हिन्दी दिवस पर कविता (व्यंग्य) - by Sapna Parihar


हम कक्षा पहली में पढ़ते थे
अनार,आम सीखते थे।
स्वर, व्यंजन और बारहखड़ी
बड़े मजे से पढ़ते थे।
जैसे-जैसे बड़े हुए
हुआ शिक्षा का ज्ञान
हिंदी भाषा प्रिय लगी
किया उसका सम्मान।
संज्ञा,सर्वनाम,सन्धि ,समास
दिन भर रटते रहते थे
हिंदी विषय में जान लगाते
फिर भी पूरे नम्बर न मिलते थे।
आज के बच्चे अब हमसे
ज्यादा  नम्बर पाते है
क्या पता हिंदी जैसे कठिन
विषय में
सौ में से सौ नम्बर कैसे आते हैं?
कम्प्यूटर के इस युग की
कुछ बात मुझे समझ नहीं आती है?
हमारे समय मे हिंदी की उत्तर पुस्तिका
जाँचते समय पूरी लाल हो जाती थी
आज के बच्चों की पुस्तिका में शिक्षक को कोई त्रुटि नजर नहीं आती है।
कहने को तो मातृभाषा है हिंदी
पर लिखना,पढ़ना,भूल रहे सब
अंग्रेजी इतनीं हावी हो गयी
हिंदी बोलना भूल रहे हैं।
अध्ययन तक ही सीमित हिंदी
पाठ्यक्रम से बाहर नहीं
पाठ पढ़ाये रटे-रटाये
ऐसे शिक्षकों की भी कमी नहीं।
अभिवादन के नाम पर
अंग्रेजी का बोलबाला है
हस्ताक्षर के नाम पर आज
हर कोई सिग्नेचर करने वाला है।
मेरे देश की ये कैसी विडंबना हो गयी है
हिंदी बोलने वालों की पहचान
गवाँर की श्रेणी में हो गयी है।
जिसे आज के समय मे अंग्रेजी नहीं आती
उसकी समाज मे पूछ परख नहीं की जाती।



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