शिक्षा का महत्व - by Gokul Kandpal
KB Writers
शिक्षक दिवस लेखन प्रतियोगिता
प्रतियोगिता संख्या- 2
प्रतिभागी का नाम - Gokul Kandpal
शिक्षा एक ऐसा भाव जिस से आज कोई भी अनभिज्ञ नहीं है। रोटी, कपड़ा, मकान के साथ अगर हम शिक्षा को भी जोड़ देते हैं तो इसमें हमें कोई भी अतिशयोक्ति नहीं होनी चाहिए। शिक्षा जिस के बगैर आज कोई भी क्षेत्र की कल्पना नहीं की जा सकती है। बिना शिक्षा के समाज का होना, अर्थ बिना मस्तिष्क के शरीर होना जैसा है। लेकिन आज शिक्षा को चंद किताबों तक समेट कर रख दिया है।
एक समय पर लोग कृषि कर अपने परिवार का पालन पोषण करते थे। और जिसमें हमें कोई भी डिग्रियों की जरूरत नहीं होती थी।
लेकिन आज कृषि के विषय में सोचने के लिए भी हमें कृषि विज्ञान से होकर गुजरना पड़ता है। अगर किसी किसान को किताबी ज्ञान न हो, और उसने अपने अनुभव के बल पर कृषि में महारत हासिल की हो, लेकिन समाज की नजर में काबिल व्यक्ति वही होगा जिसके पास कृषि के विषय में महत्वपूर्ण दस्तावेज हो। समाज में कुछ ऐसे ही विरोधाभास के कारण आज शिक्षा को विभिन्न प्रकार के तर्कों से परिभाषित किया जाता है।
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शिक्षा -
अगर मैं स्वयं के सूक्ष्म ज्ञान के अनुसार शिक्षा को परिभाषित करूँ तो इतना ही कहूँगा शिक्षा के बिना समाज की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। अर्थात बगैर शिक्षा के मनुष्य चार पैर वाले एक जीव के समान है। जो समाज के समक्ष स्वयं के विचार प्रस्तुत न कर दूसरों के विचारों का पालन करने के लिए सदैव विवश रहता है। लेकिन मेरा अर्थ शिक्षा से मात्र विद्यालय, विश्वविद्यालय, इंस्टिट्यूट से प्राप्त रंग बिरंगी महत्वपूर्ण दस्तावेज वाली शिक्षा नहीं है। बल्कि हमारे अच्छे बुरे अनुभव से प्राप्त शिक्षा जिस से हम समाज को एक सकारात्मक दिशा प्राप्त करवा सकते हैं। उस शिक्षित माँ के तरह जो स्वयं कागज में अंगूठा लगाकर अपनी संतान के हाथ में चमचमाती कलम थमा देती है।
वह शिक्षित पिता के तरह जो एक परिवार को जोड़ना सिखाता है न कि बिखराव करना। वह बड़ी बहन जो एक रोटी का निवाला अपने मुँह में डालने से पहले अपने छोटे भाई के चेहरे को निहारती है।
लेकिन आज इसे दुर्भाग्य कहें या एक महत्वपूर्ण नियम कि हमारे समाज में शैक्षिक योग्यता के अनुसार ही व्यक्ति के स्वाभिमान का आकलन किया जाता है। शायद इस महत्वपूर्ण नियम को हमारा समाज कभी तोड़ नहीं पाएगा। और सदैव इसका पालन सिर झुका कर करता रहेगा। एक सहज उदाहरण देते हुए मैं आप सभी सम्मानित पाठक पर छोड़ देता हूँ कि आप किस वर्ग को शिक्षित कहेंगे ?
उदाहरण -
एक शिक्षित व्यक्ति जिसने अपने जीवन में ढेरों डिग्री और भरपूर किताबी ज्ञान प्राप्त किया है।
वह सरेआम चौराहे पर यौन सूचक शब्दों का प्रयोग कर एक महिला पर व्यंग कस रहा है। और दूसरा व्यक्ति जिसे हम अनपढ़ कहते हैं वह इस कृत्य को न करने के लिए उसे बार-बार रोक रहा है। और उसके द्वारा न रुकने पर उसे कानून के भय का एहसास करवा कर दबाव डाल रहा है।
उपरोक्त उदाहरण के तौर पर शिक्षित व्यक्ति कौन है ? इस में भले ही अलग-अलग उत्तर आए, लेकिन सभ्य व्यक्ति कौन है इसका जरूर एक ही उत्तर आयेगा, और शिक्षा ही हमें सभ्य बनाती है, यह पंक्ति हमें कई किताबों में पढ़ने को मिलती ही है।
आज तक हमने अपने जीवन में छोटे बड़े सभी अनुभवों से क्या प्राप्त किया है। और उन अनुभवों का हमारे समाज को किस प्रकार लाभ मिल रहा है। अर्थात हम एक सभ्य समाज का प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से किस प्रकार निर्माण करते हैं, असल में शिक्षा का यही बहुत महत्वपूर्ण अर्थ व तत्व है।
धन और शिक्षा -
आज हमने शिक्षा को धन अर्जित करने का एक महत्वपूर्ण स्रोत मान लिया है।और माने भी क्यों ना ! बिना शैक्षिक योग्यता के आप कोई भी रोजगार में आवेदन नहीं कर सकते हैं। यहाँ तक कि पूर्ण अनुभव होने के बाद भी कई बार व्यक्ति दस्तावेज के कारण अपने रोजगार को प्राप्त करने से वंचित रह जाता है।
अगर हम कहें शिक्षा धन की एक कुंजी है तो गलत नहीं होगा, रोजगार के द्वारा धन अर्जित करने की यह परंपरा बहुत पुरानी है। इस परंपरा से शिक्षा का सार्थक प्रभाव जो कि हमारे समाज में नहीं पड़ रहा। लेकिन "शिक्षा को रोजगार से न जोड़ा जाए" यह कहना भी हास्यास्पद होगा, क्यों कि उपरोक्त विषय में हमने रोटी, कपड़ा, मकान के विषय में बात की थी वह हमें रोजगार के स्रोत से ही तो अर्जित होगा। और जो कि इस जग में रहने के लिए बेहद जरूरी भी है। लेकिन शिक्षा से मात्र धन अर्जित करना है इस वाक्य से मैं सहमत नहीं हूँ। और शायद आप भी ? शिक्षा से हमें रोजगार के साथ-साथ, एक सभ्य समाज के निर्माण में भूमिका भी निभानी होगी। जो कि पूर्ण रूप से शिक्षा के भाव को सार्थक करता है।
शिक्षा और व्यापार -
अगर हम शिक्षा की इकाई की बात करें तो मैं सर्वप्रथम उत्तराखण्ड के पहाड़ों की शिक्षा की बात करना नहीं भूल सकता हूँ। सरकारी प्राथमिक शिक्षा का हाल हद से बदतर होते जा रहा है। प्राइमरी स्कूल बंद होने के कागार में आ गए हैं। कई किलोमीटर पैदल चलकर निर्धन परिवार के बच्चों का स्कूल तक आना और फिर शिक्षा का मात्र बच्चों को पेट भर भोजन करवाने तक ही रह जाना, छात्र छात्राओं की संख्या भी दिन प्रतिदिन कम होते जा रही है। मैं इस विषय में कहकर आदर्श शिक्षकों पर कोई व्यंग नहीं करना चाहता हूँ। कई शिक्षक संपूर्ण समय देकर स्वयं की संतान की तरह अपने विद्यालय के बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए यथासंभव लगे रहते हैं। मैं बात कर रहा हूँ तो मात्र खोखली शिक्षा व्यवस्था की, सरकारी स्कूल की ऐसी हालत देख समान्य परिवार भी अपने बच्चों की भविष्य की चिंता कर न चाहते हुए उन्हें प्राइवेट स्कूल की ओर भेज रहे हैं। और फिर एक मध्यम वर्गीय परिवार बहुत मुश्किलों का सामना करते हुए। स्कूलों के भारी भरकम नियमों का पालन करने के लिए मजबूर हो जाता हैं। कई बुद्धिजीवी का कहना है कि अभिभावक की भी बहुत बड़ी गलती है कि वह अपने बच्चों को स्वाभिमान का आईना देखकर, प्राइवेट स्कूलों के की चकाचौंध में फँस कर, सरकारी स्कूल में प्रवेश नहीं करवाते हैं। तर्क कोई भी उचित हो लेकिन अंत में यह बात सत्य है कि पौराणिक काल में गुरुकुल के महत्व से परे आज बढ चढ़कर शिक्षा का व्यापार हो रहा है। और अभिभावक मजबूरन ग्राहक बने हुए हैं।
अगर हम शिक्षा की बात कर रहे तो गुरु शब्द को इस लेख से कैसे वंचित कर दें। गुरु अर्थात अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाना, भटके हुए को सही मार्ग पर ले जाना, लेकिन आज की शिक्षा के महत्व को देखते हुए यह सभी पंक्तियाँ एक हास्यपद सी लगती है। आज सभी के गुरु इंटरनेट और गूगल महाराज बन गए हैं। जिन से जब चाहे कोई भी शिक्षा अर्जित करें। नकारात्मक हो या सकारात्मक कोई भी आपको रोकने टोकने वाला नहीं,,
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मैं एक अदना सा लेखक अपनी बात आप तक पहुँचा पाया या नहीं, यह तो मुझे पता नहीं । लेकिन आज शिक्षा में से आदर्श व सभ्यता का महत्वपूर्ण तत्व धुँधला हो गया है, इस बात से शायद आप सब भी जरूर सहमत होंगे।
तो अंत में इतना ही कहूँगा एक आदर्श शिक्षित व्यक्ति की पहचान उसके महत्वपूर्ण दस्तावेज से नहीं होती बल्कि उसके सुंदर आचरण व कर्म से होती है क्योंकि वह स्वयं को शिक्षित बतलाने के लिए अपने डॉक्यूमेंट की माला बनाकर गले में नहीं डालता है।
शायद उपरोक्त पंक्तियों में मेरे द्वारा की गई बड़ी-बड़ी बातें भी मात्र एक किताबी ज्ञान हो, इससे समाज में तनिक भर भी परिवर्तन आए या न आए लेकिन एक लेखक के नाते अपना कर्तव्य तो हम सब को निभाना ही हैं।
बहुत सुंदर लिखा आप ने भाई जी, सारे बिंदु कवर कर दिए
ReplyDeleteशिक्षा के वास्तविक स्वरूप बेहतरीन व्याख्या...
ReplyDeleteबहुत सुंदर लिखा आपने।
Hirdesh Verma
ReplyDeleteबहुत सुंदर व्याख्या शिक्षा के स्वरूप की।
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteMeaningful lines....Worth reading....
ReplyDeleteMeaningful lines....Worth reading
ReplyDeleteMeaningful lines....Worth reading..
ReplyDelete👍👍👍👍👍👍
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