वास्तविक गुरु - by Anu Pal
सीखना हमेशा उत्साहित करता रहा है मुझे। जब-जब कुछ नया सीखा, एक गहरी नींद से जागने की अनुभूति हुई और वो क्षण हमेशा के लिए मेरी स्मृतियों की किताब में दर्ज़ हो गया। मेरी ज़िंदगी के ये ही कुछ लम्हें हैं जो मुझे खुशी देते हैं।
मेरे जीवन से कोई कुछ सीख सकता है या नही मैं इस बात पर कभी विचार करना नही चाहती, लेकिन एक बात के लिए मैं हमेशा से निश्चित रही हूँ कि मुझे पूरी ज़िंदगी एक विद्यार्थी बने रहना है। ये ही एक ऐसी चीज़ है जो मुझमें जीवन के लिये उत्साह बनाये रखती है। लेकिन सीखने के लिए गुरु की आवश्यकता होती है। किसी महान इंसान ने कहा है कि 'बिना गुरु के ज्ञान संभव नही' और ये बात हमेशा मेरी विचार प्रक्रिया में शामिल रही है।
मगर विचारणीय तथ्य ये है क्या गुरु सिर्फ़ कोई व्यक्ति ही हो ये आवश्यक है। मेरे दिमाग मे कुछ दिन से ये बातें चल रही हैं। अगर मैं अपनी पूरी ज़िंदगी का विश्लेषण करूँ तो मैं पाती हूँ कि मैंने अपने जीवन में अपने शिक्षकों और पुस्तकों से ज्यादा अपने हालातों से सीखा है। जी हाँ, जीवन की सम- विषम परिस्थितियां मेरी वास्तविक शिक्षक रही हैं। और मैं मानती हूँ कि ज्यादातर लोग मेरी इस बात से इत्तेफ़ाक़ रखेंगे। हमारे व्यक्तित्व का निर्माण हमारे जीवन में आने वाली परिस्थितियों और उनसे जूझने के हमारे रवैये से होता है। हमारे हालात हमें सदा ही कुछ न कुछ सबक दे जाते हैं और उस सबक के आधार पर हम अपने जीवन को और बेहतर बनाते हैं।
विशेषकर कठिन परिस्थितियां हमें मजबूत बनाती हैं। इन परिस्थितियों से जूझने के बाद जो आत्मविश्वास हम प्राप्त करते हैं, वो हमारे आगे आने वाले जीवन में संजीवनी की तरह काम करता है।खासतौर पर, हमारी गलतियाँ, हमें लगने वाली ठोकरें हमें सबसे ज्यादा सिखाती हैं। मेरी आदत है मेरे साथ जो अच्छा हुआ है उसे मैं एक बार को भूल भी जाऊँ, मगर जो गलत हुआ है या फिर मुझसे कुछ गलत हुआ है उसे मैं हमेशा याद रखती हूँ और कुछ नया करते समय उन गलतियों से मिले सबक को हमेशा दिमाग में रखती हूँ।
इस शिक्षक दिवस मैं ईश्वर का धन्यवाद करना चाहूंगी कि उन्होंने मुझे जीवन में ऐसे हालातों में डाला जिनके कारण मैं वो बनी जो मैं आज हूँ और उम्मीद करती हूँ कि जीवन में बेहतरीन परिस्थितियां आएं और मैं उनसे सीखती रहूँ और ज़िंदगी की पाठशाला में सर्वोत्तम विद्यार्थी बनकर उभरूँ।
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