स्वतंत्रता संग्राम में क्षेत्रीय नायकों की भुमिका - by Neha Yadav
15 अगस्त 1947 जिस दिन भारत ने कई शताब्दियों की गुलामी की जंजीरों को तोड़ कर आजादी की खुली हवा में सांस ली। यह स्वतंत्रता हमे एक लम्बे संघर्ष से प्राप्त हुई, साथ ही उन देश भक्तों के अथक प्रयासों का परिणाम हैं, जिन्होंने अपने जीवन को निस्वार्थ भाव से देश के लिए समर्पित कर दिया। भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास की गौरवगाथा जब हम गर्व से स्मरण करते हैं तो सबसे पहले हमारे ज़हन में 1857 की क्रान्ति आती है जिसे भारतीय इतिहास में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के नाम से हम सभी जानते हैं यह क्रान्ति भारतीय इतिहास में एक अहम् स्थान रखती है या हम कह सकते हैं कि यह भारतीय इतिहास का वह पहला स्तम्भ है जिसने देशवासियों को एक जुट होकर अंग्रेजों से संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया।
इतिहास की पुस्तको मे जब हम इस क्रान्ति के विषय मे पढ़ते हैं तो इस क्रान्ति से अत्यधिक प्रभावित हमे उत्तर भारत ही नजर आता है जहाँ 10 मई 1857 को यह क्रान्ति मेरठ से शुरू हो कर दिल्ली, झांसी, रूहेलखंड, कानपुर, अवध, इलाहाबाद होती हुई बिहार के आरा तक नजर आती है। इस प्रकार यह कान्ति सम्पूर्ण उत्तर भारत को अपनी चपेट में ले लेती है। इन स्थानों पर इस क्रान्ति को प्रज्ज्वलित करने वाले देश के महान नायकों के विषय में हम सभी जानते हैं जैसे- लक्ष्मी बाई, तात्या टोपे , बेगम हज़रत महल, कुवँर सिंह आदि।किन्तु आज एक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि यह क्रान्ति जब मेरठ से होती हुई अधिकतर उत्तर भारत में फैली, तो केवल इन गिने चुने स्थानों व नायकों के विषय में हमे विस्तार से, हमे इतिहास की पुस्तकों से जानकारी क्यों प्राप्त होती है? 1857 की क्रान्ति के इन प्रमुख स्थानों के अतिरिक्त अनगिनत स्थान रहे होंगे, जो आज जनपदों व कस्बों के नाम से जाने जाते होगे, इस स्थानों पर भी देशभक्तों ने इस क्रान्ति की मशाल को प्रज्ज्वलित कर अपने हाथों में लिया। इन क्षेत्रीय नायकों का छोटा ही सही किन्तु योगदान अवश्य रहा होगा।
हम 1857 के बाद की भी बात करे तो देश में गांधी जी का एक दौर आया। जब हजारों नवयुवकों, महिलाओं, वृद्धों ने अपने स्वार्थों को परे रख, राष्ट्रप्रेम को सर्वोपरि रख जेल यातनाऐ सही। जिन्हें हम आज स्वतंत्रता सेनानियों के नाम से जानते हैं, भारत के प्रत्येक जिलों के स्वतंत्रता सेनानियों की लम्बी सूचियाँ आज भी राष्ट्रीय व राज्य अभिलेखागारों में मौजूद है जो उन जनपदों के उस दौर के नवयुवकों की देशभक्ति की भावनाओं का गुणगान करती है।
20वी सदी के प्रारम्भिक वर्षों में जब गांधी जी का भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में सक्रियता बढ़ी, तो काग्रेस देश के जन जन का प्रतिनिधित्व करने लगी, जिससे अधिक से अधिक लोग गांधी जी से प्रभावित होकर काग्रेस की सदस्यता ग्रहण करने लगे।आगे हम देखते हैं कि असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आन्दोलन, दाण्डी यात्रा, भारत छोड़ो आंदोलन आदि सभी में देश के प्रत्येक वर्ग के लोगों ने बढ चढ़ कर हिस्सा लिया व अंग्रेजो की क्रूरता का सामना किया, जेल की यातनाऐ सही। ये भारत के वह क्षेत्रीय प्रतिनिधि थे जो अपने अपने क्षेत्र में सक्रिय भागीदारी निभा रहे थे।
आज देश की आजादी के 74 वर्ष पूरे हो चुके हैं किन्तु ये क्षेत्रीय नायक इतिहास के पन्नों से आज भी दूर है। इनके विषय मे हम न के बराबर जानते हैं।शायद क्षेत्रीय इतिहास की यह विडम्बना ही है कि देश की आजादी के इतने वर्षों बाद भी यह आज भी अंधकारमय है।
प्रत्येक वर्ष गणतंत्र दिवस व स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर देश के प्रत्येक विद्यालय, विश्वविद्यालय, सरकारी व गैर-सरकारी दफ्तरों, संस्थाओं मे इतिहास के महान नायकों को जिन्होंने आजादी के लिए अपने प्राणों तक को बलिदान कर दिया को सभी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं ।देश के राष्ट्रीय नायक जैसे- झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे, भगत सिंह, चन्द्र शेखर आज़ाद, सुभाष चन्द्र बोस इत्यादि को याद करते हैं किन्तु देश का प्रत्येक जनपद अपने क्षेत्र के उन नायकों को एक श्रद्धांजलि तक देना भूल जाते हैं जिनके नाम पर हमारे जिलों, कस्बों की सड़कें, इमारतें , पार्क तथा चौराहों के नाम होते हैं। इसका सबसे बड़ा कारण सिर्फ यह है कि इनके विषय मे जानते ही नही है।क्षेत्रीय नायकों के प्रति यह हम सब की बहुत बड़ी अनदेखी है कि देश के यह क्षेत्रीय नायक जिन्होंने देश की स्वतंत्रता मे अपना छोटा ही सही किन्तु योगदान अवश्य दिया। आज आजादी के इतने वर्षों बाद भी उनके स्वयं के जनपद के लोग उनके विषय में जानते ही नही है। इसे विडम्बना नही तो क्या कहेंगे हम? किसी एक क्षेत्र की बात नही है यह सम्पूर्ण भारत की है। इस लेख को पढने वाले प्रत्येक व्यक्ति स्वयं विचार करे तो वह पाएगा कि उनके अपने गृह जनपद के उन सभी राष्ट्रभक्तों के विषय में स्वयं भी कम ही जानते होंगे, जिनके नाम पर शहरो की सड़कों व इमारतों के नाम होगे, यही नही शहरो के चौराहों पर लगी, स्वतंत्रता सेनानियों की मूर्ति के विषय में भी हमारा ज्ञान नग्न होगा। वास्तविकता यही है कि जब भारत माता गुलामी की जंजीरों में जकड़ी थी तब देश के कोने-कोने से वीर सपूत दिल में आजादी का सपना सजाए अंग्रेजों से लड़े थे। देश में अनेक जिलो का 1947 तक का स्वर्णिम इतिहास है, अनेक छोटी छोटी रियासतों के राजाओ,राजकुमारों ने देश की स्वतन्त्रता के लिए अपनी रियासतों तक का बलिदान कर दिया। इनमें से बहुतों को अंग्रेजी हुकूमत द्वारा आजीवन उनकी रियासतों से निर्वासित कर दिया गया। यह देशप्रेम के ऐसे सूर्य थे जो सदा के लिए अपनी जन्म भूमि से दूर ही सदा सदा के लिए अस्त हो गए।किन्तु आज इनकी स्वयं की रियासत( वर्तमान में कोई जिला या शहर) के लोग तक इनके द्वारा किए गए गौरवपूर्ण कार्यों से अनभिग्य है। जब आज देश की आजादी के 74 वर्ष बाद यह स्थिति है तो आने वाले समय में तो शायद इनके नाम तक किसी को याद न रहे। क्या हम अपने क्षेत्रीय इतिहास के नाम पर आने वाली पीढ़ियों को केवल धुंधला अतीत ही दे कर जाऐंगे? क्या इसी प्रकार वाले पीढ़िया भी स्वतंत्रता दिवस व गणतंत्र दिवस के अवसर पर केवल राष्ट्रीय नायकों को याद रखेगी और क्षेत्रीय को भुला देगी??
इस स्वतंत्रता दिवस क्यों न हम सभी मिल कर एक पहल करे, राष्ट्रीय नायकों के साथ साथ अपने क्षेत्रीय नायकों को भी एक श्रद्धांजलि अर्पित करे।जिससे अपने अपने गृह जनपदों के गौरवशाली अतीत के पृष्ठों को जो इतिहास की काली स्याही से आज तक दूर है उन्हें उजागर करने का प्रयास किया जाए, भले ही इन नायकों के विषय में हमारा ज्ञान कम ही है किन्तु उनकी वीरता के किस्से कहते हुए दस्तावेज आज भी देश के किसी अभिलेखागार की अलमारी मे सुरक्षित होगे, जो हमारे आपके जनपदों को आजादी के संघर्ष से जोडते हुए गौरवशाली अतीत का गुणगान कर रहे हैं।
आजादी के 74 वर्ष बाद ही सही इस स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर राष्ट्रीय नायकों के साथ, हम सभी अपने अपने गृह जनपदों के सभी स्वतंत्रता सेनानियों को गर्व से श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं तभी हम सही मायनों मे देश का स्वतंत्रता दिवस मनाना होगा।
सभी को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
सीधी और सपाट भाषा मे अपने मंतव्य को सारगर्भित शब्दो के माध्यम से आपने अच्छी तरह व्यक्त किया है....
ReplyDeleteजो प्रश्न आपने उठाये है वास्तव में उनपर विचार किया जाना अत्यंत आवश्यक है..
अत्यंत महत्वपूर्ण तथ्य कही न कही वास्तविकता यह भी है कि वर्तमान समय में हमने राजनीति के चलते भी इन नायकों की अनदेखी कर दी है।
ReplyDeleteV nice
ReplyDeleteSoldiers are real hero..
ReplyDeleteMa'am very thoughtful article 👌
यदि हम देश को स्वतंत्र कराने वाले वीर नायकों और शहिदों की बात करें तो हमें कुछ गिने-चुने नाम और मुख्यधारा के प्रमुख वैयक्तिक उपलब्धियों से युक्त लोगों के नाम गिनाए जाते है परन्तु इन सबके अतिरिक्त असंख्य ऐसे वीर सपूत है जिन्होंने क्षेत्रीय स्तर से उठकर राष्ट्रीय स्तर तक ऐसे कारनामे किए जिनसे अंग्रेजी हुकूमत तक सहम जाती थी। ऐसे गुमनाम वीर सपूतों के नाम न हमें इतिहास के पन्नों में देखने को मिलता है और न ही इनके बारे में जानने या शोध को बढ़ावा देने के प्रति उत्सुकता ही दिखाई देती हैं।
ReplyDeleteमैं नेहा यादव जी को धन्यवाद ज्ञापन करना चाहता हूं जिन्होंने क्षेत्रीय स्तर पर ही सही आजादी की लड़ाई लड़ने वाले गुमनाम वीर सपूतों के प्रति जानने और याद करने के लिए शुभेच्छा व्यक्त किया।
Very good article..keep it up
ReplyDeleteVery good article..keep it up
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ReplyDeleteVery nice article
ReplyDeleteGood
ReplyDeleteJai Bharat
आपके आर्टिकल को देखकर यह प्रतीत होता है ,,कि आज भी भारत के नोजबानों में इतिहास के प्रति रुचि कम नही हुई है ,यहां पर वेहतरीन लेखन कला का प्रदर्शन नेहा जी के द्वारा किया गया है ।।
ReplyDeleteक्षेत्रीय इतिहास को सही ढंग से संकलित नहीं किया गया
ReplyDeleteVery Good👌👌
ReplyDeleteनेहा जी आपका विशेषण सराहनीय है।
ReplyDeleteबहुत सुंदर, सराहनीय👌👌👌
ReplyDeleteजय हिन्द, जय भारत👌👌
ReplyDeleteVery nice.. Very good article neha.. Keep good. Good luck
ReplyDeleteअप्रतिम एवं अद्भुत पहल नेहा जी, यकीनन हमें अपने राष्ट्रीय नायकों के साथ साथ अपने क्षेत्रीय नायकों को भी स्मरण करना चाहिए एवं उन्हें भी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करने चाहिए। इन क्षेत्रीय नायकों ने ना केवल अपने स्वार्थ को परे रख कर बल्कि जान माल एवं अपने घर परिवार की चिंता ना करते हुए स्वतंत्रता संग्राम के हवन कुंड जो आहुति दी वो भले ही छोटी रही हो किन्तु वह किसी भी बड़े बलिदान से कम महत्वपूर्ण नहीं थी।
ReplyDeleteसंभवतः यह हमारे देश के इतिहासकारों की कमी रही है कि जिन्होंने अपने काम को महत्वपूर्ण दर्शाने के लिए देश के सुप्रसिद्ध नायकों के बारे में ही लिखा और क्षेत्रीय नायकों को कम महत्वपूर्ण मान कर नजरंदाज कर दिया।
नेहा जी , अब ये उत्तरदायित्व आप जैसे नए इतिहासकारों के कंधे पर आ गया है और मुझे केवल आशा ही नहीं बल्कि पूर्ण विश्वास है की आप यह काम पूरी ईमानदारी, निष्पक्षता एवं उत्तरदायित्व के साथ पूर्ण करेंगे।
आपको बहुत बहुत धन्यवाद और अनेकों शुभकामनाएं।
जय हिन्द!
रितेश कुमार
M.A. (Archaeology)
Bahut badhiya
ReplyDeleteV nice
ReplyDeleteV.good
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ReplyDeleteGood
ReplyDeleteVery good
ReplyDeleteNice work
Very nicely
ReplyDeleteVery Good ����
ReplyDeleteVery nice
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ReplyDeleteNice onee
ReplyDeleteV nice👍
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ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteशानदार ज़बर्दस्त
ReplyDeleteबहुत खूब नित नये आयाम स्थापित हो
ReplyDeleteThanks for sharing this article
ReplyDelete👍🏻👍🏻
Nice article
Keep posting keep writing..
More power to you sister
ये अच्छा है कि नई पीढ़ी भी जागरूक है क्षेत्रीयता के प्रति
ReplyDeleteक्या बात है ।।।
ReplyDeleteयह article पढ कर पता चल गया कि तुम्हारा नाम इतिहास मे लिखा जाएगा
क्या बात है ।।।
ReplyDeleteयह article पढ कर पता चल गया कि तुम्हारा नाम इतिहास मे लिखा जाएगा
Bahut shandar
ReplyDeleteनेहा यादव जी आपकी क्षेत्रीयता के प्रति रुचि जागरूक करने वाली है
ReplyDeleteबहुत ही सराहनीय कदम ।
ReplyDeleteअलेख बहुत ही उम्दा जितनी तारिफ की जाय ।
स्वतंत्रता दिवस की आप को भी शुभकामनाएँ ।
Its really an amazing and inspiring article, looking for some more article like this...
ReplyDeleteWonderful 👌👌
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteSuperb
ReplyDeleteGoood work
ReplyDeleteJao hind
ReplyDeleteGreatest
ReplyDeleteWe are saluted
ReplyDeleteWah mazzedar
ReplyDeleteNeha Dii
ReplyDeleteVery informative
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteGoood
ReplyDeleteSuper nice Good 👌👌👌👌
ReplyDeleteGood article
ReplyDeleteAgar swatantrata senani aazadi ke liye nahi ladte to hum log aaj bhi angrezo ke gulam hi hote jai hind and salute karta hu un sabhi logo ko jinhone aazadi ke liye apni jaan di jai hind jai bharat
ReplyDeleteI salute u
ReplyDeleteJai hind
ReplyDeleteसराहनीय,शानदार
ReplyDeleteVery Nice keep it up Neha(•‿•)
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