मैं नारी हूँ - by Vijay Kumar Tiwari "Vishu"
मैं नारी हूँ |
वेद-ऋचाओं को रचती,
घोषा ,गार्गी सी विदुषी हूँ ,
कामदेव की वामांगी बनकर ,
आयी एक रति हूँ मैं |
मैं नारी हूँ||
सृष्टि की जननी बनकर ,
मैं ही प्रकृति-विस्तार करूँ ,
एक प्रेमी का मधुमास हूँ मैं ,
स्वयं अनंत आकाश हूँ मैं |
मैं नारी हूँ ||
मेरे आँचल के छाँव तले ,
खेले जगत नियंता हूँ ,
ब्रह्मा-विष्णु को बाल बना ,
पाली वो ही अनसुईया हूँ |
मैं नारी हूँ ||
मीरा ,सबरी सी भक्ति हूँ,
दुर्गा,चंडी की शक्ति हूँ ,
अहिल्या,तारा सी सती भी हूँ,
पातकनाशी अवतारी हूँ |
मैं नारी हूँ ||
मैं भीष्म-प्रतिज्ञा बन आयी ,
गांडीव धनञ्जय का मैं हूँ,
पांचाली हूँ द्युतशाला की ,
मैं ही कौरव-कुल नाशी हूँ |
मैं नारी हूँ ||
रण में स्वजनों की ढाल हूँ मैं ,
एक योद्धा की तलवार हूँ मैं ,
वीणा की झंकार हूँ मैं ,
सावन में कोकिल राग हूँ मैं |
मैं नारी हूँ ||
सहृदय हूँ पर बलशाली हूँ,
विष सोख सुधा मैं बरसाती,
तत्व एक , भूमिका अनेक,
मैं अंश प्रभु की सारी हूँ |
मैं नारी हूँ ||
लेखक - विजय कुमार तिवारी "विशु" (बीकानेर, राजस्थान)
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