फांसी को उसने पुकार लिया ( Bhagat Singh )
आजादी का वह दीवाना था,
खून की होली खेलता था,
अंग्रेजों से डरता ना था,
सिंह की तरह गरजता था।
झुकना उससे नहीं आता था,
वतन से उसे बहुत प्यार था,
सुखदेव और राजगुरु का,
भगत सिंह तो पक्का यार था।
सरदार था वह नौजवानों का,
देश का वो सच्चा बेटा था,
भारत को आजादी दिलाने,
उसने अंग्रेजों को ललकारा था।
चली है इंकलाब की हवा,
घर-घर से मिले यही दुआ,
अपना कर्तव्य तुम निभाते रहना,
सब का आशीर्वाद तुम्हारे साथ चला।
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घर उसका बना यह वतन,
निडर रहना उसका है मंत्र,
पराधीन भारत को स्वाधीन बनाना,
बच्चा- बच्चा हो जाए स्वतंत्र।
फांसी को उसने पुकार लिया,
भारत के जवानों का आह्वान किया,
मौत से वो यूं मिला गले,
जैसे दुल्हन ने सोलह श्रृंगार किया।
रंग बसंती था उसका चोला,
चेहरे से दिखता था भोला,
प्राणों की बलि वह दे गया,
अपने रक्त से सरजमीं को सींच गया।
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