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शिक्षक दिवस लेखन प्रतियोगिता
प्रतियोगिता संख्या - 2
Sponsored by LyricsTrackz
प्रतिभागी का नाम - Laxmi Maurya
देवियां देश की जाग जाए अगर युग स्वयं से स्वयं बदल जाएगा,,,
सच कहा है कहने वाले ने नारी शक्ति का रूप है वो प्रकृति है वो मां है वो बेटी है वो पत्नी है वो बहन है और इतना है नहीं वो इस संसार की कर्ताधरता है। अक्षरों से बहुत दूर होने के बावजूद भी अपने संस्कारों अपनी सूझ बूझ से अपने सुलझे संभले निर्णयों से पूरे संसार घर को संभाल के रखती हैं।वही जब एक पढ़ी लिखी महिला हो तो वो परिवार के साथ साथ बाहर भी अपनी सूझबूझ की मिशाल पेश करती है।और किसी ने सच ही कहा है पढ़ी लिखी महिला एक घर की ही नहीं दो घरों की रोशनी होती हैं जिस घर में जाती है वहां अपने ज्ञान की रोशनी से पूरे घर को रोशन करती है।
आज ऐसी कोई जगह नहीं जहां महिलाओं ने अपने हिम्मत अपने साहस अपने आत्मविश्वास अपनी योग्यता का परचम ना लहराया हो।धरती से लेकर आसमान तक आज उनका राज है।अपने अधिकारों, मान सम्मान के लिए आज इस समाज दुनिया से लड़ रही है और अवसर पा कर आगे बढ़ रही है।मां, पत्नी,बेटी ,बहू बनकर देश की जिम्मेदारी को निभाती हुई मिशाल पेश कर रही है कि महिलाएं सिर्फ घरों की चारदीवारी में रहने के लिए नहीं बनी बल्कि इस दुनिया का हर वो काम कर सकती है को लोगों ने कह रखा था या है कि महिलाएं पुरुषों का काम नहीं कर सकती वो मानसिक शारीरिक तौर पे कमजोर होती हैं।और ये सब महिलाओं को शिक्षित करने से हुआ।
उनको अवसर दिया गया कि उनको भी पुरुषो की तरह हक है पढ़ने का अपने सपने अपना नाम कमाने का अपने नाम से दुनिया में अपनी पहचान बनाने का।कितना मुश्किल दौर था जब महिलाओं को पढ़ने नहीं दिया जाता था उनके अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाने पे उनको दंड दिया जाता है।शिक्षा के अभाव में उनका जीवन अंधकार बना हुआ था। कम उम्र में लड़कियों की शादी मां बनना और अपनी जान भी गवाना ,उनका कम उम्र में विधवा होना,सती प्रथा जैसी भयानक कुरीतियों के आगे चुप रह कर हालातों के आगे झुक जाती थी।जो महिलाएं पढ़ी लिखी थी उन्होंने महिलाओं के हक के लिए बड़े से बड़े बलिदान किए।
और आज भी यही दौर जारी है।कितने अफसोस की बात है कि समाज महिलाओं को पढ़ने लिखने का हक देना ही नहीं चाहता कहीं डर सा है कि महिलाएं पुरुषों की बराबरी कर उनके साथ हर मैदान में खड़ी ना हो जाए।घर के काम काज करने वाली हाथों में कलछी चिमटा पकड़ने वाली पेन पकड़ कर अपना इतिहास ना लिख दे।ये भेदभाव पुरुष प्रधान समाज की छोटी सोच को दर्शाता है।और कहीं ना कहीं महिलाएं भी महिलाओं के प्रति कम जागरूक नज़र आती है।आज भी ऐसे परिवार है जहां महिलाएं खुद महिलाओं के हक उनके सपने को सिर्फ रसोई तक सीमित रखने में लगी है क्योंकि उनका जीवन सिर्फ घर के कामों पति बच्चों सास ससुर की सेवा के लिए बना है।
आज भी पुरुष उनके लिए भगवान है फिर चाहे वो कितना निकम्मा आवारा हो। पति रोज शराब पीने हाथ उठाए गली गलौज करे यहां तक की मां बाप पे हाथ उठाए फिर भी कुछ महिलाएं चुप रहती है क्योंकि उनके दिमाग में बचपन से ही एक अबला का जीवन जीना सिखाया गया और आगे भी ये परंपरा वो अपने बहू बेटियों पे लागू करती है।
आज भी शिक्षित समाज में जहां महिलाओं को पढ़ने लिखने का पूरा अधिकार मिला है आज हर घर में कोई ना ना कोई बेटी पुलिस अफसर,डॉक्टर इंजिनियर आईएसएस अफसर,नेता,या खेती किसानी का सपना लेे के आगे बढ़ रही है वहीं कहीं घरों में आज भी लड़कियां खिड़कियों से स्कूल जाते बच्चों को देख अपने सपने सिर्फ सजा के दिन रात आग में जला रही है।महिलाओं के अधिकारों को मार के कहीं ना कहीं यह समाज इस समाज के लोग अन्या य कर रहे है।
जब इस समाज को पता है पढ़ी लिखी बेटी सात पीढ़ियों तक ही नहीं आने वाले भविष्य कि निर्माण करता है।उससे जन्म लेने वाला अंश इस समाज को नई दिशा नया प्रकाश देगा।अगर बेटी ही नहीं शिक्षित होगी वो वो आने वाले कल को नई दिशा नहीं राह कैसे बताएगी।वो सही गलत का फर्क कैसे बता पाएगी वो कैसे जान पाएगेगी बदलते समाज के रीति रिवाजों को बदलते परिवेश की मांग को वो कैसे न्याय करेगी अपने आने वाले भविष्य का।और ऐसे में हम यहां नहीं सोच सकते की किसी देश का भविष्य उज्ज्वल होगा।क्योंकि जिस देश की नारी दबी कुचली है अपने अधिकारों के लिए दर दर भटक रही है उस देश का भविष्य मात्रा पुरुषों से नहीं चल सकता।
देश के विकास में महिलाओं का हर फील्ड में हर एक पद में होना बहुत ज़रूरी है। जिस देश ने पुरुषों के बराबर महिलाओं को अधिकार दिए आज वो विकसित है और संसार की सबसे बड़ी अर्थ्यवस्था बन कर इस दुनिया में अपनी सोच अपनी नीतियों और बेहतर मानव शक्ति के साथ आगे है।
वो दौर और था जब महिलाओं को सिर्फ इस्तेमाल की वस्तु समझ कर उनका शोषण किया जाता था ये दौर और है आज जीवन के लिए हर चीज की जरूरत पड़ रही है। चारों तरफ मारी मारी मची है बढ़ती जनसंख्या ने लोगों की सोच और सपनों को बढ़ा वा दिया है।परिवार के प्रति लोगों की सोच बदल चुकी है आज बेटा बेटी में फर्क नहीं है।बेटी भी वंश है और बेटा भी।साधन कम है तो सच भी वैसी ही हो रही है और वक़्त के साथ बदलना भी चाहिए।
जैसे जैसे वक़्त बदल रहा है शिक्षा के कदम बढ़ रहे है आज कोई नहीं जो आधुनिक तकनीक से दूर हो।चाहे वो हमारे आदिवासी समाज के लोग ही क्यों ना हो हर जगह शिक्षा कि मांग है।आज शिक्षा ने महिलाओ को जीवन दिया है उसकी कल्पना हम अगर अपने अतीत में का कर देखे तो बहुत आगे निकल चुके है।
आज महिलाएं पुरुषों पे आश्रित नहीं है उनके साथ कदम से कदम मिला कर आगे बढ़ रही है।और कहीं ना कहीं पुरुष प्रधान समाज ने अपनी सोच बदली है कि महिलाएं हर चीज के हकदार है पुरुषों की तरह।
शिक्षा जीवन है जो ज्ञान की सच्ची ज्योति से संसार को रोशन कर रही है।और इसमें सिर्फ महिलाएं ही नहीं पुरुषों का भी जीवन जगमग हो रहा है।
आज आधुनिक तकनीक ने शिक्षा के परिवेश को बहुत बड़ा कर दिया है वो महिलाएं जो किसी कारणवश स्कूल नहीं जा सकती।
आज वो दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से घर बैठे पढ़ रही है।घर से ही महिलाएं रोजगार चला रही है शॉपिंग हो या बिजनेस या हो कोई करियर सबकी खुद ही काउंसलर बन के देश के विकास में भागीदार बन रही है।
शिक्षा सबका जीवन अधिकार है और समाज के लोग इससे किसी भी लड़का ,लड़की महिला पुरुष के साथ भेदभाव नहीं कर सकते।शिक्षा को किसी उम्र कि जरूरत नहीं ना ही लिंग की,की पुरुष को हक है महिला को पाने का हक नहीं ये खुला रास्ता है जिसके चल कर हम अपना भविष्य बना सकते है संसार को सत्य से अवगत करा सकते है।
धन्यवाद
Writer:- Laxmi Maurya
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