मेरी हिंदी ( हिन्दी दिवस विशेष ) - by Dr. Anurag Pandey
मेरे उर को अति प्रिय,
मेरी भाषा ये हिंदी है।
जैसे कृष्ण जन्म पर उफनाती
हरि चरणों की प्रेमी कालिंदी है।
माधुर्य पर इसके कलम मेरी,
हो जाती अति मतवाली है।
मेरे भाव उमड़ते स्वतः ही,
बन जाती रचना निराली है।
झंकृत करती ये रोम-रोम,
सब भाषाओं की जननी है।
ये दीप्तिमान ये आलौकिक,
जैसे पूर्णिमा की रजनी है।
शिव के मस्तक पर जैसे शशि,
वैसे शोभित हिंदी की बिंदी है।
हर विधा से सुसज्जित है भाषा ये
जैसे रण में अरि दमन को उतरी चंडी है।
इसके अनुरागी ही जाने,
हिंदी की कितनी असीम माया है।
"अनुराग" उतर इस उदधि मध्य,
कवित्त का मोती पाया है।
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