आदर्श शिक्षक के गुण - by Gunja Omprakash Singh

 


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शिक्षक दिवस लेखन प्रतियोगिता

प्रतियोगिता संख्या - 2

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प्रतिभागी का नाम -

Gunja Omprakash Singh



शिक्षा जीवन का महत्तवपूर्ण अंग है,और शिक्षक इस अंग का पोषककर्ता।जी हाँ संपूर्ण शिक्षण प्रक्रिया में अध्यापक की भूमिका सर्वाधिक महत्तवपूर्ण होती है।इतना ही नहीं बल्कि समाज में उच्च आदर्श स्थापित करने का कार्यभार शिक्षक के ही कंधों पर होता है।क्योंकि शिक्षक के आचरण,व्यवहार,क्रिया आदि का प्रभाव विद्यार्थियों पर पड़ता है।अपने संपूर्ण अध्यापनकाल में शिक्षक जाने कितने ही विद्यार्थियों को प्रभावित करते हुये पूरे समाज,देश और मनुष्य जाति का उद्धारक बन जाता है।


समाज उद्धारकार्य में अतुलनीय योगदान देने के कारण ही शिक्षक का दर्जा समाज में हमेशा से ही पूज्यनीय रहा है,यही कारण है कि कुछ विद्वानों ने "आचार्य देवो भव:" कहकर शिक्षक को ईश्वरतुल्य कहा है तो कबीर आदि सन्त कवियों ने अपने दोहों में गुरु को देव से भी ऊँचा स्थान दिया है।राष्ट्र निर्माण में शिक्षक अपने ज्ञानरूपी प्रकाश से ऐसा दीप प्रज्जवलित करता है जिसके अभाव में संपूर्ण राष्ट्र अज्ञानता के गर्त में डूब सकता है। शिक्षक अपने छात्र में ज्ञान का दीप जलाकर देश को उन्नति के शिखर पर ले जाता है।

शिक्षक को समाज का शिल्पकार कहा जाता है।एक शिक्षक उत्कृष्ट विचार और श्रेष्ठ गुणों से परिपूर्ण हो कुशल शिल्पी बन सकता है।


आदर्श शिक्षक के गुण:-

एक आदर्श शिक्षक जनमानस का नायक व राष्ट्र का उन्नायक होता है।समाज व देश के भावी निर्माण का कार्यभार शिक्षक के ही कंधों पर होता है।शिक्षक अपने इस कर्त्व्यनिर्वहन हेतु स्वयं तपकर अपने विद्यार्थियों को आत्मनिर्भर ,शिक्षित, व्यवसायकुशल एवं चरित्रवान बना समाज के सभी क्षेत्रों में उन्नति करने का अवसर प्रदान करता है।

समाज व देश कल्याण की भावना अंतर्निहित होने के कारण एक आदर्श शिक्षक का क्षेत्र अत्यंत विस्तृत हो जाता है।किसी भी सामान्य शिक्षक को आदर्श शिक्षक की कसौटी पर खरा उतरने के लिये निम्न गुणों का धनी होना पड़ता है-

1) अध्ययनशील-

सीखने की ललक छात्रों में जागृत करने हेतु शिक्षक का स्वयं अध्ययनशील होना अतिआवश्यक है।अध्ययन जीवनपर्यंत चलने वाली प्रक्रिया है। एक आदर्श शिक्षक को इस तथ्य का भान होना चाहिये।सतत अध्ययनशील शिक्षक अपना ज्ञान तो बढ़ाता ही है साथ ही वह अपने विद्यार्थियों को भी लाभान्वित करता है।

2) प्रभावी वक्ता-

संपूर्ण शिक्षण प्रक्रिया में शिक्षक मुख्य वक्ता के रूप में उभरता है अत: शिक्षक को अपना विषय इतने प्रभावी वक्तव्य में छात्रों के समक्ष परोसना चाहिये कि उसका स्वाद विद्यार्थियों के जहन में बस जाए । एक प्रभावशाली वक्ता ही अपने विषय के प्रति छात्रों में रुचि जागृत कर आदर्श शिक्षक बन सकता है।

3)  प्रेरक व्यक्तित्व-

अध्ययन के प्रारंभिक दिनों से ही विद्यार्थी अपने शिक्षक का अनुसरण करना प्रारंभ कर देते हैं।प्रत्येक शिक्षक अपने छात्रों के लिये प्रेरणास्रोत होते हैं।अत: अध्यापक को चाहिये कि वे महापुरुषों की भाँति संयम,सदाचार,विवेक,ज्ञान,सहनशीलता आदि से ओत-प्रोत गुणों का धनी होना चाहिये।क्योंकि शिक्षक का व्यक्तित्व छात्रों के सर्वांगीण विकास के लिये सर्वथा प्रेरणा का कार्य करता है इसलिये शिक्षक का व्यक्तित्व सदैव प्रेरणास्पद होना चाहिये।

4) समय का पाबंद-

"समय बड़ा बलवान होता है" इस मंत्र की महत्ता प्रत्येक आदर्श शिक्षक को भलीभाँति पता होनी चाहिये।जो शिक्षक समय का सदुपयोग करते हुये योजना बनाकर समयानुसार अपना पाठ्यक्रम पूरा करने में निपूर्ण होते है ऐसे शिक्षक हमेशा प्रशंसा के पात्र होते हैं।अत: प्रत्येक आदर्श शिक्षक में समय का पालन करने का गुण निहीत होना चाहिये।

5) कुशल नियोजक-

आदर्श शिक्षक समय का पाबंद अवश्य होता है साथ ही उसमे कुशल नियोजन कौशल का गुण भी होता है।ऐसे शिक्षक अपने समस्त पाठ का अध्यापन नियोजनबद्ध तरीके से करते हैं।इसके लिये पूर्व तैयारी की भी आवश्यकता होती है।शिक्षक को चाहिये कि कक्षा में पढ़ाये जाने वाले समस्त बिन्दुओं को योजनाबद्ध कर एक क्रम में छात्रों के समक्ष प्रस्तूत करे।यह एक आर्दश शिक्षक की बड़ी योग्यता होती है।


6) संयमशील वाणी-

संसार का प्रत्येक व्यक्ति अपनी वाणी को संयमशील रख जग जीत सकता है।शिक्षक भी अपनी वाणी से छात्रों का हृदय जीत सकते हैं। मृदुभाषी शिक्षक के समक्ष छात्र अपनी भावनाओं , इच्छाओं व समस्याओं को व्यक्त करने में झिझकते नहीं हैं।इसलिये प्रत्येक शिक्षक में क्रोध,मद,अहंकार से परे मधुर और मीठी वाणी का गुण होना चाहिये।

7) अनुशासित -

व्यक्ति,समाज और राष्ट्र के विकास में अनुशासन का महत्वपूर्ण स्थान है।अत: छात्रों में अनुशासन का निर्माण करना प्रत्येक शिक्षक का परम कर्तव्य है।और शिक्षक अपने इस उत्तरदायित्त्व को तभी पूरा कर सकता है जब वह स्वयं अनुशासित हो।एक अनुशासित अध्यापक ही अपने विद्यार्थियों 
में उचित जीवन मूल्यों एवं उच्च आदर्शों का निर्माण कर सकता है।


8) विषय का पूर्ण ज्ञान-

किसी भी श्रेष्ठ शिक्षक में इस गुण का होना अतिआवश्यक है।अधूरा ज्ञान सर्वथा अहितकर होता है ।विषय का पूर्ण ज्ञान न होने पर शिक्षक अपने छात्रों की समस्याओं का समाधान करने में असमर्थ होंगे और शिक्षण के उद्देश्य प्राप्ति में बाधाएँ निर्मित होंगी, विद्यार्थी को आत्मसंतुष्ति न मिलेगी। इन समस्त समस्याओं का निवारण मात्र विषय पर शिक्षक की मजबूत पकड़ और संपूर्ण ज्ञान द्वारा ही किया जा सकता है।


9) आत्मविश्वासी-

आत्मविश्वास वह सीढ़ियाँ हैं जिसके सामने बड़ी परेशानियाँ घुटने टेक देती है तथा व्यक्ति अपनी मंजिल मुक्कमल हो जाती है।एक आत्मविश्वासी शिक्षक का हमेशा विद्यार्थियों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है तथा छात्रों आत्मविश्वास बढ़ता है।अत: एक आदर्श शिक्षक को आत्मविश्वासी अवश्य होना चाहिये।


10) मार्गदर्शक-

प्रत्येक शिक्षार्थी के सफल जीवन की नींव शिक्षक के हाथों ही रखी जाती है।अत: किताबी ज्ञान के साथ विद्यार्थी का सर्वांगीण विकास करने व उचित मार्गदर्शन का छात्रों को जीवन जीने की कला सिखाना भी आदर्श शिक्षक की पहचान है , क्योंकि शिक्षक ही योग्य मार्गदर्शक बनकर राष्ट्र को नई बुलंदियों पर ले जा सकता है।


11) मिलनसार-

एक शिक्षक को अनगिनत विद्यार्थियों , सह अध्यापकों ,अभिभावको ,उच्च पदाधिकारियों और न जाने समाज में कितने ही लोगों के संपर्क में आना पड़ता है अत: मात्र शिक्षण गुणों से सपन्न होना किसी भी कुशल शिक्षक के लिये पर्याप्त नहीं है बल्कि सभी छात्र व समुदाय के साथ मधुर संबंध स्थापित करने की योग्यता भी अध्यापक में होनी चाहिये ।एक मिलनसार शिक्षक अपने मैत्रीपूर्ण व्यवहार से समाज में शीर्ष स्थान प्राप्त कर सकता है।


12) स्वभाव-

निष्पक्षता एक आदर्श शिक्षक के लिये श्रेष्ठ गुण है।शिक्षक की नजर में सभी छात्र समान होने चाहिये।अमीरी-गरीबी,जाति-धर्म या किसी अन्य को आधार बनाकर अपने छात्रों से किसी भी प्रकार का पक्षपात करना एक आदर्श शिक्षक को कतई शोभा नहीं देता है।


13) छात्र के मनोविज्ञान को समझना-

कक्षा में प्रत्येक छात्र अलग-अलग परिवार व परिवेश से आते हैं अत: छात्रों के नीजी जीवन का असर भी उनके ज्ञानार्जन पर पड़ता है।प्रत्येक छात्र की समस्याएँ भिन्न-भिन्न होती हैं, ऐसे में आवश्यक है कि शिक्षक हर छात्र के मनोविज्ञान से परिचित हो।बालकों के मनोविज्ञान को समझकर ही शिक्षक अपना अध्यापनकार्य सफल बना सकता है।शैक्षिक परिस्थितियों के आधार पर समझे।


14) सृजनात्मक व रचनात्मक-

'करके सीखना' शिक्षण की सर्वोत्तम श्रेष्ठ शिक्षण विधि मानी जाती है।अगर अध्यापक में स्वयं सृजनात्मकता व रचनात्मकता होगी तो वह छात्रों को ऐसी अनोखी पद्धति से ज्ञान प्रदान का पायेंगे जो छात्रों को विषय को आसानी से समझने में मददगार सिद्ध होगा।इसलिये एक आदर्श अध्यापक को चाहिये कि वह विभिन्न सृजनात्मक तथा रचनात्मक विधियों का प्रयोग करते हुये पाठ का नियोजन व विश्लेषण इस प्रकार करे कि जिसका सीधा असर छात्र के मस्तिष्क पर पड़े।साथ ही छात्रों को भी सृजनात्मक व रचनात्मक मंच प्रदान करने के लिये निरंतर कार्यशालाओं , पृतोयोगिताओं व यथाअवसर अनेकानेक कार्यक्रमों का आयोजन भी शिक्षक को करते रहना चाहिये।


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15) स्वाभिमानी-

सम्मानपूर्वक जीवन जीने के लिये व्यक्ति का स्वाभिमानी होना बेहद जरुरी है।इस गुण के अभाव में एक शिक्षक भी आदर्श शिक्षक कहलाने का हकदार नहीं होता है।हर अध्यापक को चाहिये कि किसी भी प्रकार के गलत कृत्य के सामने न झुके और पूरे स्वाभिमान के साथ अपने शैक्षिक अधिकारों का प्रयोग करते हुये अपने कर्तव्यों का पालन करे।एक स्वाभिमानी शिक्षक ही अपने आत्मसम्मान की रक्षा कर आदर्श शिक्षक कहलाने का पात्र बन पाता है।


16) ईमानदार-

आज भ्रष्टाचार का बोलबाला सर्वत्र है।ऐसे में शिक्षक ही आप ईमानदार बन छात्रों के समक्ष एक आदर्श स्थापित कर सकते हैं, जिससे आने वाले कुछ वर्षों में भारतभूमि पर फैली भ्रष्टाचार व बेईमानी की शाखाओं को कमतर किया जा सके ।इसके लिये शिक्षक को चाहिये कि वह ईमानदारीपूर्वक अपना कां कर शिक्षा के मंदीर विद्यालय को सर्वप्रथम भ्रष्टाचार मुक्त कर देश से बेईमानी को जड़ से समाप्त करने की अनूठी पहल करे व राष्ट्रहित में अपना योगदान दे।


17) नेतृत्व क्षमता-

विशेषज्ञों का मानना है कि एक आदर्श शिक्षक में कुशल नेतृत्व का गुण होना अतिआवश्यक है।अपने इसी गुण से शिक्षक कक्षा में अनुशासन स्थापित कर कुशल अध्यापन कर सकता है तथा साथ ही छात्रों में भी नेतृत्व क्षमता को विकसित कर सकता है।


             निष्कर्ष स्वरूप हम कह सकते हैं कि एक आदर्श शिक्षक में अपने समस्त ज्ञान व जीवनानुभवों के आधार पर छात्रों का सर्वांगीण विकास करने का गुण होना चाहिये।एक ज्ञानी ,सजग, चरित्रवान व जागरुक शिक्षक ही अपने आश्रय में आए विद्यार्थियों को व्यक्तित्व प्रदान कर सकता है।


             देश का भविष्य शिक्षकों के हाथों से ही निकलता है अत: शिक्षक का कर्तव्य है कि विद्यार्थियों के व्यक्तित्व को इस प्रकार परिपूर्णता प्रदान करे कि वो भविष्य में समस्त विश्व में भारत का नाम रोशन करने की क्षमता रखें।


                हमारे प्राचीन गुरुओं ने विश्व मे समस्त शिक्षकों के बीच श्रेष्ठतम स्थान प्राप्त किया था। उन्होने अपने ज्ञानगंगा को तत्कालीन अपने शिष्यों मे प्रवाहित कर देश को विश्व में उच्चतम स्थान दिला एक प्रकार का गौरव प्रदान किया था।वर्तमान में भी शिक्षक अपना कार्य निष्ठापूर्वक के आदर्श शिक्षक की उपाधि प्राप्त कर सफलतापूर्वक एक प्रकार का कीर्तिमान स्थापित कर सकते हैं।



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