चहुँओर सफलता पायेगा - by Vijay Kumar Tiwari "Vishu"
जब एड़ी से चोटी तक स्वेद कोई ले जाता है ,
पड़े हाथ के छालों से सफल बीज कोई बोता है,
कदम सफलता चुमे तो झलक खुशी का होता है,
संतुष्टि सफलता पाने का वो भाव अनोखा होता है।।
हरपल आँधी से लड़के, तम दूर दिया कर जाती है,
हरपल छोटे पग चलके ही चींटी पर्वत चढ़ जाती है,
अथक प्रयासों से मकड़ी धागों के जाल बनाती है,
सूक्ष्म परागों को चुनकर मधुमक्खी शहद बनाती है।।
धीरे धीरे घिसती रस्सी पत्थर को भी घिस देती है,
तपता स्वर्ण जो अग्नि में चमक अधिक हो जाती है,
जब तनन तार में बढ़ता तो आवाज मधुर हो जाती है,
जलता सूरज जब चलता तब किरण खड़ी मुस्काती है।।
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हाथों पर हाथ रखे कोई क्या कभी सफल हो पायेगा,
लक्ष्य से पहले थके नहीं क्या कभी विफल हो पायेगा,
धीरे-धीरे चलता कछुआ हर बार जीत ही जायेगा,
श्रम साधक ही जीवन में चहुँओर सफलता पायेगा।।
बिन उतरे गहरे सागर में कैसे मोती चुन पाओगे,
बिन सहे दुखों के मंजर को कैसे खुशियाँ ले पाओगे,
इस मेहनत के बल पर ही आकाश नापता है मानव,
हर बार पूर्णता पाने को दर-दर चलता रहता मानव।।
गिरते उठते उठते गिरते तुम हार न जाना राहों में,
संकल्प अटल रखो मन में भटक न जाना राहों में,
तिनका तिनका चुनकर ही घोसला बनाती हैं पक्षी,
पथरीले राहों पर चलकर तुम सुमन सजाना राहो में।।
बूढ़े बरगद से तुम पूछो कितनों के चोट सहा होगा,
उसके संघर्षी जीवन में कितनों ने कुचला होगा,
झुका नहीं नित डटा रहा जीवन को सफल बनाने में,
अपने संकल्पन पर आखिर वह भी खड़ा रहा होगा।।
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