तुम इतना क्यों बदल गए - Hirdesh Verma 'Mahak'


वो सुंदर सी लड़की,

जोर से खनकती थी, जिसकी हँसी।

चंचल था जिसका मन,

दर्पण भी जिसके रूप से जाता था दमक।


विद्युत सी आभा लिए तुम्हारे जीवन में आई थी। 

मोहित थे तुम जिसके रूप रंग पर, 

प्रकृति उसकी, तुमको हर तरह से भायी थी।


आज क्यों? उसका उस अंदाज में हँसना

खुशमिजाज होना, और बातें करना 

तुम्हारे मन को नहीं भाता, 

निश्चल प्रेम उसका तुम्हारे लिए ,

फिर भी कहते हो, 

उसे तुम्हारे सलीके में रहना नहीं आता।


स्वयं को तुम्हारे साँचे में तराशते तराशते 

खुद से ही, बिछड़ गई वो। 

ना तुम्हें पा सकी, और ना तुम्हें छोड़कर 

कहीं जा सकी वो।


उसके रुप यौवन और मासूमियत को, 

मैं कैसे कलंक कहूँ ? 

क्षार सा हुआ जीवन उसका, 

कैसे उसकी मनोदशा का बखान लिखूँ?


खामोशी की चादर में लिपटी वो, 

ना कुछ कहती ना कुछ सुनती है।  

ना दर्पण उसके रूप पर मरता है, 

ना वो उसकी बेरुखी का शिकवा करती है।


लेकर चले थे क्या तुम? इसी सफर पर उसे, 

या वक्त के संग तुम्हारी चाहत के मापदंड बदल गए। 

बदले थे,उसने तुम्हारे लिए जीवन के मायने

फिर, #तुम_इतना_क्यों_बदल_गए ?


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