प्रशस्त करती है|

आलोचकों को सहर्ष स्वीकारें ये वही लोग हैं जो आपको संपूर्ण बनाते हैं यही आपके सच्चे मार्गदर्शक हैं|



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