फाल्गुन अनुराग - by Swati Saurabh
उर्वी ओढ़ धानी चुनर,
दुल्हन जैसी सज संवर।
लावण्यमयी कंचन धरा,
ज्यों फाल्गुन रंग चढ़ा।।
बौराए पलाश सुमन संग,
आम्र -मंजरी मदमस्त गंध।
पहने वीर केसरिया वसन,
छा गया फाल्गुन का रंग।।
प्रकृति की सुषमा शिखर पर,
नव कोंपल संग तरु निखर कर।
यों लहरा रही बसंती बयार,
पीले खेतों को रही निहार।।
हुई बावली कोयल आज,
सुना रही है फागुन फाग।
पुलकित होती पुष्प उन्माद,
छाया फाल्गुन उन्मत अनुराग।।
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