स्वतंत्रता के प्रति हमारे दायित्व - by Anu Pal


भारत आगामी 15 अगस्त को अपना 73वां स्वतंत्रता दिवस मनाने जा रहा है। ऐसे में ये बात विचारणीय है कि आज के समय में इस स्वतंत्रता का महत्व हमारे हृदय में कितना प्रासंगिक है। हम इसे कितना सम्मान देते हैं। 73 वर्ष एक लंबा अरसा होता है। सोचने वाली बात ये है 1947 से लेकर आज तक देश का सफर किस तरह रहा है। उस समय के देश के कर्णधारों ने जो रोडमैप तैयार किया था क्या देश उसपर अमल कर पाया है। अगर ईमानदारी से इस प्रश्न का जवाब दिया जाए तो इसका जवाब 'ना' ही होगा। गौरतलब है कि उस वक्त जो समस्याएं देश में विद्यमान थी वो आज भी जस की तस बनी हुई हैं। हम उन समस्याओं का समाधान करने में असमर्थ रहे हैं। आज भी हमारे देश में भूख, गरीबी, अशिक्षा और पिछड़ापन गहरे तक अपनी पैठ बनाये हुए हैं। हम अक्सर इन समस्याओं के लिए सरकार को दोष देते हैं लेकिन कभी अपने स्तर पर इन समस्याओं के समाधान की कोशिश नही करते। क्या इन समस्याओं को सुलझाना सिर्फ सरकार की ही जिम्मेदारी है।


                       ये एक बहुत ही कड़वा और दुःखद यथार्थ है कि आजकल हमारी देशभक्ति सिर्फ सोशल मीडिया तक ही सिमट कर रह गयी है। हमने वहाँ राष्ट्रवाद का झंडा ऊंचा किया हुआ है। अक्सर स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के अवसर पर हम पूरे जोश- खरोश के साथ सोशल मीडिया पर अपने आपको सच्चा देशभक्त साबित करने की कोशिश करते हैं, नारे लगाते है, तिरंगे के साथ तस्वीरे साझा करते हैं। मगर बात जब असल जिंदगी की आती है तो वास्तविकता कुछ और ही है। आये दिन हम कुछ न कुछ ऐसा करते रहते हैं जो हमारे अच्छे नागरिक होने पर सवालिया निशान लगा देता है। 


                          हम सभी भलीभांति जानते हैं हमारे देश का संविधान हमें कुछ मूल अधिकार देता है, जिनका हम भरपूर उपयोग करते हैं। अगर उन अधिकारों पर कोई आंच आती है तो हम विद्रोह कर देते हैं। मगर इन मूल अधिकारों के साथ-साथ हमारे संविधान में हमारे लिए कुछ नागरिक कर्तव्य भी निर्धारित किये गए हैं। हममें से कितने लोग उन कर्तव्यों पर निष्ठा से अमल करते हैं। राष्ट्रीय प्रतीकों का सम्मान करना, सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा करना, आपस में प्रेम व सद्भावपूर्ण व्यवहार करना, ये हमारे नागरिक कर्तव्यों में प्रमुख हैं, मगर क्या हम इन कर्तव्यों का ठीक से पालन करते हैं। अगर आज के परिपेक्ष्य में देखा जाए तो हम लोग सिर्फ देश का माहौल खराब करने में लगे हैं। हमारे वक्तव्य और क्रियाकलाप अक्सर देश में अशांति फैलाते हैं। हम लोग आये दिन सोशल मीडिया पर किसी धर्म विशेष के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणी करके देश का सौहार्द बिगाड़ते है। कोई हमें रोकने की कोशिश करे तो हम अभिव्यक्ति की आज़ादी के हनन की दुहाई देने लगते हैं। इस तरह देश असहिष्णुता का वातावरण बनाकर हम विश्व पटल पर देश की छवि धूमिल करते हैं। 

       अगर सरकार या तंत्र द्वारा कोई नियम या कानून बनाया जाता है और हम उस नियम से सहमत नही होते हैं तो अक्सर हम उसके विरोध में सड़कों पर उतर जाते हैं। हम हिंसा का सहारा लेते हैं, आवागमन के रास्तों को बंद करना, सरकारी सम्पत्तियों की तोड़फोड़ करना, वाहनों व भवनों में आगज़नी करना इत्यादि बर्बर तरीकों का प्रयोग करते हैं। जबकि एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते हमारा कर्तव्य है कि हम अपने विचारों को शांतिपूर्ण तरीके से रखें।


             ये तो कुछ बड़े उदाहरण की बात हैं, लेकिन देखा जाए तो हम अपने छोटे-छोटे कर्तव्यों की भी अनदेखी करते हैं जो कि देश और समाज को गहरे रूप से प्रभावित करते हैं। यातायात के नियमों का उल्लंघन, अपने शहरों व सार्वजनिक स्थलों पर गंदगी फैलाना, रिश्वत व भ्रष्टाचार को बढ़ावा देना कुछ ऐसे कृत्य हैं जो एक नागरिक के तौर पर हमें कठघरे में खड़ा करते हैं। ये कुछ ऐसी चीज़ें हैं जिनपर ठीक से अमल करके हम व्यक्तिगत तौर पर देश के उत्थान में सहयोग कर सकते हैं। 


         कमियां किसी भी देश या समाज का हिस्सा होती  हैं। लेकिन ये भी एक सच है कि प्रत्येक कमी से पार पाया जा सकता है, अगर उस देश के नागरिक अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह तत्परता से करें। अगर हर नागरिक अपने स्तर पर किसी एक बच्चे की शिक्षा की जिम्मेदारी ले तो देश से अशिक्षा को कम किया जा सकता है। अगर हम अपने आसपास मौजूद गरीब परिवार की सहायता तो करे तो भूख और लाचारी को खत्म किया जा सकता है। हमारी इस तत्परता से सरकार को भी सहयोग मिलेगा और उन्हें अपनी जिम्मेदारियों के प्रति सजग भी होना होगा। हमारे प्रयासों से ही देश की स्वतंत्रता सही मायनों में सार्थक होगीं।



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