स्वतंत्रता आंदोलन मे झारखंड के वीर सेनानियों की गाथा - by Monika Prasad
हम आज आजाद देश के नागरिक हैं । हमे यह आजादी बहुत सी कुर्बानियों के बाद मिली हैं । सारी दुनिया यह जानती है कि स्वतंत्रता आंदोलन के सर्वमान्य नेता गांधीजी थे और उनके सैंकड़ों साथी अनुयायी थे जिनके नेतृत्व मे आजादी की लड़ाई लड़ी गई और हमे आजादी मिली। राष्ट्रपिता बापू के साथ साथ नेहरू,सुभाष ,तिलक ,भगतसिंह, लक्ष्मी बाई जैसे क्रांतिकारियों के नाम सभी जानते हैं पर हम यहां आज कुछ क्षेत्रीय क्रांतिकारियों की गाथाएं कहेंगे जिन्होंने अंग्रेजों की शासन को हिलाने मे अपनी शहादत दी।
हम छोटे से प्रांत झारखंड के उन वीरों के बारे मे जानें जिन्हें दुनिया ज्यादा नही जान सकी।
झारखंड अंग्रेजों के शासन मे बंगाल से सटा और बिहार का ही अंग था ।झारखंड ने भी आजादी की लड़ाई मे बढ चढ कर हिस्सा लिया और कुरबानियां दीं ।कई महान क्रांतिकारियों ने स्वतंत्रता आंदोलन की लड़ाई लड़ी और अपने प्राणो की आहुति भी दी। शहीद हुए क्रांतिकारियों मे भगवान बिरसा मुंडा , सिद्धो कान्हो,जतरा भगत जनमानस के लोकप्रिय नेता थे।
1) बिरसा मुंडा-
1857 की क्रांति के समय वीर कुंवर सिंह के बाद तब के बिहार और वर्तमान झारखंड मे मुंडाओ ने सरदार आंदोलन के असफलता के बाद बिरसा मुंडा के नेतृत्व मे उग्र और हिंसक आंदोलन की शुरुआत की।
बिरसा मुंडा झारखंड तथा तब के बिहार के सर्वप्रमुख क्रांतिकारी थे।
बिरसा मुंडा संथालों के नेता थे और पढे लिखे युवक थे। उन्होंने जमींदारों, ठेकेदारों और अधिकारियों के अन्याय के खिलाफ नवयुवकों को संगठित करके उग्र आंदोलन की शुरुआत की।लोग इन्हे भगवान और इनके कथन को ब्रम्हवाक्य मानते थे। 1895 मे लोगों को सरकार को कर देने से मना करते हुए उग्र आंदोलन किया। इसकी वजह से राजद्रोह के आरोप मे ये गिरफ्तार कर लिए गए और दो वर्षों तक जेल मे रहे। रिहा होने के बाद अपने साथियों साथ जंगलों मे छिप कर युवाओं को संगठित करने और तीरंदाजी की शिक्षा देने लगे।वे स्वयं महारानी विक्टोरिया के पुतले पर तीरंदाजी के अभ्यास करते थे।1899 मे हिंसक आंदोलन उग्र रूप से बढा ।इसाई मिशनरियों और चर्चों पर भी आक्रमण किए गए।पूरे छोटानागपुर मे यह आंदोलन फैलता जा रहा था। छापामार युद्ध से घबराकर अंग्रेज सरकार ने सेना और पुलिस की मदद ली और सख्ती से इस युद्ध पर लगाम लगा सकी।आखिर तीर धनुष भी बंदूकों के सामने कब तक टिकते।फरवरी 1900 ई.मे बिरसा फिर से गिरफ्तार कर लिए गये और उन पर राजद्रोह का मुकदमा शुरु हुआ।मुकदमे के दौरान ही 9जून 1900 को जेल की अव्यवस्था से उन्हें हैजा हो गई और इस बिमारी से बिरसा का देहांत हो गया। उनके तीन सहयोगियों को फांसी हुई और अधिकांश छपामारों को पकड़कर जेलों मे ठूंस दिया गया।
यों तो युद्ध विफल हुआ लेकिन बिरसा की शहादत सफल हुई।1908 मे काश्तकारी कानून पारित हुआ और मुंडाओं को अपनी जमीन पर अधिकार मिले। झारखंड मे बिरसा मुंडा को भगवान माना जाता है। वह आज भी लोक मानस के दिलों मे राज करते हैं।
2) टाना भगत मूवमेंट-
बिरसा आंदोलन के 13 वर्षों के बाद "जतरा उरांव" के नेतृत्व मे टाना भगत आंदोलन शुरु हुआ जो गांधीजी के सिद्धांतों से प्रभावित था।यह आंदोलन ब्रिटिश हुकुमत के खिलाफ अहिंसक, धार्मिक और अंधविश्वासों के खिलाफ तथा समाज सुधारक आंदोलन था। जतरा उरांव ने इस आंदोलन की शुरुआत की तथा इसके अनुयायी टाना भगत कहलाए।
"जतरा उरांव"- इनका जन्म भी तात्कालीन बिहार के आदिवासी क्षेत्र और वर्तमान झारखंड प्रदेश के गुमला के चिंगारी गांव मे 1888मे हुआ।1914मे एक पंथ चलाते हुए उन्होंने आदिवासी समाज मे व्याप्त पशु बलि,मांस भक्षण,शराब सेवन,भूतप्रेत डाइन आदि बुराइयों को दूर करने का अभियान छेड़ा। सात्विकता से परिपूर्ण और निडर जीवनशैली अपनाते हुए ब्रिटिश हुकूमत के अन्याय के खिलाफ आंदोलन चलाया गया जो टाना भगत आंदोलन कहलाता है ।बेगारी मालगुजारी और टैक्स का विरोध करते हुए यह आंदोलन व्यापक रूप से फैला जिससे घबरा कर अंग्रेज सरकार ने 1914 मे जतरा उरांव को गिरफ्तार कर लिया । जेल मे बहुत ही सख्ती झेलते हुए डेढ साल कैद के बाद अचानक जतरा उरांव का देहांत हो गया। उनके अनुयायियों ने कई शाखाएँ चलाईं जैसे बाछीदान भगत,करमा भगत,लोदरी भगत,नवा भगत,गौरक्षणी भगत आदि कई शाखाओं के रुप मे टाना भगत आंदोलन को फैलाया जो गांधीजी के स्वदेशी आंदोलन का ही स्थानीय रूप था।
1922मे गया 1923के नागपुर सत्याग्रह मे टाना भगतों ने काफी बढचढ कर हिस्सा लिया था।।1940 मे रामगढ कांग्रेस मे टाना भगतो द्वारा 400रू की थैली गांधीजी को भेंट स्वरूप दी गई। एक तरह से यह गांधीजी के आंदोलन का ही झारखंड मे विस्तार था।
3) सिद्धो कान्हों-
झारखंड राज्य के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास मे झारखंड का "हूल आंदोलन" ने ब्रिटिश शासन को हिला कर रख दिया था जिसके प्रणेता थे "सिद्धो" "कान्हो "।
"सिद्धो कान्हों "भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास मे शायद ही ऐसा उदाहरण मिलता हो जहां एक ही परिवार के छह भाई -बहन क्रांतिकारी बने और जिनमे दो भाईयों को एक साथ फांसी दिया गया। तात्कालिक बिहार और वर्तमान मे झारखंड के संथाल परगना के साहेबगंज जिला का बरहेट प्रखंड का भोगनाडीह गांव ही वह पावन भूमि है ।इसी गांव के एक चुन्नी मांझी नामक संथाल के छह संतान हुए।1815 मे -सिद्धोमुर्मु,1820 मे-कान्हों मुर्मू,1825 मे -चांद मुर्मु,1835मे -भैरव मुर्मु चार भाई औरफुलो मुर्मू एवं झानो मुर्मू दो बहने वो महान वीर क्रांतिकारी भाई बहन हुए।जिसने अंग्रेजों के बंदुकों को अपने तीर धनुष के आगे झूकने पर मजबूर किया।
सिद्धो और कान्हों ने 1855-56 मे उनपर हो रहे अत्याचार के खिलाफ संथालों का हूल आंदोलन का आरंभ किया और जिसका नारा था "करो या मरो" "अंग्रेजों हमारी माटी छोड़ो"
आदिवासियों मे सिद्धो दैविक शक्ति के रूप मे माने जाते थे।अपनी इसी दैवीय शक्ति का हवाला देते हुए पवित्र साल वृक्ष की टहनी मांझी सरदारों को भेजकर हूल आंदोलन मे शामिल होने का आमंत्रण भेजा।30 जून 1855ई. को भोगनडीह मे संथालों की सभा हुई जिसमे 400गांवों के 50000 संथाल एकत्र हुए थे।
सर्वसम्मति से सिद्धो को राजा,कान्हो और चांद को मंत्री एवं भैरव को सेनापति चुना गया।
अपने तीर धनुषों से लैस संथाल अंग्रेजों पर टूट पड़े।
इधर अंग्रेजों का नेतृत्व जनरल लायर्ड कर रहा था जिसकी सेना आधुनिक हथियार और गोला बारूद से सुसज्जित थी। इस मुठभेड़ मे दारोगा महेश लाल एवं प्रताप नारायण की हत्या कर दी गई ।अंग्रेजों मे भय व्याप्त हो गया। संथालों पर नजर रखने के लिए पाकुड़ मार्टिलो टावर बनाया गया जो आज भी है। वीरता पूर्वक युद्ध के बावजूद संथालों की हार पारंपरिक हथियारों की वजह से हो गई।
1855 के अगस्त मे सिद्धो को पकड़कर पंचकठिया नामक जगह पर बरगद के पेड़ पर फांसी दे दी गई।कान्हो को भोगनाडीह उसी के गांव मे फांसी दी गई। आज भी वह बरगद का पेड़ है जो आदिवासियों का तीर्थस्थल बन चुका है।
बाकी भाई बहन भी कैद कर दिए गए थे।
कार्ल मार्क्स ने हूल आंदोलन को पहला जनआंदोलन बताया था।
आज भी 30जून को भोगनाडीह मे मेला लगता है।
सुन्दर वर्णन।
ReplyDeleteBrilliant writer with vivid story writing abilities! Wonderful
ReplyDeleteBrilliant
ReplyDeleteमहत्वपूर्ण जानकारी
ReplyDeleteरोचक
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ReplyDeleteमोनिका बहन, आपने बहुत ही सुंदर जानकारी झारखंड के सपूतों के बारे में दी है👍
ReplyDeletegreat👍 folkheros💪 of Jharkhand 🙏
ReplyDeleteThey were really inspiring regional Folk heros💪 of Jharkhand Soil.... amazing👍 article by one of the 🌼Iron Lady🌼of Indian🇮🇳 Family.... always glad to see ur next blog 🙏🙏🙏
ReplyDeleteThey were really inspiring regional Folk heros💪 of Jharkhand Soil.... amazing👍 article by one of the 🌼Iron Lady🌼 of Indian🇮🇳 Family.... always glad to see urs next blog 🙏🙏🙏
ReplyDeleteझारखंड के वीर सेनानियों द्वारा झारखंड आंदोलन के विषय में बहुत ही सुन्दर वर्णन किया गया है।
ReplyDeleteअदभुत वर्णन। लेखक का सराहनीय प्रयास।
ReplyDeleteAmazing description of Jharkhandi heroes!
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