शिक्षक और शिक्षार्थी - by Anamika Vaish Aina
शिक्षक एक ऐसा इंसान जो निःस्वार्थ भाव से बालकों में ज्ञान और सद्गुणों का समावेश करते हैं जिन्हें हम कुम्हार के रूप में समझ सकते हैं और शिक्षार्थी वो मिट्टी है जिसको शिक्षक रूपी कुम्हार ज्ञान, संस्कार और सद्गुणों के साँचे मे ढालकर एक बेहतर इंसान का आकार देते हैं और दण्ड आदि से तपाकर उपयोगी पात्र बना देते हैं।
कहने का तात्पर्य यह है कि शिक्षक वो ईश्वर हैं जो ईश्वर द्वारा निर्मित कृति को संवारते और निखारते हैं, ज्ञान-भाव और समझ देते हैं। साथ ही शिक्षक अपने अनुभवों को शिक्षार्थियों से बाँट कर उन्हें भावी जीवन के लिए तैयार करते हैं। हुनर और व्यवसायिक क्षेत्र में भी शिक्षक अपने शिक्षार्थी को निपुण करने का पूरा प्रयास करते हैं।
शिक्षक और शिक्षार्थी दोनों एक दूसरे के प्रति पूर्णतः समर्पित रहते हैं। शिक्षक शिक्षण कार्य निपुणता से करते हैं और शिक्षार्थी शिक्षा ग्रहण करके अपना कर्तब्य निष्ठा से पूर्ण करते हैं। शिक्षक अपने अंदर के प्रत्येक सद्गुण और ज्ञान को धीरे-धीरे शिक्षार्थी को सौंप देते हैं अब निर्भर करता है कि शिक्षार्थी शिक्षक से कितना ग्रहण कर पाते हैं।
शिक्षक एक सोनार के समान हैं जो शिक्षार्थी रूपी स्वर्ण को पीट कर और तपाकर एक अद्भुत निखार और स्वरुप देते हैं।
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