शिक्षा का महत्व - by Vikas Kumar


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शिक्षक दिवस लेखन प्रतियोगिता

प्रतियोगिता संख्या - 2

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प्रतिभागी का नाम - Vikas Kumar


नेल्सन मंडेला ने कहा है - "Education is the most powerful weapon you can use to change the world."
अर्थात् शिक्षा दुनिया को बदलने के लिए सबसे शक्तिशाली हथियार है। 
कहा गया है कि मनुष्य प्रकृति की सर्वश्रेष्ठ कृति है। आखिर वह क्या चीज है जिसने उसे इस लायक बनाया? उत्तर है- शिक्षा। आहार, निद्रा, भय एवं मैथुन मनुष्य तथा अन्य सभी जीवों में पाए जाते हैं। किंतु पढ़ना -लिखना सिर्फ मानव के वश की ही बात है। मानव अक्षर ज्ञान से आरंभ कर उच्च स्तर की शिक्षा प्राप्त करता है और इस अर्थ में वह प्रकृति के अन्य जीवों से अलग हो जाता है। 


शिक्षा बुद्धि के द्वार खोलती है। मानव सभ्यता ने इतनी तरक्की की है। कितने आविष्कार हुए, कितनी नयी खोज हुई -सभी शिक्षा प्राप्त कर हुई। सभ्यता के विकास की गाथा का विस्तार बिना शिक्षा के संभव नहीं थी। शिक्षा पाकर इंसान ने विज्ञान के क्षेत्र में कई नए अनुसंधान किए। आज मनुष्य चाँद तक की यात्रा कर चुका है और अंतरिक्ष  के कई रहस्य सामने ला रहा है।उसने दुर्गम स्थानों तक सड़क और पुल बनाया, कई रोगों के सफल इलाज की व्यवस्था की। आज आदमी इंटरनेट के सहारे घर बैठे पूरी दुनिया से जुड़ सकता है ,फोन से  सैकड़ों किलोमीटर दूर बैठे व्यक्ति से बात कर सकता है।आविष्कारों से जीवन सरल और सुगम हुआ है। आज परिवहन के लिए रेल , कार, वायुयान है । ये सभी शिक्षा के विकास के साथ ही संभव हुए। 


शिक्षा और आर्थिक विकास में गहरा संबंध है। गौर करके देख लीजिए जितने भी विकसित देश हैं वहाँ शिक्षा का स्तर बहुत उच्च है। दूसरी ओर अविकसित देशों में शिक्षा का स्तर निम्न रहता है। आधारसंरचना को दो वर्गों में विभाजित किया गया है- आर्थिक और सामाजिक। शिक्षा और स्वास्थ्य सामाजिक आधारसंरचना के अंतर्गत आते हैं। इस बात को लेकर सभी अर्थशास्त्री सहमत हैं कि देश के विकास के लिए शिक्षा का विकास अनिवार्य शर्त है। भारत के राज्यों का ही उदाहरण ले लीजिए। जिन राज्यों में शिक्षा की स्थिति अच्छी है वहाँ आर्थिक विकास भी हुआ है।इसके विपरीत जिन राज्यों में शिक्षा कम हैं वे अन्य क्षेत्रों में भी पीछे चल रहे हैं। 


शिक्षा का आध्यात्मिक एवं दर्शनिक पक्ष भी बड़ा मजबूत है। संस्कृत में एक श्लोक है-  " माता शत्रु, पिता वैरी येन बालो न पाठितः" अर्थात् वह माता शत्रु तथा पिता वैरी के समान है जो बालक को पढ़ाते नहीं है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है-  "न हि ज्ञान सदृशं पवित्रमिह विद्यते " अर्थात् ज्ञान के समान पवित्र करने वाला कुछ भी नहीं है। ज्ञान का सबसे बड़ा श्रोत शिक्षा ही है। गीता में श्रीकृष्ण ने ज्ञानयोग की चर्चा की है। शिक्षा से संस्कार आते हैं , विचार उन्नत बनते हैं। छात्र किताबों में सदाचार की कथाएँ, महापुरुषों की जीवनी, नीति के लेख पढ़ते हैं। यह सब उनके विचारों को परिमार्जित करता है। वे भविष्य में सभ्य- सुसंस्कृत नागरिक बनते हैं। वे देश एवं समाज के प्रति अपने कर्तव्यों को समझते हैं । शिक्षा सद्बुद्धि देती है, सत्य से असत्य की ओर ले जाती, अज्ञान के अंधकार में भटकते मानवों को मार्ग दिखाती है।जब लोग शिक्षा ग्रहण करते हैं तो महान साहित्यकारों को पढ़ते हैं। श्रेष्ठ साहित्य सोच के स्तर को उन्नत करता है, मानवीय संवेदना को विस्तार देता है। यह भी देखा गया है कि बड़े- बड़े चिंतक और विचारक गहन अध्येता भी रहे हैं। शिक्षा मनुष्य में दया, करुणा, सहिष्णुता जैसे गुणों में वृद्धि करती है। मानव मस्तिष्क असीम क्षमताओं का भंडार है। उन क्षमताओं का विकास करना पड़ता है। यह शिक्षा के माध्यम से होता है। 


शिक्षा का समाजिक महत्त्व भी बहुत अधिक है। यह सामाजिक कुप्रथाओं, अंधविश्वासों को दूर करने में सहायक है। जितने भी समाज सुधारक हुए हैं उन्होंने शिक्षा के प्रसार को बहुत महत्त्व दिया है। यह देखा गया है कि जिस समाज में शिक्षा का स्तर निम्न रहता है वहाँ वैज्ञानिक दृष्टिकोण का अभाव रहता है। लोग तार्किक होकर सोचने के बजाय रूढ़ियों से घिरे रहते हैं।ऐसे समाज प्रगतिशील नहीं होते। आजादी से पूर्व भारतीय समाज में शिक्षा की कमी हो गयी थी। इसका परिणाम था भारतीय समाज में बहुत  सी कुप्रथाएँ विकसित हो गयी थी। बाद में इन्हें दूर किया गया। यह तथ्य भी देखा गया है कि जिस समाज में शिक्षा जितनी अधिक रहती है वहाँ महिलाओं की स्थिति उतनी अच्छी रहती है।कुल मिलाकर ऐसा कहा जा सकता है कि शिक्षा सामाजिक जागरूकता लाती है। 


शिक्षा राजनीतिक दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है। लोकतंत्र की सफलता में शिक्षा का बड़ा योगदान है। शिक्षित जनता अपने अधिकार एवं कर्तव्यों के बेहतर तरीके से समझती है।शिक्षित लोगों को किसी दबाव या मिथ्या प्रचार से प्रभावित करना सरल नहीं है। इस प्रकारशिक्षा स्वस्थ जनमत के निर्माण में सहायक है। 


अब प्रश्न है कि जो शिक्षा इतनी उपयोगी है उसकी क्या परिभाषा दी जाए। शिक्षा का मतलब केवल किताबी ज्ञान या डिग्री की प्राप्ति नहीं समझा जाए। किताबी ज्ञान के साथ साथ व्यवहारिक ज्ञान भी बड़ा महत्त्व रखता है। शिक्षा केवल स्कूल कॉलेज में ही नहीं मिलती। पूरी प्रकृति शिक्षक के समान है। जीवन का प्रत्येक दिन एक अध्याय की तरह है। अनुभव हमें बहुत कुछ सिखा जाते हैं। कई बार यह देखा गया है कि कम पढ़े लिखे लोग भी अनुभवों से सत्य के निकट पहुँच जाते हैं, वहीं बहुत शिक्षित लोग भी जीवन में आदर्शों को अपना नहीं पाते हैं। उस समय बड़ा अचरज होता है जब कोई उच्च शिक्षित पदाधिकारी घोटाला में लिप्त जाता है। आखिर ऐसी शिक्षा किस काम की जो नैतिक मूल्यों का विकास नहीं कर सके?


वर्तमान समय में देखा जा रहा है कि शिक्षा बहुत धन केंद्रित हुई जा रही है। भौतिकवाद की आँधी में अध्यात्म की उपेक्षा हो रही है। शिक्षित लोग भी ईर्ष्या, द्वेष, वैमनस्य एवं क्षुद्र स्वार्थों से मुक्त नहीं है। क्या लाभ उस शिक्षा का जो मनुष्य को धन कमाने की मशीन तो बना दे मगर आदर्शों का विकास नहीं कर सके। इस तरह की शिक्षा विश्व में शांति नहीं ला सकती।राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी तो सदाचार को बहुत महत्त्व देते थे ।प्राचीन काल में जब गुरुकुल प्रथा थी तो व्यक्ति के आचार विचार को बहुत महत्त्व दिया जाता था।शिक्षा को मानवता के सर्वोत्तम गुणों को विकसित करने का माध्यम समझा जाता था। भारतीय ग्रंथों के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य है सर्वे भवन्तु सुखिनः अर्थात् सभी सुखी हो।जब शिक्षा पाकर मनुष्य 'वसुधैव कुटुंबकं ' की भावना से ओतप्रोत हो जाए तब समझिए कि उसने सही शिक्षा पाई है। 



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