मेरी हिन्दी - by Hirdesh Verma 'Mahak'
गौरवशाली इतिहास समेटे अपने आँचल में,
शुद्ध,सरल वो इतनी बसी हुई है जन जन में।
आत्मा से जुड़ा है बंधन उसका, तभी तो-
इतनी गहरी समायी है हमारे अंतर्मन में।।
सबसे समृद्ध और विशाल भाषा का स्वरूप इसका,
संपन्नता से परिपूर्ण है शब्दों का भंडार इसका।
अरबी, फारसी और उर्दू ने भी शृंगार किया है-
भाषाओं में सबसे ऊँचा मान है इसका ।।
एहसासों की कोमल लड़ियाँ सहेजती है हिन्दी,
स्वप्नों की नवल कलियाँ चुनती है हमारी हिन्दी।
पीड़ा में संग आँसू बहाती और खुशी में मुस्कुराती है-
माँ के दुलार और पिता के स्नेह की तरह है हिन्दी ।।
दादी की कहानी और नानी के नुस्खें बताती है वो,
समझती है तेरे दिल का हाल मेरा भी जताती है वो-
संवेदनाओं, जज़्बातों और विचारों का लिबास पहना है उसने-
प्रेम, माधुर्य और अपनत्व का सुंदर राग सुनाती है वो।।
परिवर्तन की आँधी ने उसके सच्चे स्वरूप को विकृत कर डाला,
कहीं तोड़ा, कहीं मरोड़ा तरह-तरह से घायल कर डाला।
आधुनिक समय की हिन्दी अपना रूप देख सहमती है-
विदेशी भाषाओं के आगमन ने उसे अपनों में पराया कर डाला।।
ऊँचा कर दो सारे विश्व में हिंदी का मान,
भारत भूमि का गौरव है वो, है हिन्द की शान।
हर शहर, हर गली हर जुबां पर महकती रहे हिंदी-
अनुशासन से तराशें उसे हम बनाकर रखें अपनी जान।।
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