गुरु और शिष्य का सम्बन्ध - by Sapna Parihar
KB Writers
शिक्षक दिवस लेखन प्रतियोगिता
प्रतियोगिता संख्या - 2
प्रतिभागी का नाम - Sapna Parihar
गुरु-शिष्य परम्परा बहुत प्राचीन है। पूर्व काल से ही गुरुकुल में शिक्षा प्रदान की जाती थी। जब तक उनकी शिक्षा पूर्ण नहीं होती थी तब तक उन्हें आश्रम में ही रहना होता था।
आश्रम के अनुशासन ,नियमों ,वहाँ के सभी कार्यों का पालन करना होता था।
"गुरु और शिष्य का सम्बंध "बहुत ही पुराना है। गुरु केवल शिष्य को शिक्षा ही नहीं प्रदान करता था अपितु उसके सम्पूर्ण व्यक्त्वि के विकास का आधार स्त्रोत था।
गुरु की हर आज्ञा का पालन करना शिष्य का कर्तव्य था और गुरु का दायित्व था कि हर शिष्य को वह उत्कृष्ट शिक्षा प्रदान करे।
गुरु केवल गुरु न होकर "एक पिता," "एक मित्र","एक सहयोगी"," एक मार्गदर्शक" की भी भूमिका निभाता था। जीवन की प्रारम्भिक शिक्षा से लेकर मूल्य परक शिक्षा तक उनका योगदान सराहनीय रहा है। धैर्य, संयम, सहनशीलता, विनम्रता आदि गुण केवल शिक्षा से ही प्राप्त होते हैं। जीवन की हर परिस्थिति से निपटने की कला केवल शिक्षा से ही प्राप्त हो सकती है।
एक शिष्य के जीवन में गुरु का बहुत महत्व होता है।
माता-पिता के बाद अपने जीवन के महत्वपूर्ण वर्ष वह अपने गुरु के सानिध्य में बिताता है।
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गुरु, गुरु होता है, वह प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से हर शिष्य का प्रेरणा स्त्रोत होता है।
पूर्वकाल में ऐसे कई शिष्य हुए जिन्होंने अपने गुरु का मस्तक गर्व से ऊँचा कर दिया है।
राम ने भाइयों सहित गुरु वशिष्ठ से, कौरव और पांडवो ने गुरु द्रौणाचार्य से, कृष्ण ने गुरु सांदीपनि से, शिक्षा प्राप्त की और जीवन में आगे बढ़े।
वर्तमान परिवेश की अगर हम बात करें तो बहुत कुछ बदल गया है । शिक्षा का स्वरूप, शिक्षाप्रणाली, शिक्षा का स्तर आदि। अगर कुछ नही बदला है तो वह है एक गुरु और शिष्य का सम्बंध ।
आज भी वे दोनों एक -दूसरे के पूरक ही है। गुरु के बिना एक शिष्य पूर्ण नहीं है और शिष्य के बिना गुरु का कोई अस्तित्व नहीं है।
बच्चे की अगर प्रथम गुरु की बात करें तो वह उसकी माँ होती है जो उसे नैतिक मूल्यों का पाठ पढ़ाती है, अच्छे संस्कार देती है, व्यवहारिक ज्ञान देती है। माँ होकर भी एक गुरु का अहम दायित्व का निर्वाह करती है।
प्रारम्भिक शिक्षा में उसके गुरु बहुत ही स्नेह से उन्हें शिक्षा प्रदान करते हैं। अभिभावकों की तरह उनका ध्यान रखते हैं।
यहीं से एक गुरु और शिष्य का सम्बंध बनता है और आगे बढ़ते - बढ़ते बहुत मजबूत हो जाता है। बच्चा जब विद्यालय से घर आता है तब वह अपने विद्यालय के सारे कार्य -कलाप अपने माता-पिता को बताता है। कुछ बच्चों के गुरु मनपसन्द हो जाते है। वे उनके साथ हर बात सांझा करते है, उनके साथ खुश रहते है। यही हाल कुछ शिक्षकों का भी होता है। कक्षा में बहुत बच्चे होते हैं पर कुछ बच्चे शिक्षक के प्रिय होते है।
उनसे उनका सम्बन्ध बहुत गहरा हो जाता है।
मेरे बच्चों की अगर बात करूँ तो उनके शिक्षक दुनियां के सबसे अच्छे शिक्षक है। केजी से अब तक के शिक्षकों से उनका लगाव है , आज भी अगर उन्हें समय मिलता है तो वे अपने शिक्षकों से मिलने अवश्य जाते हैं । अगर उन्हें कोई मार्गदर्शन चाहिए तो वे अपने शिक्षकों के पास ही जाते है।
आज के परिवेश में गुरु शिष्य परम्परा का स्थान शिक्षक और छात्र ने लिया है। शिक्षा भी आधुनिक होनें के साथ-साथ व्यावसायिक भी हो गयी है , विद्यालय के साथ साथ कई शिक्षक निजी शिक्षण भी बच्चों को उप्लब्ध कराते हैं।
हाँ मैं मानती हूँ कि बहुत कुछ बदल गया है गुरु और शिष्य के बीच । सम्बन्धों में भी काफी बदलाव आया है, लेकिन आज भी गुरु और शिष्य का सम्बंध प्रेम और सौहार्द्र पूर्ण बना हुआ है।
आज के छात्र भले ही अपने कर्तव्य भूल जाये लेकिन एक शिक्षक अपने दायित्व कभी नहीं भूलता।
वह हमेशा अपने शिष्य का मार्गदर्शन करता है। उन्हें हर समय सही और गलत की पहचान कराता है। उनकी गलतियों को सुधारता है। उनके सर्वागींण विकास में अपना योगदान देता है। माता-पिता की तरह डांटता भी है, तो स्नेह भी करता है।वह अपने शिष्यों का अभिमान होता है।
मेरे जीवन के 18 वर्षीय शैक्षिक कार्यकाल में मेरा यह सौभाग्य रहा कि मुझे अपने छात्रों से बहुत स्नेह और सम्मान मिला । जो वाकई में मेरे लिए जीवन भर की पूँजी है। मैंने अपने कर्त्तव्यों का पालन करते हुए अनुशासन सहित बच्चों को शिक्षा प्रदान की ।
समय समय पर उनकी गलतियों पर उन्हें दंडित भी किया। और उनके अच्छे कार्यो के लिए पुरस्कृत भी किया। कई बार मुझे लोगों से इस वजह से उलाहने भी मिले कि छात्रों से इतनीं घनिष्ठता अच्छी नहीं है।
पर मेरा यह व्यक्तिगत विचार है कि हर बच्चा जिज्ञासु होता है। अपने माता पिता के बाद वह अपने जीवन का श्रेष्ठ समय विद्यालय में अपने शिक्षकों से साथ बिताता है। अपनी हर जिज्ञासा और समस्या को अपने शिक्षकों से सांझा करता है। तो एक शिक्षक होनें के नाते हमारा भी यह दायित्व बनता है कि हम अपने छात्रों को हर तरह से समझें और उनका मार्गदर्शन करें।
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आज भी कई बच्चे ऐसे है जो अपने माता पिता की जगह अपनें शिक्षकों की बात मानते हैं क्योंकि वे उनके आदर्श होते हैं। उनसे उनका आत्मीयता का भाव जुड़ा होता है।
यहाँ एक बात और भी है अन्य क्षेत्र की तरह एक शिक्षक उतना नही उठ पाता जिसका वो हकदार होता है पर वो अपने शिष्यों से जो मान-सम्मान और स्नेह पाता है वह किसी पुरस्कार से कम नहीं होता है।
सही मायने में अगर किसी शिक्षक का पढ़ाया हुआ छात्र किसी उच्च पद पर आसीन होता है तो उसका सर गर्व से ऊँचा हो जाता है और जब कोई शिष्य इसका श्रेय वह अपने परिवार और अपने शिक्षक को देता है तो वह अपनें शिक्षक को गौरान्वित करता है।
अगर कोई बच्चा अपनी केजी की शिक्षिका को याद रखता है तो यकीन मानिए हम बहुत भाग्यशाली हैं कि हम उनके शिक्षक हैं। हमारा सम्बन्ध बहुत मजबूत है।
गुरु और शिष्य का सम्बंध आज के परिवेश में भले ही कम हो जाये लेकिन उनका सम्बंध टूट नहीं सकता । आज भी एक शिष्य अपने गुरु के बिना अधूरा है और गुरु भी अपने शिष्य के बिना अपूर्ण।
bhout khub 👏
ReplyDeleteअतिसुन्दर शिक्षिका जी... 😁😊
ReplyDeleteBeutiful lines
ReplyDeleteबढ़िया आलेख।
ReplyDeleteBahut hi khubsurat likha h 😍
ReplyDelete"गुरु-शिष्य का सम्बन्ध है केवल शेष सभी रिश्ते-नाते है "
ReplyDeleteBahut khoob
ReplyDeleteReal fact.
ReplyDeleteBoht Bdhiya Lekh Mam😊😊
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