भारतीय संस्कृति - by Geeta Singh
हमारा प्यारा भारत देश। परंपरा व संस्कृतियों का अनूठा संगम। पूरब से पश्चिम, उत्तर से दक्षिण तक प्रत्येक स्थान पर अलग अपनी विशेषता लिए हुए, फिर भी एक ऐसा प्यारा हमारा भारत देश। हमारे देश की संस्कृति पूरे विश्व से सबसे प्राचीन एवं प्रसिद्ध संस्कृति है। हमारी संस्कृति सबसे ज्यादा संपन्न और समृद्ध है। हमारे देश की संस्कृति की मूल पहचान है "विभिन्नता में एकता"। वैदिक ज्ञान, अध्यात्मिकता, योग सूत्र, विभिन्न धर्मों का समागम, धर्मनिरपेक्षता, आयुर्वेद और दैविय महात्माओं से सुसंपन्नता।
सभी धर्मों का समागम है हमारे देश में। सभी को समान भाव से देखा जाता है। हम भारतीय एक दूसरे के धर्मों का आदर करते हैं और मिलजुल कर रहते हैं। सभी भावात्मक और सांस्कृतिक रूप से एक दूसरे से जुड़ कर एक नए "भारत धर्म" का निर्माण करते हैं। चाहे वह हिंदू हो या मुस्लिम, चाहे सिख हो या इसाई, हमारे भारत देश में भाई बंधु की तरह रहते हैं। इसके अतिरिक्त बौद्ध धर्म और जैन धर्म भी हुए हैं।
इसी कारण हमारे देश के संविधान में राष्ट्र को एक "धर्मनिरपेक्ष गणतंत्र राष्ट्र" घोषित किया गया है। जिसमें प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म का स्वतंत्रता पूर्वक पालन करने का तथा उसका प्रचार करने का अधिकार है हमारे देश के संविधान में धार्मिक स्वतंत्रता को "मौलिक अधिकार" माना गया है।
पूरे विश्व में हमारे प्यारे देश के त्यौहार प्रख्यात हैं। प्रत्येक वर्ष त्योहारों के समय पर विदेशी सैलानियों का जमावड़ा होता है। हमारी रंग बिरंगी संस्कृति का अवलोकन पूरी दुनिया करती है। त्यौहार का नाम आते ही मन में ढेर सारा उत्साह, नई ऊर्जा, जीवन की उदासी दूर भगा इंद्रधनुष्य रंग बिखर जाते हैं। ऐसा ही है मेरा देश। आज पूरे विश्व में भारतीय त्योहारों की चर्चा होती है। दीपावली, रक्षाबंधन, होली, दशहरा आदि कुछ ऐसे त्यौहार है जो पूरे देश में मनाए जाते हैं। प्रत्येक राज्यों के भी अपना अलग प्रमुख त्यौहार हैं। जैसे:-
आंध्र प्रदेश का मुख्य त्यौहार है ब्रह्मोत्सवम- इसमें ब्रह्मा जी को धन्यवाद दिया जाता है।
अरुणाचल का प्रमुख त्योहार है लोसार महोत्सव- इसमें पहले मठ में पूजा, फिर घर के मंदिर में प्रसाद चढ़ाया जाता है।
असम का मुख्य त्यौहार है भोग बिहू- यह असमिया नववर्ष की शुरुआत का प्रतीक है। इसमें बिहू गीत गाया जाता है।
बिहार का मुख्य त्यौहार है छठ पूजा- इसमें महिलाएं व्रत रखती हैं और नदी में जाकर सूर्य को जल अर्पित करती हैं।
छत्तीसगढ़ का त्यौहार है बस्तर दशहरा- इसमें बस्तर के लोग जगदलपुर के दंतेश्वरी मंदिर में विशिष्ट पूजा करते हैं।
गोवा का गोवा कार्निवल- यह कैथोलिक त्यौहार है जिसमें परेड, रेलगाड़ियां तथा झांकियां लोकप्रिय हैं।
गुजरात का प्रमुख त्योहार है जन्माष्टमी उत्सव- इसमें भगवान कृष्ण के लिए व्रत करते हैं तथा गरबा खेलते हैं। यह पूरे देश में भी मनाया जाता है।
हरियाणा का त्यौहार है वैशाखी- फसल की कटाई के समय मनाते हैं। भांगड़ा तथा लोक नृत्य करते हैं।
हिमाचल प्रदेश का मुख्य त्यौहार है महाशिवरात्रि- इसमें भगवान शिव की पूजा की जाती है।
जम्मू कश्मीर का मुख्य त्यौहार है ईद-उल-फितर, ईद-उल-अजहा। मुस्लिम लोग रमजान के महीने में मनाते हैं। तथा बकरी भेड़ की बलि भी देते हैं।
कर्नाटक का मुख्य त्यौहार है उगादि- यह ब्रह्मा जी का है।
केरल का मुख्य त्यौहार है ओणम- यह 9 प्रकार के व्यंजनों और सब्जियों से मनाया जाता है।
मध्य प्रदेश तथा उत्तर भारत में दिवाली मनाई जाती है।
महाराष्ट्र में गणेश चतुर्थी मनाई जाती है।
मणिपुर राज्य में याऐशंग उत्सव मनाया जाता है।
मेघालय में नोंगकर्म मनाया जाता है।
मिजोरम का प्रमुख त्योहार है चपचार कुट उत्सव- परंपरागत गीत गाते हैं और लोक नृत्य करते हैं।
नागालैंड का प्रमुख त्योहार होर्नीवल है - इसमें नागा कुर्ती खेल और पुष्प शो किया जाता है।
उड़ीसा का मुख्य उत्सव है राजा परबा- यह पृथ्वी देवी को समर्पित है।
पंजाब का मुख्य त्योहार है लोहड़ी- शाम को लोहड़ी जलाते हैं और रेवड़ी बांटते हैं।
राजस्थान का मुख्य त्यौहार है गणगौर- यह माता पार्वती के सम्मान में मनाया जाता है।
सिक्किम का मुख्य उत्सव है सागा दावा- इसमें भगवान बुद्ध के ज्ञान समर्पण में समारोह किया जाता है।
तमिलनाडु का प्रमुख त्योहार है पोंगल- यह फसल उत्सव है। पोंगल मनाया जाता है और मिठाई बटती है।
तेलंगाना का मुख्य त्यौहार है बोनालु- इसमें महाकाली की पूजा की जाती है।
त्रिपुरा का मुख्य त्यौहार है खारची पूजन- यह 14 देवी देवताओं का पूजन है।
उत्तर प्रदेश का मुख्य उत्सव है नवरात्रि उत्सव- इसमें दुर्गा माता के नौ रूपों की पूजा की जाती है।
उत्तराखंड का मुख्य त्यौहार है गंगा दशहरा- इसमें गंगा मैया की पूजा की जाती है। गंगा स्नान करते है।
पश्चिमी बंगाल का उत्सव है दुर्गा पूजा- इसमें दुर्गा मां की पूजा की जाती है। हमारा देश त्योहारों का देश है। त्योहारों में भारतीय संस्कृति की अद्भुत व अकल्पनीय छाप मिलती है।
हमारे देश में अनेकोनेक भाषाएं एवं बोलियां बोली जाती हैं। फिर भी भावनात्मक रूप से सभी एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। हमारे देश की विशेषता है कि यहां विभिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न बोली व भाषाओं का प्रयोग किया जाता है, परंतु सार एक, भाव एक। संविधान में 22 भाषाओं को भाषा का अधिकार प्राप्त है। सरकारी कामकाज में प्रयोग में होने वाली दो भाषाएं हैं- हिंदी और अंग्रेजी। हिंदी भाषा हमारे देश की राजभाषा है। 14 सितंबर हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह हमारे देश के उत्तरी हिस्सों में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। 2011 की जनगणना के अनुसार 43.63 प्रतिशत नागरिकों ने इस भाषा को मातृभाषा घोषित कर दिया है। दूसरे स्थान पर आती है, अंग्रेजी भाषा।
यह पूरे देश में कहीं कम, कहीं ज्यादा बोली जाती है। इसके बाद बंगाली, मराठी, तेलुगू, तमिल, गुजराती, उर्दू, कन्नड़, ओड़ियां, मलयालम, पंजाबी और संस्कृत अलग-अलग स्थानों पर बोली जाती हैं। भाषाओं के साथ-साथ अनेक बोलियां भी बोली जाती हैं। जिन्हें 'उपभाषा' भी कहा जाता है। भारत देश में कुल 18 उपभाषाएं या बोलियां हैं। जिनमें अवधी, ब्रज भाषा, कन्नौजी, बुंदेली, बघेली, भोजपुरी, हरियाणवी, राजस्थानी, छत्तीसगढ़ी, मालवी, नागपुरी, खोरठा, पंचपड़गानिया, कुमाऊनी, मगही आदि मुख्य हैं। विभिन्न प्रकार की भाषाएं बोली जाने के बाद भी हमारे देश को एक "हिंदी भाषा राष्ट्र" कहा जाता है।
भारतीय संस्कृति के अनूठे दर्शन मिलते हैं। परंपरागत भारतीय नृत्यकला में अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग नृत्य हमारे देश की प्राचीन, वैदिक परंपरा है। स्वर्ग में अप्सराओं से लेकर धरती की मनमोहक नृत्यांगनाओं तक, यह विभिन्न संस्कृति पर प्रकाश डालता है। नृत्य कला हमारे देवी-देवताओं की प्रिय है। भगवान शिव को तो 'नटराज' कहा जाता है। इसका मनोवैज्ञानिक पक्ष है कि यह मनोरंजन के साथ-साथ योग, मोक्ष का साधन भी है। नित्य करने से मन को शांति मिलती है। विशेष ऊर्जा उत्पन्न होती है और शरीर को स्वस्थ रख पाते हैं। भगवान कृष्ण भी 'नटवर' नाम से प्रसिद्ध हैं। वे रासलीला करते थे और आध्यात्मिक स्वरूप को पाते थे।
हमारे देश के प्रमुख नृत्य दो प्रकार के हैं- शास्त्रीय नृत्य तथा लोक नृत्य। हाल फिलहाल एक नई शैली विकसित हुई है- बॉलीवुड नृत्य की। इसमें देशी-विदेशी समन्वय हैं। प्राचीन नृत्य शैलियों में प्रमुख है कथक। यह उत्तर प्रदेश और राजस्थान की नृत्य शैली है। हमारे प्राचीन ग्रंथ 'महाभारत' में भी इसका उल्लेख मिलता है। कृष्ण कन्हैया तथा राधा रानी इस शैली में नृत्य किया करते थे। आज के समय में 'बिरजू महाराज जी' कथक के बहुत बड़े गुरु हैं।
उड़ीसी उड़ीसा का प्रमुख नृत्य है। प्रारंभ में मंदिरों की देवदासियों के द्वारा किया जाता था। वहां के शिलालेखों में इसका वर्णन मिलता है। इनमें ब्रह्मेश्वर मंदिर प्रमुख है। इस नृत्य का प्राचीन नाम ओरिसी है। इसका प्रदर्शन नृत्य नाटिका शैली है। ओडीसी की मूल आकृति है भांगो। इसके एक संयोजन के रूप में सीखा और निष्पादित किया जाता है। लयबद्ध संगीत प्रतिध्वनि के साथ पूर्ण अभिव्यक्ति और दर्शकों से जुड़ाव। यह नाट्य शैली पर आधारित है। भरतनाट्यम एक दक्षिण भारत की शैली है इसमें 3 कलाएं जुड़ती हैं,
- भावन, रागम, तालम। यह भरतमुनि के नाट्यशास्त्र पर आधारित है। सबसे पहले तमिलनाडु में देवदासियों द्वारा इस नृत्य को किया गया। इसलिए वहां के लोग इसे हेय दृष्टि से देखते थे। कृष्ण अय्यर और रुकमणी देवी ने अथक प्रयास किए इसे स्थापित करने में। यह नृत्य और अभिनय से मिलकर बनी शैली है। इस शैली में शारीरिक प्रक्रिया तीन भागों में बटी होती हैं - संमभंग, अभंग, त्रिभंग। इस शैली में वंदना की जाती है। जो संस्कृत, तेलुगु तथा तमिल भाषा में की जाती है। कूचीपूड़ी आंध्र प्रदेश प्रसिद्ध नृत्य है। कुचिपुड़ी गांव के नाम पर इसका नाम पड़ा। प्राचीन काल में यह पुरुषों द्वारा किया जाता था और ब्राह्मणों का एकाधिकार था। बाद में इसे एक कृष्ण भक्त सिद्ध्र्वेंद योगी ने पुनर्स्थापित किया था। मणिपुरी- यह नृत्य शैली विशेषतः मणिपुर प्रदेश की है। इस शैली में राधा और गोपियों का कृष्ण से अलग होने की व्यथा प्रदर्शित होती है। यह शैली रासलीला पर आधारित है। इस शैली में मुख्य अभिनय को ज्यादा भाग नहीं दिया जाता। एक ही निश्चित रस को संप्रेषित करने के लिए शरीर के संपूर्ण भाग का उपयोग किया जाता है। कथकली- यह केरल की प्रसिद्ध नृत्य शैली है। इस शैली में रंगीन परिधानों का विशेष महत्व है। इस शैली में कथा संदर्भों का हस्त मुद्राओं के द्वारा अभिनय प्रस्तुत किया जाता है। इसमें कलाकार ना बोलते हैं ना गाते हैं। इसका साहित्यिक रूप अट्टक्कथा है। इस शैली में कथा का विषय भारतीय इतिहास से लिया जाता है।
हमारी भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है 'आध्यात्मिकता'। प्राचीन काल में ऋषिमुनि, तपस्वियों की तपोभूमि 'भारत' में योग तथा आध्यात्मिकता व्याप्त है। शुद्ध सात्विक विचार, स्वच्छता, चिंतन मनन तथा आत्मा का परमात्मा में एक होना हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग है। अध्यात्मिकता स्थूल शरीर से सूक्ष्म की ओर का मार्ग है। अध्यात्म धर्म से परे है। अध्यात्म निराकार ब्रह्म को मानता है। हमारे देश में अनेकों मुनि हुए हैं जो अध्यात्म के द्वारा दिव्यदृष्टि तक जा पहुंचे हैं। अध्यात्म के द्वारा हमारे विचार, मन, वचन, कर्म सभी शुद्ध और सात्विक हो जाते हैं। वे व्यक्ति भौतिकता से बंधे नहीं रहते हैं। इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर लेते हैं। आध्यात्मिक व्यवहार में ध्यान, प्रार्थना, तथा चिंतन का समावेश है। वे नकारात्मक उर्जा से सकारात्मक उर्जा की ओर प्रस्थान करते हैं। इन सब मोह-माया से दूर, वे दैविय ऊर्जा में परिवर्तित हो जाते हैं। दृढ़ इच्छाशक्ति की प्राप्ति होती है। सत्य की प्राप्ति होने लगती है। अध्यात्म से संतुष्टि एवं मन शांति मिलती है। पूर्णता का एहसास होता है। स्वयं का स्वयं से साक्षात्कार होता है। आध्यात्मिकता से व्यक्ति के आंतरिक जीवन की अंतर यात्रा आरंभ होती है। जो व्यक्ति को परिष्कृत करके निर्मल बनाती है और आनंदमय करती है। इस स्थूल शरीर में रहकर भी व्यक्ति परमात्मा के विराट रूप को केवल अध्यात्मिकता द्वारा ही संभव है।
योग कला हमारे देश की ऐतिहासिक परंपरा है। आज हमारा देश ही नहीं अपितु पूरा संसार योग में विश्वास करता है। हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने योग को एक नया आयाम दिया। उन्होंने 21 जून को 'योग दिवस' के रूप में मनवाया और स्वामी रामदेव जी योगगुरु कहलाए। आज भारतीय संस्कृति को समस्त विश्व अनुकरण करता है। योग क्रियाएं शरीर को स्वस्थ रखने के साथ-साथ मन मस्तिष्क को भी स्वस्थ और ऊर्जावान रखती है। योग मुद्राएं शरीर को फुर्तीला बनाती हैं और आत्मविश्वास विकसित करती हैं। योग धर्म-जाति से परे, मूर्त से अमूर्त की ओर यात्रा है। प्राणायाम व्यक्ति को एक अलग स्तर पर ले जाते हैं। श्वास क्रिया से हमारे अंदर विशेष शक्ति उत्पन्न होती है जिससे आत्मविश्वास व दृढ़ इच्छा शक्ति बढ़ती है। योग क्रियाओं से विभिन्न प्रकार की असाध्य बीमारी जैसे: कैंसर, थायराइड, शुगर, बी०पी० तथा दिल की बीमारियां आदि पूर्ण रूप से ठीक हो जाती हैं। महर्षि पतंजलि ने योग को 8 भागों में बांटा है, जिसे "अष्टांग योग" कहा जाता है। यह है :- यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान तथा समाधि। महर्षि पतंजलि योग को इच्छाओं पर विजय प्राप्त करना बताते हैं। हमारे विश्व गुरु स्वामी रामदेव जी ने योग को घर-घर पहुंचाया। स्थान स्थान पर योग शिविर लगाए तथा टेलीविजन के द्वारा स्वामी जी ने योग को समस्त विश्व में व्याप्त कर दिया। विभिन्न प्रकार के आसन शरीर को रोगों से मुक्त रखते हैं।
लेखिका:- गीता सिंह (उत्तर प्रदेश)
शानदार अभिव्यक्ति
ReplyDeleteभारतीय संस्कृति पर सारगर्भित लेख।
ReplyDeleteवाह शानदार!
ReplyDeleteभारतीय संस्कृति का अनूठा सौंदर्य पूर्ण लेख
ReplyDeletenicely written,waah
ReplyDeleteअति उत्तम
ReplyDeleteअध्यात्म पर बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
लेख
में
देशप्रेम साफ झलक रहा है।
इसको कहते हैं छिपा हुआ कलाकार
very good
ReplyDelete👌👌
ReplyDeleteBHOT SUNDAR
ReplyDeleteबहुत अच्छा प्रयास
ReplyDeleteसर्वोत्म लेख है।
ReplyDeleteयोग और योगा का बहुत ही पावरफुल विश्लेषण किया है।
आप तो भारत रत्न पुरस्कार के काबिल है ।
मेरी दुआएं आपके साथ है ंं
आप इसी तरह आगे बढ़ती रहें।
आपकी प्रतिभा को निखारने में भगवान आपका साथ दें।
nice
ReplyDeleteभारतिय संस्कृति का सुन्दर वर्णन
ReplyDeleteSuperb Mam!!
ReplyDeleteबहुत ही प्रभावशाली लेखन
ReplyDeletegood
ReplyDeletevery nice
ReplyDeletebahut achha🙏🙏
ReplyDeleteवाह शानदार
ReplyDeleteबहुत अच्छा लेखन
ReplyDeleteਬੋਹੋਟ ਵੜਿਆ
ReplyDeleteवाह अति सुन्दर वर्णन भारतीय संस्कृती का
ReplyDeleteसपष्ट प्रस्तुति
कमाल
ReplyDeleteToo Good
ReplyDeleteWOW👌
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