तुम फिर याद आओगे - by Hirdesh Verma 'Mahak'
टूटे बिखरे स्वप्नों की
लड़ियों में मन जब भी कोई
आशा का मोती खोजेगा
तुम फिर याद आओगे
वेदनाओं और पीड़ाओं के
प्रभंजन में बैचेन हृदय जब
कहीं सुकून को तड़पेगा
तुम फिर याद आओगे
दर्द के समंदर में जब खार ही
खार पाकर मेरा गला रुंध
जाएगा और मन पानी को
तरसेगा
तुम फिर याद आओगे
अपने कोमल हाथों से रिश्ते
बटोरते बटोरते जब मेरी
हथेलियों से रक्त बह जाएगा
तुम फिर याद आओगे
अपने पंखों के टुकड़े देख
देखकर जब आँखे बिलखेंगी
और मन उन्मुक्त गगन की
उड़ान चाहेगा
तुम फिर याद आओगे
विशाल मरुस्थल से जीवन में,
मैं जब एक हिमसीकर की
तलाश करुँगी और आर्त हृदय
अंदर ही अंदर सिसकेगा
तुम_ फिर_ याद _आओगे
यूँ तो हर दिन,हर पल, हर क्षण,
तुम मेरी साँसों की लय पर
चलते हो, पर जब भी कोई
दर्द की लय बढ़ाएगा और
वो दर्द तुम्हारा परिरंभण
चाहेगा,बार बार
तुम फिर याद आओगे
Very beautiful lines and choice of words😊
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