नारी शिक्षा - by Archana Joshi
नारी शिक्षा के बारे में क्या बात करें,जिस तरह अभिमन्यु ने मां के गर्भ में क्षिशा ग्रहण की उसी तरह हर नारी मां के पेट से शिक्षित होती है ,बस समय के साथ उसे किताबी ज्ञान होना चाहिए , इसलिए नारी को विधालय जाके शिक्षित होना अनिवार्य है। आज नारी सुशिक्षित है अपना भला बुरा अपनी योग्यता से वाफिक है। किसी भी क्षेत्र में नारी कम नहीं है नहीं कम आंकी जाती है बस उसको जानने की जरूरत होती है , बड़े से बड़ा या छोटा से छोटा काम करना हो कभी पिछे नहीं हटती ये अलग बात है कि उसे हर समय अपनों से अपने लिए ही संघर्ष करना पड़ता है और धोखा भी वह अपनों से ही खाती है पर हार कभी नहीं मानती।
अब यदि प्राचीन समय की बात कि जाए तो पर पर दादी नानी के बारे में सुना कि वे अनपढ़ रहती थी, पर उन्हेंं सब प्राचीन ग्रंथ उन्हें कंठस्थ रहते थे। और हर चीज का हल चुटकियों में निकाल लेती थी। चाहे कुछ मंगाना हो या कोई संदेश भेजना हो अपने पारंपरिक तरीके अपना लेते थे। पहले नारी घर में ही रहकर सारे काम किया करती थी ।नारी अगर लिखना पढ़ना नहीं जानती थी तो विचार करिए कि वह किस तरीके से रूपए पैसे का ध्यान रखती थी किसी चीज को गिनना हो तो वह कैसे गिन लेती थीं। सूरज की धूप और सांझ का दीपक जला कर दिन नाप लेती है नारी तो शिक्षित होती है जन्म से पर उसे जागृत करने की जरूरत है।
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आज आप कभी बुजुर्ग महिला के पास जाकर बैठ जाइए वो अपने जमाने से आप को मिलवा देंगी। आज भी नारीया बड़े बड़े पदों पर आसीन हैं और अपने साथ साथ अपना घर और काम दोनो ही संभाल रही है , और यदि हम छोटे तबके की रानी की मध्यमवर्गीय परिवार के महिलाओं की बात करें तो फुटपाथ से लेकर बड़े बड़े स्टोर पर नारी सफल रही है। बस ये है कि नारी अपनी शक्ति और ताकत व्यक्त नहीं कर पाती है, वह भजन गा कर प्रार्थना कर के सब कुछ व्यक्त कर देती है नारी को कम आंकने वाले कभी प्राचीन ग्रंथ देखेंगे तो पता चलेगा कि हमेशा विपत्ति के समय शक्ति की उपासना हुईं है और उनके अनुसार ही श्रृष्टि का उद्धार हुआ है। अब हम नारी के सम्मान की बात करें तो नारी चाहे अनपढ़ हो या पढ़ी-लिखी उसे सम्मान के लिए लड़ना ही पढ़ता वह उसे आंसानी से नहीं मिलता है। नारी हर पल हर समय कुछ न कुछ सिखती ही रहती और सिखाती ही रहती है, रुप चाहे जो हो सकता है।
नारी शिक्षा क्या केवल नर्सरी से डिग्री तक पढ़ना ही शिक्षा कहलाता है?
ये मेरे समझ से परे है जो बड़ी बड़ी साध्वी हुईं है और कथा वाचन करती थी तो श्रोता भावविभोर होकर सुनते थे, प्राचीन समय में हर भाव होता था जिसे नारी व्यक्त करती थी। योग, वियोग श्रृंगार आदि अब मैं कुछ सिलसिले वार नारी शिक्षा पर व्यक्त करती हूं।
है नारी तुझे सौ सौ प्रणाम और मैं भी धन्य हुई कि मैं नारी हूं और शिक्षित हूं।
संघर्ष की और गर्व की बात यह कि मेरा विवाह कक्षा बारहवीं के बाद ही हो रहा था, पर मेरी मां मेरे लिए लड़ी और मैंने एम, काम तक शिक्षा ग्रहण की और जॉब भी कि अब मैं भी अपनी बेटियों को शिक्षित कर रही हूं जिससे उनका भविष्य संवर जाएगा।
छुटपन और स्वप्न-
जब हम कुछ समझदार होते हैं और खेलने लायक तो हमारे मम्मी पापा हमें पारम्परिक खेल नहीं खेलने देते हैं वर्तमान परिस्थितियों के अनुरूप ए बी सी डी या कलर गेम या फिर वन टू थ्री जैसे आधुनिक खेल सिखाते हैं आजकल तो कम्प्यूटर और लेपटॉप बच्चों के बारे हाथ का खेल हो गया है, मोबाइल से हर चीज चुटकियों में हल कर लेते हैं कई ऐप तो ऐसे होते हैं जिनके बारे में हम बड़ों को भी जानकारी नहीं होती है इसलिए बचपन से ही बच्चे बड़े बड़े स्वप्न देखने लगते, और फिजिकल फिटनेस के लिए वे स्कूल से ही कई आऊट डोर गेम खेलने लगे हैं, अपने माता-पिता के साथ देश की तरक्की की भी छुटपन से ही बच्चों के स्वप्न रूप में पुलकित होते हैं।
शिक्षा दीक्षा-
बेटियां बचपन से ही अपनी शिक्षा दीक्षा के लिए सचेत रहती है बस हर वक्त हर क्षेत्र में अव्वल आने की ठान कर धीरे धीरे संयमता के साथ माता पिता का ध्यान रखते हुए आगे बढ़ रही है। जहां तक बेटियां हैं अपने बल बूते पर पढ़ाई करती है,वे अपने लिए एक मुकाम शुरू से ही तय कर के चलती है और उसे पाकर ही रहती है। आज कि बेटियां हवाई जहाज धरती पर से नहीं देखती उसमें बैठकर उसे छू कर देखती है। उनके पास पंख तो थे पहले नारी को पंख खोलने की आजादी तो थी पर उड़ने कि इजाजत नहीं और अब उड़ने साथ साथ आसमां छूने की भी
कि जाओ बेटियों खूब अपने हिस्से का आसमां बटोर लाओ हर इजाजत है तुम्हे बस मुड़कर मत देखना सदा आगे बढ़ते रहना आज की बेटी कल की नारी होगी। हर शिक्षित नारी कल्याणकारी होगी।
शादी ब्याह-
आज बेटियां बेबाकी पन से विवाह के लिए मना कर देती है कि जब तक जांब न लगेगी मैं शादी नहीं करूंगी। घर तो संभालूगी पर समान्न के साथ माता पिता मैं आप का भी ध्यान रखूंगी क्योंकि आज तो हर जगह नारी बराबर है न इसलिए शादी का फैसला मैं खुद लूंगी जब काबिल हो जाऊंगी। बहुत ही गर्व महसूस होता है कि जिम्मेदार होती हुई बेटियां और भी जिम्मेदार हो जाती है।
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क्षेत्र विस्तार-
नारी के क्षेत्र विस्तार के लिए कोई जगह ही शेष नहीं रह गई है। घर से लेकर आंगन तक सूई से लेकर आसमान तक जब नारी सूर्योदय के पहले से उठती है, आंगन संवारती पूजा पाठ और खुद तैयार हो नाश्ता परोसती है तो अन्नपूर्णा सी लगती है और जब कम्प्यूटर पर बैठकर आफिस का काम करती है , तो लक्ष्मी सी बच्चों के विधा अधययन के समय वह सरस्वती बन जाती है,।
मजाल है उसे या उसके परिवार को कोई कुछ कह कर तो देखें काली से कम नहीं होती है , लाख लड़ लेंगे वह अपने परिवार से पर व्रत पूजा उपवास सब वह अपने परिवार के लिए ही करती। सिर पर पल्लू रख कर आती है मजाल है सिर पर से हट जाए बस अंत में विदा हो जाती है,सारे आंसू सारे ग़म अकेले पी लेती है। हर क्षेत्र चाहे वह जीवन हो या रिश्ते बेहतरीन तरीके से निभाती है, मुझे तो नारी कहीं भी अशिक्षित नजर नहीं आती बस उसे जागृत होने और करने की जरूरत होती है। चाहे वह हांट बाजार हो , चाहे वह गांव शहर अगर नारी जागृत हो जाएगी तो कल्याण ही कल्याण होते है। जिस तरह नदी शांत रहकर बहती है तो बहुत ही सुन्दर लगती है अपनी मर्यादा में रहती है सब दूर भरा रहता है लेकिन जब बाढ़ आती है तो सब कुछ बहाकर ले जाती हैं।
इसलिए भारत वर्ष में नारी और शक्ति पूजा का महत्व है। हमें भी हमारे घर की स्त्रियों को यथोचित सम्मान देना चाहिए और बेटियों को शिक्षित करना ही चाहिए और हर समय उनके साथ खड़े रहना चाहिए, अब ये लाइनें नारी को ही बदलनी पड़ेगी कि नारी नारी की दुश्मन है। इसके जगह ये लाइनें जगह लेंगी कि नारी ही नारी कि सहयोगी है , एक महत्वपूर्ण बात है कि मुझे मोबाइल पर हिन्दी लिखना नहीं आती थी और मोबाइल चलाना भी ये सब मुझे मेरी बेटियों ने ही सिखाया है ,
आज समाज भी धीरे धीरे ही सही बेटा बेटियों के फ़र्क से उबर रहा है और आगे बढ़ कर बेटियों का टिकाकरण और अच्छी से अच्छी शिक्षा पर ध्यान दें रहा। नारी के बारे में जितना चाहे लिख सकते हैं क्योंकि कि नारी मै कुछ कमी नहीं है। वह हमेशा हर रुप में पूजनीय वंदनीय है।
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