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शिक्षक दिवस लेखन प्रतियोगिता
प्रतियोगीता संख्या - 2
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प्रतिभागी का नाम - Krishna Gaur
राष्ट्र या देश उसको कहते हैं जहाँ मानव जन्म लेता है वहां के अन्न जल सब्जी खा कर जीवन जीता है और पढ़ कर आत्मनिर्भर बनता है। जिस प्रकार माँ बच्चे को पौष्टिक भोजन शुद्ध पानी एवम अपनत्व पूर्ण व्यवहार एवम तनावमुक्त वातावरण देकर उसका शारीरिक निर्माण करती है उसी प्रकार राष्ट्र के निर्माण की भी आवश्यकता होती है और वह देशभक्ति से ओतप्रोत राष्ट्र के लिए समर्पित नागरिकों के द्वारा ही सम्भव है। राष्ट निर्माण में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका शिक्षकों की होती है।
शिक्षक वो व्यक्ति होता है जो मनुष्य को किसी भी किस्म का ज्ञान देता है। एक माँ जो अपने बच्चे को पहली बार चलना सिखाती है वो भी शिक्षक है जितना कि किसी विश्वविद्यालय का प्रोफेसर। एक पंचर बनाना सीखने वाला, कपड़े सिलना सीखने वाला या एक कृषक जो अपने बच्चे को खेती का तरीका सिखाता है यह सब शिक्षक की श्रेणी में आते हैं। अतः जीवन मे हर व्यक्ति एक शिक्षक भी होता है। और यही सारे शिक्षक मिलकर राष्ट निर्माण में अपना योगदान देते हैं। कुछ शिक्षक ऐसे भी होते हैं जो अपने शिष्य के मन में श्रेष्ठ व स्वस्थ विचारों का रोपण करतें हैं वे शिक्षक सर्वोपरि होते हैं। क्योंकि ये अपने राष्ट को स्वस्थ मानसिकता वाले नागरिक प्रदान करते हैं। इस प्रकार के शिक्षक कोई भी हो सकते हैं जैसे एक गुरु, एक माँ या पेशेवर शिक्षक।
जब हम शिक्षकों की बात करते हैं तो किसी भी व्यक्ति की पहली शिक्षिका उसकी माँ होती है। माँ के गर्भ में आते ही बच्चे की शिक्षा प्रारम्भ हो जाती है। इसका एक बहुत अच्छा उदाहरण महाभारत में देखने को मिलता है। अभिमन्यु , अर्जुन और सुभद्रा के पुत्र थे। गर्भावस्था में ही अभिमन्यु को चक्रव्यूह तोड़ने की शिक्षा मिली। जब अर्जुन सुभद्रा को चक्रव्यूह से बाहर निकलने का तरीका बता रहे थे सुभद्रा को नींद आगयी सिर्फ इसीलिते अभिमन्यु चक्रव्यूह से बाहर निकलने की रणनीति नही सीख पाए और यही उनकी मृत्यु का कारण बना। इस प्रकार हम देखते हैं कि बचे माँ के गर्भ में आते ही सीखना प्रारम्भ कर देते हैं। तो इसप्रकार से शिशु के चरित्र निर्माण का प्रारंभ माँ के गर्भ से ही शुरू हो जाता है। इसीलिए गर्भवती स्त्रियों को श्रेष्ठ साहित्य पढ़ने की सलाह दी जाती है। इस प्रकार से राष्ट्र निर्माण में माताओं की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है। बच्चों में श्रेष्ठ संस्कार डालने की जिम्मेदारी भी माँ पर ही होती है।
पूर्व में तो अधिकांश महिलाएं घर पर ही रहती थी अतः बच्चों में संस्कार डालने का कार्य भली प्रकार से कर लेतीं थीं। संयुक्त परिवार होने की वजह से उन्हें परिवार के अन्य सदस्यों का सहयोग भी मिलता था। इसप्रकार बच्चों को दादा दादी, चाचा चाची, ताई ताऊ, नाना नानी ,बुआ, मौसी, भैया भाभी के लाड़ दुलार के साथ साथ कहानियों और गीतों के माध्यम से अच्छे संस्कार भी मिल जाते थे। इसप्रकार बचपन में ही बच्चों का चरित्र निर्माण भी हो जाता था।
ऐसे कई उदाहरण है समाज मे जहां एक सही पालन पोषण से एक ऐसे व्यक्तित्व का निर्माण हुआ जिसने राष्ट निर्माण में अपना अमूल्य योगदान दिया जैसे वीर शिवाजी, आइंस्टाइन, पूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय अबुल कलाम आजाद, इत्यादि। दुर्भाग्यवश आज स्थिति बदल गयी है। मानव सोंच में परिवर्तन आ गया है। जहां पहले चरित्र निर्माण में बल दिया जाता था आज धन कमाना ही सर्वोपरि उद्देश्य माना जा रहा है। इस कारण से समाज में अपराध बढ़ रहे हैं संयुक्त परिवार टूट रहे हैं। पति पत्नी दोनों ही धन अर्जित करने की लालसा में नौकरी या व्यवसाय करते हैं बच्चे नौकरों पर निर्भर हैं इसका दुष्परिणाम बच्चों को ही झेलना पड़ रहा है। माँ बाप के प्यार से वंचित बचपन कैसे सबल सशक्त और तृप्त होगा और फिर इस स्थिति में कैसे बड़े होकर राष्ट्र निर्माण में सहयोग कर पायेगा। इसलिए हमें अपनी सोंच को बदलना होगा। अगर माँ बाप की सोंच आर्थिक लाभ की होगी तो बच्चों में संतुष्टि कहाँ से आएगी। इसलिए मातृ शक्ति को सोचना होगा कि जीवन का सबसे महत्वपूर्ण कार्य है बच्चों का अच्छी तरह से पालन पोषण ताकि वह घर समाज राष्ट्र को एक सबल सशक्त आत्मविश्वास से भरपूर अच्छी सोंच वाला परिवार के लिए कर्तव्यनिष्ठ राष्ट के लिए समर्पित नागरिक बना सके।
माँ के पश्चात आते हैं वे शिक्षक जो विद्यालयों एवं विश्व विद्यालयों में शिक्षण कार्य करते हैं। माँ के द्वारा बनाई गई नीव पर कैसे एक मजबूत इमारत खड़ी करने का कार्य इन शिक्षकों का होता है। कक्षा समाज का ही एक लघु रूप हैं यहां पर भिन्न भिन्न पृष्ठभूमि जैसे अलग अलग जाति धर्मं एवं आर्थिक स्थिति के बच्चे आते हैं और एक ही शिक्षक से शिक्षा ग्रहण करते हैं। ये वो जगह है जहां कोई भेदभाव नही रह जाता है। हर छात्र को अपनी प्रतिभा दिखाने के समान अवसर प्राप्त होते हैं। और तो और छात्र जे जीवन का भी ये सबसे सुनहरा और यादगार समय होता है। यहां पर शिक्षक की जिम्मेदारी बहुत बढ़ जाती है। अब ये शिक्षक पर निर्भर करता है कि वो अपनी कक्षा को किस तरह से संचालित कर रहा है। सिर्फ कोर्स को किसी तरह पूरा कर रहा है , रटा रहा है या इस कार्य को गरिमा प्रदान करते हुए अपने छात्रों के व्यक्तित्व के सम्पूर्ण विकास का दायित्व निभा रहा है।
इसप्रकार जो शिक्षक छात्रों के चरित्र निर्माण का दायित्व भली प्रकार से निभाते हैं वे ही राष्ट्र निर्माण के एक मजबूत स्तम्भ हैं। हम देखते हैं कि राष्ट्र के विभिन्न पदों पर आसीन जैसे डॉक्टर, इंजीनियर, नेता, प्रशासनिक अधिकारी, अभिनेता इत्यादि सभी शिक्षक की छत्रछाया से ही होकर गुजरते हैं। अगर ये लोग अच्छे इंसान नहीं हैं इनमें मानव हित की कामना नही है तो इनकी तमाम योग्यताए व्यर्थ हैं। क्योंकि ये अपने ज्ञान का प्रयोग अपने सिर्फ धनार्जन के लिए करेंगे और राष्ट्र निर्माण तो दूर। यह राष्ट के पतन में सहभागी होंगे। आज की सारी समस्याओं की जड़ गलत शिक्षा ही है चाहे वह मातृशक्ति के द्वारा दी गई हो, पाठ्य क्रम के शिक्षकों या धर्म गुरुओं के द्वारा दी गयी हो। इस प्रकार हम देखते हैं कि शिक्षक ही राष्ट के उत्थान या पतन के कारक हैं।
अंत मे मेरी ईश्वर से यही प्रार्थना है कि वे शिक्षकों के हृदय में ज्ञान का दीप जलाये ताकि वो अपने ज्ञान की ज्योति से तमाम छात्रों के सोंच के दीप को ज्ञान के प्रकाश से आलोकित कर दे और सबके सहयोग से हमारा राष्ट्र जगमगा उठे और उसकी आभा पूरे विश्व को आलोकित कर दे। मुझे आशा ही नही पूर्ण विश्वास है कि हम कामयाब होंगें।
Writer- Krishna Gaur
बहुत सुंदर लेख
ReplyDeleteBahut sahi likha madam aapne
ReplyDeleteAwesome write-up , I really appreciate the way you assimilated the importance and influence of our teachers in all aspects of our life.
ReplyDeleteBilkul satya good impressive
ReplyDeleteबहुत सुंदर कृष्णा जी
ReplyDeleteyou are absolutely correct mam very well written and explained
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