हिन्दी मेरे देश की आशा ( हिन्दी दिवस विशेष ) - by Vijay Kumar Tiwari "Vishu"
यह है जन-मन की अभिलाषा,
है हिन्दी मेरे देश की आशा ।
सहज सरल निर्मल है भाषा,
गढ़ती रहती नित नव परिभाषा।।
ये पटरानी बनकर रहती है,
विद्वज्जन को हर्षित करती है।
भण्डारण करती शब्दों का ,
पर्याय सभी का यह रखती है।।
कल-कल छल-छल गंगा जल सा,
अविरल रस छंदों में बहती है।
श्रृंगार, करूण,रौद्र ,शान्त आदि से,
सहज भाव में यह कहती है ।।
अन्वय, प्रतीप और भ्रान्तिमान संग,
उपमालंकार से यह सजती है ,
दल , गति, यति और मात्रा से,
हर राग-द्वेष के संग रहती है।।
रोला, दोहा , बरवै व सोरठा,
सवैया , मालिनी में सजती है।
मुक्तक , छंद और चौपाई व,
कुण्डलियाँ संग-संग बहती है।।
कैकेयी की घोर निराशा है,
उर्वशी की यह अभिलाषा है।
बूँद बनी टपकी नभ से यह,
हिन्दी मेरे देश की आशा है।।
जयशंकर की श्रद्धा बनकर,
गीत बनी आंसू पी-पीकर।
संध्या -सुन्दरी निराला की है
दिनकर की चाँद-कवि बनकर।।
मैने आहुति बनकर देखा,
इसको अज्ञेय की भाषा में।
गंगावतरण में धरा पर आयी,
हरिऔध की एक परिभाषा में।।
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