तस्वीर - by Anu Pal
मुझे याद है जब मैं चौथी कक्षा में थी तब पहली बार मेरी फ़ोटो खींची गई थी। उस वक़्त मैं नौ साल की थी। वो स्कूल के आठवी क्लास के बच्चों का फेयरवेल था औऱ याद के लिए सबके फ़ोटो खींचे जा रहे थे। तब ही मैंने ज़िद कर के फोटो खिंचवाया था। मुझे कोई पोज़ वोज देना तो आता नही था और कोई ढंग के कपड़ें भी नहीं पहने थे। ऊपर से बालों को गुलाब के फूल के डिज़ाइन वाले हेयर बैंड से नारद मुनि स्टाइल में बांधा था। कुल मिलाकर एक बेतरतीब लुक में मेरी पहली तस्वीर खींची गई थी।
लेकिन फिर भी वो तस्वीर मुझे बेहद पसंद है। इसलिए नही कि वो मेरी ज़िंदगी पहली तस्वीर थी, बल्कि उस तस्वीर में मेरी जो मुस्कुराहट है वो बेहद ख़ालिस है। उस वक्त मेरे चेहरे पर जो ख़ुशी है न वो बाद की किसी तस्वीर में नही दिखती। आज इस स्मार्ट फोन के जमाने में ऐसा कोई दिन नही बाकी जाता जब मैंने अपनी तस्वीर न खींची हो। पूरी तरह से बन ठन कर अलग अलग एंगल्स से पूरे कॉन्फिडेंस के साथ मैं अपनी तस्वीरें क्लिक करती हूँ, लेकिन उस तस्वीर जैसी मुस्कान, वो खुशी किसी तस्वीर में नही आ पाती।
अब वो बीता वक़्त, वो बेपरवाही, वो आत्मविश्वास सिर्फ़ तस्वीरों का ही हिस्सा बन कर रह गयी हैं। अब हम उतने शुद्ध नही रह गए हैं। गुजरते वक़्त के साथ दिखावा, लालसाएँ, अपेक्षाएं हमारी निराशाएं हमारी रूह के अंदर तक घुल गयी हैं और इस कदर घुल गयीं हैं कि अब वो हमारे चेहरे पर नज़र आने लगी हैं। हम लाख कोशिश करें अपने अंदर के इस मिलावटी पन को छुपाने की लेकिन ये हमारे चेहरे पर उतर ही आता है। एक बार को गंगा का शुद्धिकरण संभव है, मगर हमारे भीतर की इस मिलावट का शुद्धिकरण असंभव है। फिर भी कभी मन मार के उस पुरानी तस्वीर वाली आँखो की चमक को आज की किसी तस्वीर में ढूंढने की कोशिश करती हूँ, तो मुझे सिर्फ़ बेचैनियाँ ही आँखो से झांकती हुई मिलती हैं।
अपनी तस्वीर को देखते हुए अक्सर ये सोचती हूँ तस्वीरों वाला अविष्कार जिसने भी किया उसने अंजाने में ही इंसान को एक आईना दे दिया है। एक ऐसा आइना जिसके माध्यम से वो अपने अंदर की सुंदरता और शुद्धता का क्षय होता देख सकता है।
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