राष्ट्र निर्माण में शिक्षक की भूमिका और कर्तव्य - by S P Dixit


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शिक्षक दिवस लेखन प्रतियोगिता

प्रतियोगीता संख्या - 2

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प्रतिभागी का नाम - S P Dixit


शिक्षक शब्द अंत:करण में आते ही पावनता एवं सम्मान की मधुरिम सुरभि प्रस्फुटित होने लगती है।शिक्षक समाज का एक ऐसा आधार प्रस्तर है जिस पर  सम्पूर्ण समाज की अवसंरचना सुनिश्चित होती है ।शिक्षक रहित समाज की परिकल्पना भी नहीं की जा सकती है । हमारे पूर्व महामहिम राष्ट्रपति मौलाना अब्दुल कलाम आजाद जी ने कहा था " शिक्षक एक माली की भांति होता है व राष्ट्र का वास्तविक निर्माता उस देश का शिक्षक होता है " 


यह कथन पूर्णतः यथार्थ है क्योंकि राष्ट्र निर्माण की आधार शिला शिक्षक ही रखता है और सम्पूर्ण राष्ट्र निर्माण में शिक्षक की महती भूमिका होती है जिसे झुठलाया नहीं जा सकता है । 


शिक्षक वह अनुपम रश्मियाँ समाज में प्रस्फुटित करता  है जिससे पूरा देश दैदीप्यमान होता है इसलिए समाज में  शिक्षक का एक प्रथक सम्मानीय स्थान होता है व प्रशासन भी शिक्षक के सुझावों को सम्मान के साथ स्वीकार करता है । किसी राष्ट्र का कैसा स्वरूप होगा यह वहां के निवासी नागरिक निर्धारित करते हैं और नागरिकों का कैसा स्वरूप होगा यह राष्ट्र का शिक्षक सुनिश्चित करता है । अतीत काल से ही हमारे देश में गुरुओं की परम्परा रही है ।गुरु- शिष्य संबंधों पर हमारे ग्रंथ भरे पड़े हैं। गुरु द्रोणाचार्य का नाम कौन नहीं जानता? यदि हम अतीत पर दृष्टिपात करें तो हमे विदित होता है की पहले गुरुकुल शिक्षा का अतीव प्रचलन था वैसे गुरुकल शिक्षा आज भी सजीव है ।गुरुकुल शिक्षा इतनी ज्यादा प्रभावशाली ढंग से एक छात्र का बौद्धिक व मानसिक विकास करती थी जिसकी परिकल्पना भी नहीं की जा सकती।गुरुकुल में छात्र का सर्वांगीम विकास किया जाता था और छात्र एक परिपक्व कुशल नागरिक बन के गुरुकुल से बाहर आता था यह यथार्थ है ।वैसे गुरुकुल प्रचलन अब उतना ज्यादा प्रचलित नहीं है ।किन्तु गुरुकुल से ही शिक्षक की महती उपयोगिता का समाज को ज्ञान हुआ और तभी से शिक्षक को एक आदर्श सम्मानीय व्यक्तित्व के रूप में जाना जाने लगा।


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शिक्षक का कार्य मात्र शिक्षा प्रदान करने तक ही सीमित नहीं रह जाता बल्कि छात्र की बहुमुखी प्रतिभा का विकास करना भी है और उसे एक जिम्मेदार अच्छा नागरिक बनाना भी है ।छात्र के मस्तिष्क को इस तरह विकसित करना है की वह बड़ा होकर राष्ट्र निर्माण में अपनी अहम भूमिका निभा सके और अपना उपयोगी योगदान दे सके तभी शिक्षक की भूमिका चरितार्थ होती है । बालक में अन्तर्निहित अंत: शक्तियों को विकसित करके उसे सही दिशा में ले जाना शिक्षक का कर्तव्य हो जाता है ।यदि छात्र शिक्षित होकर राष्ट्र को मार्गदर्शन न दे सके तो उस शिक्षा का कोई भी महत्व नही है ।


हर बालक में छुपी हुई मानसिक शक्तियां होती हैं जिन्हे मुखरित करना शिक्षक का कार्य है ।


छात्र के व्यक्तित्व को विकसित करना शिक्षक के प्रधान कार्यों में से एक है । जब तक छात्र का व्यक्तित्व पूर्णतः विकसित नहीं होगा वह उपयोगी नागरिक नहीं बन सकता। छात्र जीवन में व्यक्तित्व निर्माण नितांत आवश्यक है ।यदि बालक का व्यक्तित्व कुण्ठित होगा वह राष्ट्र के लिये उपयोगी साबित नही हो सकता क्योंकि प्रारंभ में जैसा व्यक्तित्व निर्माण हो जाता है उसी व्यक्तित्व पर सम्पूर्ण जीवन की इमारात खड़ी होती है ।अत: बच्चे का सही मार्गदर्शन करके उसके व्यक्तित्व को उपयोगी दिशा की ओर ले जाना शिक्षक का कार्य है और शिक्षकों को अपनी भूमिका निर्वाह भी करना चाहिये।


हर बालक में ज्ञान का भण्डार होता है उसे खोलना शिक्षक का कार्य है केवल सही मार्ग दर्शन की आवश्यकता है ।


छात्र में समाज के प्रति व राष्ट्र के प्रति अपनी भूमिका की जागृति शिक्षक द्वारा ही की जा सकती है ।मात्र किताबी ज्ञान प्राप्त कर लेने भर से कोई कुशल नागरिक नहीं बन सकता।यह आवाश्यक है की प्रारंभ से छात्र में राष्ट्रीयता की भावना व समाज के प्रति चेतना को जागृत किया जाये जो केवल एक शिक्षक ही कर सकता है इसीलिए शिक्षक का कार्य मात्र किताबी शिक्षा देकर परीक्षा उत्तीर्ण करा देना ही नहीं है बल्कि उससे कहीं और ज्यादा विस्तृत है जब एक छात्र शिक्षा प्राप्त करने के उपरांत एक कुशल समाज व राष्ट्र निर्माता साबित होता है  तभी शिक्षक का कार्य परिपूर्ण होता है इसके लिये यह अति आवश्यक है की शिक्षक छात्र की बहुमुखी प्रतिभा का विकास करे व उसे सही मार्ग दर्शन की सुरभि से सुरभित करे।इसीलिये शिक्षक का उत्तरदायित्व अत्यंंत विशाल रूप में देखा जाता है ।


शिक्षक का कार्य छात्र को  उन विचार धाराओं का  बोध कराना है की उसकी समाज के प्रति क्या जिम्मेदारियां हैं और वह उन्हें कैसे कार्यान्वित कर सकता है ।


शिक्षक छात्र की अन्तर्निहित शक्तियों को तो विकसित करता ही है साथ ही उसकी वाह्य शक्तियों को ऊर्जावान करना भी शिक्षक की भूमिका में आता है ।


राष्ट्र के प्रति एक आदर्श नागरिक के क्या कर्तव्य व उत्तरदायित्व  होते हैं यह केवल शिक्षक ही बालक को अवगत  करा सकता है ।समाज में व्याप्त कुरीतियां अन्धविश्वास ,नारी उत्पीड़न ,भ्रष्टाचार , दहेज प्रथा, बाल विवाह, बाल अपराध आदि का ज्ञान व उसकी भूमिका पर शिक्षक को प्रारंभ में ही प्रकाश डालना चाहिये और उसे इस दिशा में जागृत करना चाहिये की वह कैसे इन कुरीतियोँ का निवारण कर सकता है। किताबी ज्ञान कुछ सीमा तक ही समाज से छात्र को परिचित करा पाता है ।


 किन्तु  शिक्षक किताबी ज्ञान के अतिरिक्त छात्र में उन भावनाओं का निर्माण कराता है जो उसे एक जिम्मेदार नागरिक बनाती हैं ।


इसी द्रष्टि कोण को द्रष्टिगत रखते हुए अभी कुछ दिन पूर्व हमारी सरकार नई शिक्षा नीति लेकर आई है जो की बच्चे को किताबी ज्ञान से ज्यादा उसके बहुमुखी विकास पर ध्यान केंद्रित करने पर जोर देती है व छात्र को एक कुशल व जिम्मेदार नागरिक बनाने पर शिक्षकों को दिशा निर्देश देती है ।नई शिक्षा नीति के माध्यम से न केवल छात्र की सर्व शक्तियों का विकास होगा बल्कि उन्हें रोजगार के लिये भटकना नहीं पड़ेगा ।


छात्र में राष्ट्रीयता व देश प्रेम की भावना जागृत करना व उनमें राष्ट्र के प्रति प्रेम, राष्ट्र की सम्पत्ति से  प्रेम आदि उत्कृष्ट गुणों का संचय करना शिक्षक की भूमिका का एक भाग है ।


आज स्कूल कालेज में राजनीतिक क्रिया-कलाप प्रचुरता के साथ बढ़ रहें हैं जिससे कालेज में प्राय: असमाजिक गतिविधियां हो रहीं हैं ।बच्चे शिक्षा से ज्यादा राजनीतिक  क्रियाकलापों  पर ध्यान देते हैं , शिक्षा सत्र प्रभावित होता है और राजनीतिक दल अपने लाभ के लिये छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करते हैं । हमारे शिक्षकों को मूक दर्शक बनकर सब चुप चाप घटित होते देखना पड़ता है । मेरा यहां किंचित भी यह तात्पर्य नहीं है की राजनीति नहीं होनी चाहिये किन्तु यह अवश्य ध्यानाकर्षण की आवाश्यकता है की राजनीति से शिक्षा की कोई हानि न हो।


अत: शिक्षक का यह भी परम कर्तव्य है की वह अपने छात्रों को देश का यथार्थ राजनीतिक ज्ञान दें व उन्हें उसका वास्तविक स्वरूप दिखाये। राजनीति से देश की दिशा को कैसे निर्धारित कर सकते हैं यह छात्रों को भलीभांति अवगत कराया जाये।


राष्ट्र प्रेम की भावना छात्रों में जागृत करना नितांत आवश्यक है तभी छात्र राष्ट्र के प्रति अपनी भूमिका का यथार्थ आंकलन कर सकेंगे व एक अच्छे नागरिक की भांती राष्ट्र निर्माण में अपनी भूमिका का निर्वाह कर सकेंगे।


शिक्षा का एक उद्देश्य यह भी होना चाहिये की  वह छात्र को उसके भविष्य के लिये तैयार करे।छात्र की रुचि किस दिशा में है इसको दृष्टिगत रखते हुए शिक्षक छात्र को उसी के अनुसार दिशा निर्देशन देकर उसका भविष्य सवारनें मे भूमिका निभाएँ जिससे वह अपने परिवार का सही ढंग से भरण पोषण कर सके व राष्ट्र के प्रति भी अपनी भूमिका को यथार्थ रूप में मुखरित कर सके।


यदि छात्र को उसकी रुचि अनुसार ढाला नहींं जायेगा तो इसका परिणाम यह होगा की छात्र अंत: करण से अन्य विषय में रुचि नहीं लेगा तब वह न तो अपना हित कर सकता है न ही परिवार, समाज व राष्ट्र के प्रति अपने दायित्व का सफलता पूर्वक निर्वाह कर सकता है अस्तु शिक्षक का यह पुनीत कर्तव्य बन जाता है की वह छात्र को उसकी रुचि के अनुसार दिशा निर्देशन दे व छात्र की योग्यता, अन्तर्निहित गुणों  को पूर्णतयः विकसित करने का भरपूर प्रयास करे तभी शिक्षक का यथार्थ रूप में  कर्तव्य परिपूर्ण होता है।वर्तमान परिपेक्ष्य में यदि हम दृष्टिपात करें तो हमें दृष्टिगोचर होता है की अधिकांश शिक्षक अपना स्कूल का कार्य किसी प्रकार परिपूर्ण कर निवृत हो जाते हैं जो की एक तरह से बच्चों के जीवन को दैदीप्यमान करने का उचित रास्ता नहीं है ।यह तर्क देना कि कक्षा में छात्रों की संख्या अधिक होने के कारण वह समुचित रूप में सभी बच्चों पर ध्यान नहीं केंद्रित कर पाते यह संकुचित विचार धारा को दर्शाता है । यहां शिक्षकों को अपनी मानसिकता में किंचित परिवर्तन करने की नितांत आवश्यकता है तभी हमारे छात्रों का सही मार्गदर्शन व कल्याण हो सकेगा।


शिक्षकों को छात्रों के चारित्र निर्माण की दिशा में भी कार्य करने की आवश्यकता है और अधिकांश शिक्षक ऐसा करते भी हैं ।जब तक बच्चे का सही चारित्र निर्माण नहीं होगा वह राष्ट्र का उत्कृष्ट , मूल्यवान उत्तरदायी नागरिक नहीं बन सकता और सही चारित्र निर्माण का कार्य बस केवल एक शिक्षक की भलीभांति परिपूर्ण कर सकता है । स्कूल, कालेज वह स्थान है जो बच्चे के चारित्र निर्माण में अतीव विशाल भूमिका निर्वाह करता है । यदि शिक्षक द्वारा छात्र के चारित्र के निर्माण में भूमिका नहीं परिपूरित की गई तो छात्र गलत गतिविधियों में संलिप्त हो जायेगा व असामाजिक कार्यों में रुचि लेने लगेगा जो घर ,समाज व राष्ट्र के लिये हितकर नहीं होगा।


छात्र वह मिट्टी का बरतन है जिसे शिक्षक एक कुम्भार की भांती जैसा ढालेगा वैसा उसका स्वरूप अन्ततः मुखरित होगा।बरतन कितना सुंदर बनता है यह कुम्भार रूपी शिक्षक पर निर्भर करता है ।


महिलाओं का समाज में उचित सम्मान हो इन गुणों का संचय शिक्षक को छात्रों में कराना चाहिये तभी उनके हृदय में महिलाओं के प्रति सम्मान की भावनाएं जागृत होंगी। सह शिक्षा किंचित अनुचितनहीं है किन्तु छात्रों में छात्राओं के प्रति सम्मान का भाव अन्तर्निहित होना नितांत आवश्यक है जिससे कोई घृणित घटना न घटित हो सके।


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आज कोरोना काल में आनलाईन शिक्षा पर जोर दिया जा रहा है अधिकांश स्कूल, कालेज बंद हैं  तब शिक्षकों की भूमिका और बढ़ जाती है की वह आन लाईन शिक्षा के माध्यम से यह सुनिश्चित करें की छात्र समय का सही उपयोग कर सकें व अपनी पढ़ाई में ध्यान दे सके व अपना मार्ग सही ढंग से प्रशस्त कर सकें। आज यही समय है जब छात्र अपने लक्ष्य से भटक सकते हैं इसलिए आज उन्हें पहले से ज्यादा मार्गदर्शन की आवश्यकता है । आज के मोबाइल युग में शिक्षक यह सुनिश्चित करें की छात्र मोबाइल का सही उपयोग करें।स्कूल में प्रारंभिक शिक्षा काल में ही इलेक्ट्रानिक मीडिया के लाभ हानि बच्चों को अवगत कराना नितांत आवश्यक है । आज हजारो छात्र दिशा भ्रमित होकर इलेक्ट्रानिक मीडिया का दुरुपयोग कर रहें हैं क्योंकि उन्हें स्कूल में शिक्षकों द्वारा इस विषय में समुचित ज्ञान नहीं अर्जित कराया गया।


शिक्षकों का यह भी कर्तव्य है कि  वो छात्रों में ऐसे पावन सद्गुणों को अंकुरित करे जिससे बड़े होकर छात्र अपने परिवार के प्रति अपनी जिम्मेदारी को भलीभांति परिपूरित कर सकें व अपने माता पिता सहित अन्य स्व जनों का यथोचित सम्मान कर सकें।


आदर्श नागरिक के क्या गुण होते हैं और एक आदर्श नागरिक किस प्रकार अपने राष्ट्र के प्रति समर्पित होता है इन बिंदुओं की जानकारी का समावेश शिक्षक द्वारा स्कूल में किया जाना चाहिये।शिक्षा प्राप्ति के उपरांत यदि एक छात्र एक आदर्श नागरिक नहीं बन पाता तो कहीं न कहीं इसमे हमारे शिक्षकों की भूमिका व वर्तमान शिक्षा प्रणाली का दोष माना जायेगा।


इन्हीं सब तथ्यों को दृष्टिगत रखते हुए नई शिक्षा नीति सरकार ने लागू की है जो वर्तमान शिक्षा प्रणाली के दोषों को तिरोहित कर उसमे नव ऊर्जा संचित करने का काम करेगी।


शिक्षक फूलों का सिंचन करते

है उपवन चहकता शिक्षक से

शिक्षक राष्ट्र की आधार शिला

है स्वदेश महकता शिक्षक से




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