रिश्तों के भंवर - by Shraddha Parihar
ज़िंदगी में जितने आगे चलो उतने ही लोग हमसे जुडते चले जाते हैं , बचपन से लेकर वृद्ध होने तक हमसे कितने रिश्ते नाते बनते हैं ,बिगड़ते हैं।जीवन के विभिन्न पायदानों में कभी रिश्तों की परख करने पर हम पाते हैं कि हमने क्या पाया यदि सभी रिश्तों को कसौटी पर रखेंगे तो आप पाएंगे कि कौन कहाँ गलत है ?लेकिन क्या कभी हम सोचते हैं कि इन्ही रिश्तों को निभाने में हमसे क्या त्रुटि हुई ?नहीं ,क्योंकि हम हमेशा दूसरों कि गलतियां निकालने में अपने जीवन के कीमती पल गवां देते हैं । यदि रिश्तों से हम यह उम्मीद न रखें कि वे हमें कुछ देंगे , या बदले में हमें कुछ पाना है तो पूरा किस्सा ही खत्म मतलब हमारे मन कि उथल पुथल शांत हो जाएगी।
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जिन रिश्तों को हमने अपनी कसौटी पर रखा है आइये सोचे कि क्या यही परख हम अपने लिए भी रख पाएंगे ।आज सभी एकल परिवारों में रहन चाहते हैं जबकि हम भीड़भाड़ पाने के लिए ही मॉल ,होटल, या चौपाटी जाते हैं पार्टी रखते हैं ।परिवार के लोगों के साथ रहने से बेहतर हमें अपने मित्र या परिचितों की साथ रहना अधिक सुविधाजनक लगता है ।आज परिवार की परिभाषा ही "मैं" बनकर रह गयी है ।रिश्ते तभी कठिन हो जातें हैं जब हम द्दूसरों से इनकी तुलना करते हैं कि पड़ोसी के माता -पिता ने उन्हें इतना दिया या फलाना की बहु दहेज़ में इतना सामान लायी ।मतलब यदि दिया तो उन्हें रिश्तों की समझ है पर यही विचार अपने लिए करें तो हम अपने पीछे क्या वो ही सब छोड पा रहें हैं जो हमने अपने लिए उम्मीद रखी ।
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आइये हम अपने को एक पैरामीटर पर रखकर विचार करें कि जिन रिश्तों से हमें कड़वाहट है उसे बनाये रखने में हमने अपना कितना योगदान दिया शून्य से लेकर दस में हम खुद को कहाँ पाते हैं लेकिन यह विचार हमें अपने को सामने वाले के स्थान पर रखकर करना होगा । यही विचार रखकर कि हमें अपने रिश्तों को बनाना और संवारना है वरन अपने आने वाली पीढ़ियों को भी रिश्तों को संवारे कि समझ देनी है । जिससे उनकी व हमारी ज़िंदगी खुशहाल रहे क्योंकि बिना रिश्तों के तो ज़िंदगी सुखमय तो नहीं अपितु कठिन हो जाएगी । आइये मिलकर संकल्प लें और अपने आने वाली पीढ़ी को रिश्ते बनाने और निभाने की प्यारी सी सौगात देने का प्रयास करें ।
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