वीरों की गाथाएँ - by Anjali Goswami



इतिहास तो हम सभी पढ़ते है,
पर कुछ लोग इतिहास गढ़ते है।।


भारत वीरों की भूमि है। यहां बहुत से योद्धा हुए जिन्होंने अपने देश के लिए सर्वस्व लगा दिया।देश प्रेम के आगे उन्होंने अपने प्राणों की आहुति देने में पल भर भी विचार नहीं किया।शायद इन्हीं वीर योद्धाओं की बदौलत हम आज़ाद देश में स्वास ले रहे है। आज हम इस लेख में इन्हीं वीरों की गाथाओं का वर्णन करेंगे जिन्होंने अपना सर्वस्व देश को समर्पित कर दिया।
               इन्हीं वीरों में वर्णन आता है स्वतंत्रता के मंत्र दृष्टा:- ( लोकमान्य तिलक ) बालगंगाधर तिलक ,इनका मूल नाम केशव गंगाधर तिलक था। इनका जन्म महाराष्ट्र के कोंकण प्रदेश के चिक्कल नामक गांव में 23 जुलाई 1856 को हुआ। बचपन से ही परिश्रमी व मेधावी छात्र रहे तिलक ने पूना कॉलेज से बी. ए.एल.एल. बी पूर्ण किया। पढ़ाई पूर्ण करने के पश्चात उन्होंने अंग्रेजो का खुलकर विरोध किया। इन्होंने देखा कि उस समय की शिक्षा अंग्रेज़ो के लिए नौकर तैयार करती है अतः लोकमान्य ने पूना में " न्यू इंग्लिश स्कूल " नामक विद्यालय खोला। इस विद्यालय में शिक्षा के साथ देश प्रेम व भारतीय संस्कृति की शिक्षा भी दी जाती थी।
           अंग्रेजो के असहयोग जागरण के उद्देश्य से पत्रकारिता क्षेत्र में उतर "केसरी" और "मराठा" पत्रिकाओं से भारत की जनता में अपूर्व जोश भर दिया।
महाराष्ट्र में "शिवाजी" और "गणेश उत्सव " के माध्यम से देश प्रेम की ज्योति को सदा के लिए प्रज्जवलित कर दिया । इन पर्वों पर देश के लिए पूर्ण समर्पण की प्रेरणाएं दी जाती थी।
"स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है " का नारा देकर जनता को अपने अधिकारों के प्रति व भारत माता को दासता से मुक्त कराने लिए प्रेरित किया।
        अंग्रेज़ सरकार इस आजादी के दीवाने को देख भय युक्त हो गई , वह किसी प्रकार से उन्हें बंदी बनाने का बहाना खोजने लगी और बहाना उन्हें मिल भी गया ,जब पूना में हुई एक अंग्रेज़ अधिकारी की हत्या व बंगाल में हुए बम कांड का सारा दोष इनके ऊपर थोप दिया गया । सरकार ने इनके सभी लेखों को देशद्रोह की संज्ञा दी । 1908 में इन्हे देश निकाले और सात वर्ष कैद की सजा देकर रंगून की मंडाले जेल में भेज दिया गया।
देश को समर्पित महाप्राण वहां भी निष्क्रिय नहीं बैठे। वहां उन्होंने " गीता रहस्य" नामक ग्रंथ लिखा जिसमें कर्मयोग को व्यवस्था की गई है।
जुलाई 1920 के अंतिम सप्ताह में इस महामानव का देहवासन हो गया जिससे पूरा देश शोकाकुल हो उठा ।

लेख में आगे हम जिनकी बात करने जा रहे है वे है महाराष्ट्र के पुनर्प्रतिष्ठा करने वाले( पेशवा बाजीराव) :-

पेशवा बाजीराव प्रथम एक महान व्यक्तित्व वाले सेनानयक थे । इन्होंने 1720 से 1740 तक छत्रपति शाहूजी के पेशवा का पद संभाला । इनके कुशल नेतृत्व व रणकौशल के बल पर मराठा साम्राज्य का अत्याधिक विस्तार हुआ । इन्हे लोग प्रेम से (अपराजित हिन्दू सेनानी ) भी कहा करते थे ।
     बाजीराव बचपन से ही घुड़सवारी , तीरंदाज़ी , तलवार, भाला आदि चलाने के शौक़ीन थे । वे अपने पिता बालाजी विश्वनाथ , जो कि छत्रपति शाहूजी महाराज के पेशवा थे ,के साथ घूमते हुए दरबारी रीतिरिवाज़ों को आत्मसात करते रहते थे ।
बालक के योद्धा बनने के गुण देख सभी हैरत में पड़ जाते।

बालाजी विश्वनाथ की अचानक मृत्यु के पश्चात बाजीराव को पेशवा नियुक्त किया गया । इन्होंने अल्पवयस्क होते हुए भी असाधारण प्रतिभा का प्रदर्शन किया । अत्यंत प्रभावशाली व्यक्तित्व और नेतृत्व शक्ति से हतप्रभ करने वाले पेशवा ने  कभी एक भी युद्ध नहीं हारा। इन्होने उत्तर भारत से लेकर दक्षिण भारत तक अपनी विजय पताका फहराई ।

पेशवा का नाम का डंका चहुओर बजने लगा । लोग इन्हे शिवाजी का अवतार मानने लगे थे।
बाजीराव प्रथम की सबसे बड़ी जीत 1728 में पालखेड की लड़ाई में हुई जहां उन्होंने निज़ाम की सेना को आत्मसमर्पण करने के अलावा कोई रास्ता नहीं छोड़ा। इन्होंने मालवा तथा कर्नाटक पर प्रभुत्व स्थापित किया, बुंदेलखंड पर विजय प्राप्त की , भोपाल के निज़ाम को भी परास्त किया । अमेरिकी इतिहासकार बर्नार्ड मंटोगोमेरी के अनुसार , बाजीराव पेशवा भारत के इतिहास का महानतम सेनापति था ।
पूना नगर के पुनर्निर्माण का श्रेय बाजीराव पेशवा को ही जाता है। यह पेशवा की कलाप्रियता और निर्माण कौशल का उदाहरण है।
उनके जीवन में कई बार ऐसे प्रसंग भी आए जब मृत्यु उनके सामने विकराल रूप लिए खड़ी थी परन्तु पेशवा ने धेर्य और साहस का साथ नहीं छोड़ा और बाजी अपने हाथ में ले ली ।
जब भारत की जनता मुगलों के साथ साथ पुर्तगालियों व अंग्रेजों के अत्याचार से त्रस्त थी ,
तब सूर्य स्वरूप बाजीराव ने अन्धकार में प्रकाश की किरणे फैला कर देश में बदलाव का उदय किया।
बाजीराव की अप्रैल 1740 को अचानक रोग के कारण मृत्यु हो गई । एक वीर , एक योद्धा एक कुशल घुड़सवार , एक अत्यंत प्रभावशाली नेतृत्व कर्ता ,देश ने बाजीराव के रूप में एक सूर्य खो दिया।

लेख में अधूरापन सा लगेगा अगर हम वीरों की गाथा में लौह पुरुष का वर्णन ना करे । "सपने ना देखो, काम करो" के सुक्तिकार लौह पुरुष (सरदार वल्लभ भाई पटेल):-

सरदार पटेल को लौह पुरुष ऐसे ही नहीं कहा जाता था । लौह पुरुष होने के गुण उनमें बचपन से नज़र आते थे । बचपन में उनकी आंख में फोड़ा हो गया था। गर्म सलाखों से उसका ऑपरेशन किया जाना था । लोहे के दो सुजे इतने गर्म किए गए की वे रक्त वर्ण हो गए परन्तु किसी की हिम्मत नहीं हो रही थी कि बच्चे की आंख का पर कठिन प्रयोग करे। इन्होंने सबकी ओर देखा और कहने लगे, तुम सब लोग इतना घबरा क्यों रहे हो क्या ये काम तुम्हे कठिन दिखाई देता है , सलाखे मुझे दो मैं अपना ऑपरेशन स्वयं ही कर लेता हूं , इतना कह उन्होंने सालखे उठाई और फोड़े में डाल दी । देखने वाले घबरा गए लेकिन वल्लभ भाई का कहना था की , जो काम उचित हो उसके परिणाम के लिए घबराया नहीं करते। बचपन से ही हिम्मत के धनी सरदार शक्ति के पूजक थे । उनका विश्वास था कि सुनियोजित शक्ति का साहसिक उपयोग ही अंत में सफलता की ओर अग्रसर करता है।
स्वतंत्रता आंदोलन में अग्रसर रहने वाले सरदार पटेल ने खेड़ा सत्याग्रह , बारडोली सत्याग्रह में किसानों को लगान माफी करा आंदोलनों को सफल किया। बारडोली सत्याग्रह में महिलाओं के द्वारा ही वल्लभ भाई पटेल को सरदार की उपाधि दी गई।

आजादी के बाद इन्हे  देश के उपप्रधान मंत्री और गृह मंत्री का कार्य सौपा गया । इनकी पहली प्राथमिकता देसी रियासतों को भारत में मिलाना था जो इन्होंने बखूबी बिना रक्त बहाए पूर्ण किया । हैदराबाद के निजाम को भारत विलय के लिए राजी करने में इन्होंने अहम भूमिका निभाई । वे कर्मठ , कर्मवादी नेता थे ,सरदार ने यह गुण नेपोलियन बोनापार्ट से सीखा था । वे नेपोलियन बोनापार्ट की इस उक्ति में विश्वास रखते थे कि आलोचकों की परवाह ना करो , कार्यों से उनका उत्तर दो , तुम्हारे लिए यह आवश्यक नहीं कि उनके साथ वाक् युद्ध में अपनी शक्ति घटाओ और समय बर्बाद करो ।

           सरदार खरी बात कहने और काम करने में किसी का दबाव स्वीकार नहीं करते थे, ऐसा नहीं कि वे हठवादिता के प्रतीक थे बल्कि वे समाज और राष्ट्र की नीतियों के अनुरूप निर्णय लेते थे । जिस बात को वे जनता व राष्ट्र के हित में समझते थे उन्हें लागू करने में कभी आलोचनाओं की परवाह नहीं करते थे ना ही कभी किसी से डरते थे ।
लौह पुरुष का मानना था कि जब हमारी शक्ति घटी संगठन कमजोर हुआ तभी विदेशियों को हम पर राज करने का अवसर प्राप्त हुआ । इस बात की पुनरावृत्ति ना हो इसलिए उन्होंने देश को बटने नहीं दिया ।सभी रियासतों को एक कर हमे संगठित और शक्तिशाली देश प्रदान किया ।

              इसी प्रकार हमे आजादी दिलाने में इन मतवालों ने कभी अपने प्राणों का बलिदान करने में विचार नहीं किया । आज हम इन्हे सम्मान तो जरूर देते है कभी किसी सड़क का नाम इनके नाम पर रखकर तो कभी प्रतिमाओं को बनाकर परन्तु क्या ये सच्ची श्रद्धांजलि है ? क्या हमे जो आज़ादी मिली है उसका शुक्रगुजार हमे नहीं होना चाहिए ?  क्या हम सच्चे अर्थो में इस आजादी की कीमत जानते है। ये बातें हमे सोचना चाहिए तब जब हम अपने देश और संस्कृति को तुच्छ बताते है । जब हम हिंदी भाषी नहीं अंग्रेजी का ही मान बढ़ाते है ।तब जब हम अपने देश की गरिमा के बारे में विचार नहीं करते और अन्य देशों का गुणगान गाते है । भारतीय संस्कृति और यह देश हमे कई वीरों के बलिदान के बाद प्राप्त हुआ है अब हमे इसे संवरना है इसे आगे बढ़ना है ,यही हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी उन वीरों के प्रति ।


28 comments:

  1. Nice article. Useful information

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  2. Nice going. U should write about other heroes as well.

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  3. Anjali your writing skills are commendable.
    Way to go

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  4. साहिल राठौड़August 3, 2020 at 8:56 PM

    बेहतरीन बहन। ये लोग हमारी संस्कृति और समाज के सच्चे योद्धा रहे हैं। सही लोगों का चयन किया आपने अपने लेख में।

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  5. शुक्र है बाजीराव को मस्तानी से अलग रख के पेश किया जाने लगा है। अन्यथा इन बॉलीवुड भांडों ने तो हमारे समाज का बेड़ा गर्क करने का पूरा इंतजाम किया हुआ है।।
    जय भवानी।।।

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  6. It is a very important article and everyone should give a read to it

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  7. Indian land is overwhelmed with such brave and great personalities... nice and crisp article

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  8. Bahut acha likha bua apne

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  9. very fruitful information....keep it up

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  10. Literary treat and full of relevant information. Expect more write ups in future.

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  11. Beautifully quoted the great personalities didi. Well done. Keep it up.

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  12. Great work ... keep us reminding that it was not easy to get freedom

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  13. Great going. We should keep them in our memory.

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  14. Wonderful words lined up in this article.. Keep going👍..

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  15. This is very important to know for everyone n you did it... Very nice keep going.

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  16. Very important article every one should read such articles keep on writing

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  17. Very well written... Hope to see your next blog soon

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  18. इस तरह के और लेख पढ़ने का अभिलाषी।

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