करोनाकाल में शिक्षा और चुनौतीयां - by Bhagat Singh


KB Writers

शिक्षक दिवस लेखन प्रतियोगिता

प्रतियोगीता संख्या - 2

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प्रतिभागी का नाम - Bhagat Singh


करोनाकाल मे पूरे विश्व को अनेक गंभीर चुनोतियों का सामना करना पड़ रहा है। करोना महामारी ने एक और जहां विश्व भर मे अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ कर रख दी है । वही दूसरी और किसी भी देश की रीढ़ कहे जाने वाली शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को भी भारी नुकसान पहुंचाया है। इस महामारी ने पूरे विश्व को आत्मनिर्भर होने का संदेश दिया है। अब वह उस देश की सत्ता पर निर्भर करेगा कि वह क्या नीति निर्धारित करेगा। लगभग एक ही समय मे पूरे विश्व लॉकडाउन होना इस बात स्पष्ट संदेश देता है जो देश आत्म निर्भर होगा वहीं देश तरक्की की सीढ़ियां चढ़ेगा। हमारे देश मे पहले से ही शिक्षा का ढांचा लचर है । ऊपर से ये महामारी ने हमारी शिक्षा नीति की पोल खोल दी है। जो बच्चे शिक्षा के साथ स्कूलों मे बटने वाले भोजन पर ही निर्भर थे उन बच्चों की दशा बेहद खराब हुई है । शिक्षा के साथ साथ गरीब बच्चों को स्वास्थ्य संबंधित परेशानीयों से भी दो चार होना पड़ रहा है।


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शिक्षा को जारी रखने मे स्कूलों, विश्वविद्यालयों , शिक्षकों , विद्यार्थियों एवं बच्चों के माता पिता को भारी चुनोतियों व समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। सरकारी एवं गैर सरकारी स्कूलों व विश्विद्यालयों मैं एक और फंड की समस्या है तथा दूसरी ओर शिक्षा का स्तर बनाये रखना भी बडी चुनोती है। गैर सरकारी स्कूलों एवं विश्विद्यालयों मैं शिक्षकों को परिश्रमिक कटौती व अपने पद बचाए रखने की कठिन परीक्षा से गुजरना पड़ रहा है।


कोरोना महामारी और उसके कारण लागू लॉकडाऊन का दौर बीतने के बाद स्कूल और कालेजों मे स्थायी तकनीकीकरण करना, छात्र छात्राओं , अध्यापकों को प्रशिक्षण , ऑनलाइन माध्यम से कक्षाएं चलाना, शिक्षा स्तर को बनाये रखना व परीक्षाएं अयोजित करना प्रमुख है। डिजिटल माध्यम से पढ़ाई के कारण छात्र छात्राओं, अध्यापकों को स्वास्थ्य संबंधित समस्याओं का भी सामना करना पड़ रहा है। शैक्षणिक लक्ष्यों को हासिल करने के लिए शिक्षामंदिरों को एक नई प्रकार लड़ाई लड़नी पड़ रही है। देश में ऑनलाइन शिक्षा के लिए अनिवार्य बिजली , दूर संचार एवं  इंटरनैट  की व्यापक पहुंच जो पहले ही बेहद संकुचित है को व्यवस्थित करना  प्रमुख चुनोतियों मे से एक  है। 


पूरे विश्व मे  क्लासरूम पढ़ाई को फिर से शुरू जाना और क्लासरूम पढ़ाई के अलावा अन्य विकल्पों पर भी विचार विमर्श व मंथन चल रहा है कैसे इस आपात समय मैं छात्रों के स्वास्थ्य के साथ साथ क्लासरूम पढ़ाई  को फिर से शुरू किया जा सके। शहरों मे तो किसी प्रकार व्यवस्था हो भी पा रही है। परंतु दूर दराज के गाँवों  मे जहां प्राकर्तिक समस्याएं, बिजली , कंप्यूटर , मोबाइल व नेटवर्क की व्यवस्था निश्चित नही है वहां शिक्षा मुहैया करना सरकार के लिए सिर दर्द साबित हो रही है। 


देश के शिक्षा संस्थानों के लिए यह एक बेहतर मौका है । जब हम अपनी शैक्षणिक गुणवत्ता के स्तर को  सुधार सके । डिजिटल माध्यम द्वारा हर वर्ग तक शिक्षा का प्रसार करना वह भी क्लासरूम शिक्षा के समान गुणवत्ता भी बरकरार रहेगी यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए।


शैक्षणिक प्रणाली मे आवश्यक बदलाव करना ताकि शिक्षा का नुकसान न हो सके। सलेबस कम करके अथवा बिना परीक्षाओं के विद्यार्थियों को पास करके आगे की क्लासों बढना भी शिक्षा के साथ खिलवाड़ होगा। 


छात्रों द्वारा इंटरैक्टिव ऐप के माध्यम से घर पर रहकर ही पढ़ाई करना  बेहद जरूरी हो गया है। पढ़ाई मे प्रयोग की जा रही डिजिटल प्रणालीयों को अपनी शिक्षा के जरुरतों के हिसाब से , शिक्षक व छात्र छात्रोंओ को ध्यान मे रखकर , विभिन्न भाषाओं मैं अपने देश मे ही विकसित किये जाने की जरूरत है ताकि  विदेशी कंपनियों पर निर्भरता से बचा जा सके ।


करोनाकाल के साथ साथ  शिक्षा के स्तर को बनाये रखने मैं शिक्षकों की भूमिका अति महत्वपूर्ण है। एक और उन्हें अपने आपको डिजिटल उपकरणों के साथ पढ़ाई के सामंजस्य को व्यवहारिक बनाना है । खुद को विकसित करना है साथ ही छात्र छात्राओं को डिजिटल शिक्षा ग्रहण करने के अनुकूल बनाना है तथा क्लासरूम शिक्षा के समान गुणवत्ता के स्तर को भी बनाये रखना है।


कोरोना महामारी और उसके कारण लागू लॉकडाऊन का दौर बीतने के बाद स्कूल और कालेजों मे स्थायी तकनीकीकरण करना, छात्र छात्राओं , अध्यापकों को प्रशिक्षण , ऑनलाइन माध्यम से कक्षाएं चलाना व परीक्षाएं अयोजित करना प्रमुख है। 


हमारे देश में महामारी  का संक्रमण ग्राफ लगातार बढ़ रहा है अगर महामारी का प्रभाव लंबे समय तक रहता है तो शिक्षा पर इसके दूरगामी परिणाम होंगे अब ये हमारी शिक्षा नीति पर निर्भर करेगा कि इस नई चुनोती को कैसे स्वीकार करेगा । हमारे प्रधानमंत्री जी के कथनानुसार यह एक अवसर की तरह है कि हमारी शिक्षा प्रणाली मैं व्यापक बदलाव हो ताकि हम भी विदेशी शिक्षा के समान अपने ही देश मे ढांचा तैयार करे ताकि हमारे देश के युवाओं का विदेशी महंगी पढ़ाई से मोह भंग हो सके। 


 आज देश का बड़ा हिस्सा बाढ़ के चपेट मे है। वहां पर बच्चों की पढ़ाई पूरी तरह से चोपट हो गई है। न वहां पर बिजली की व्यवस्था है न डिजिटल उपकरणों की। वहां पढ़ाई को डिजिटल माध्यम से पटरी पर लाना अपने आप मे एक चुनौती होगी। 


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जो छात्र छात्राएं या उनके माता पिता सामर्थ्यवान नही है कि डिजिटल पढ़ाई के लिए महंगे दामों वाले उपकरण खरीद सके । उन सबको भी ध्यान में रख कर नए रास्तों पर विचार किया जाना चाहिए। अगर संभव हो सके  तो गरीब बच्चों को आर्थिक मदद दे जाने चाहिए। 


लाइव टेलीविजन प्रसारण के माध्यम से शिक्षण कार्य सुलभ कराना। टेलीविजन प्रसारण के माध्यम से शिक्षा की पहुंच दूर दराज तक संभव हो सकती है ।दूरदर्शन व अन्य टेलीविजन चैनलों कम से कम प्राइमरी स्कूलों की कक्षाओं को आरम्भ किये जाने की आवश्यकता है। टेलीविजन का व्यापक पहुंच घर घर तक पहले से ही है । इस कारण अगर शिक्षण कार्य का प्रसारण किया जाता है तो यह शिक्षा क्षेत्र मे क्रांतिकारी परिवर्तन साबित हो सकता है।


करोनाकाल मे गरीब परिवारों की आर्थिक स्थिति बदतर हुई हैं । इस समय काफी लोगों का रोजगार प्रभावित हुआ है । काफी बड़ी संख्या मे परिवारों का पलायन भी हुआ है । अगर करोनाकाल लंबे समय तक चला तो एक बड़ी संख्या में गरीब बच्चों का वापस शिक्षा के लिए लौटना मुश्किल होगा। 


दूरस्थ शिक्षा को पूर्णमान्यता एवं शिक्षा का व्यापक प्रचार प्रसार तेज करना होगा। ताकि देश के कोने तक वंचित छात्र छात्रायें इस शिक्षा के माध्यम से शिक्षा प्राप्त कर सकेंगे। छोटे व स्किल्ड ऑनलाइन कोर्सेज को लेकर भी शिक्षा मैं काफी बदलाव करने होंगे । ताकि स्किल्ड विषयों मे शिक्षा के बाद  भविष्य मे रोजगार की बाधा से भी पार पाया जा सके।


लेखक- भगत सिंह (द्वारका,नई दिल्ली)


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