ऐ वीरांगना ! - by Swati Saurabh
वक्त चाहे कितना भी बदल जाए लेकिन औरत को अपने हक के लिए पहले खुद को साबित ही करना पड़ा है। अभी हाल में 17 वर्षों से चल रही लंबी कानूनी लड़ाई के बाद महिलाओं को सेना में बराबरी का हक मिला है। इस कानूनी लड़ाई में विपक्ष की ओर से दलील में महिलाओं की शारीरिक,मानसिक क्षमताओं पर सवाल उठाए गए थे। जिसके जवाब में सुप्रीम कोर्ट ने कहा भी कि सरकार अपनी मानसिकता बदले। हम महिलाओं पर एहसान नहीं कर रहे , उन्हें उनका हक दे रहे हैं। इसी जीत की खुशी में और अपनी वीरांगनाओ को समर्पित है मेरी एक छोटी सी रचना ।
ऐ वीरांगना! तेरी
ना हो केवल कोमल छवि!
अब जवाब देने की,
आ गई है घड़ी।।
तेरे शारीरिक क्षमताओं पर,
जो उठा रहे सवाल हैं!
एक औरत के मां बनने का ,
दर्द का भी एहसास है?
जो लड़ जाती है मौत से,
ममता के प्यार में।
दिखा दे उनको आज तू,
कितनी ताकत है तेरे वार में!
ऐ वीरांगना! तेरी
ना हो केवल ममतामयी छवि
तेरे करुण भाव को,
समझ रहे कमजोर कड़ी।।
तेरे मानसिक क्षमताओं पर,
उठा रहे सवाल हैं!
दो कुलों के मान रखती,
जिम्मेदारियों का भी एहसास है?
बना लेती अपनी जगह जो,
दूसरों के परिवार में।
दिखा दो उनको आज तू,
कितनी ताकत है तेरे प्यार में?
अब देश की रक्षा का भी,
तेरे कंधे पर भार है।
नाज़ुक कली नहीं है तू,
उठानी अब औजार है।।
इंतिहा है हर घड़ी,
चुनौतियां भी हैं खड़ी।
बिछे हैं चारों ओर शूल,
तू बाग की है वो कली।।
जब भी देश पर विपदा पड़ी,
नारी -शक्ति तब हुई खड़ी।
दुर्गा, चंडी, लक्ष्मी ,काली बनी,
दुश्मनों को मुंह की खानी पड़ी।।
Writer:- Swati Saurabh
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