बालिका वधू - by Priyanka Pandey Tripathi
बाबा कुछ कहना चाहती हूं,
बस मै पढ़ना चाहती हूं।
मेरी अरज सुन लो,
मुझको पढ़ने दो।।
न कराओ मेरी शादी,
हो जाएगी बर्बादी।
अभी तो मै छोटी हूं,
न बनाओ बालिका वधू।।
क्या करेगी पढ़ लिखकर?
करना है तुझको चौका बर्तन।
फिर क्या फर्क पड़ता है?
शादी जल्दी करने पर।।
पढ़ लिखकर कुछ बनना चाहती हूं,
तुम्हारा नाम रोशन करना चाहती हूं।
सेवा करूंगी,चौका बर्तन भी करूंगी,
शिकायत का मौका न कभी दूंगी।।
तू लड़की है! दुसरे के घर जाना है,
तुझे पढ़ाने से क्या फायदा?
बेटे होते हैं घर का चिराग ,
बनते हैं! बुढ़ापे का सहारा ।।
मेरी फूटी थी किस्मत,
तेरी मां चलबसी तुझको पैदा कर।
तुझको व्याहुगा नही तो जमाना मारेगा ताना,
कि बेटी की कमाई खाने के लिए पढ़ा रहा।।
बिटिया को नही मंजूर, बालिका वधू बनना,
बिटिया ने छोड़ दिया बाबुल का घर अंगना।
बिटिया के चले जाने से बाबा को नही हुआ दुख,
बाबा हो गए आंख से अंधे लाचार।।
बाबा को हो रहा गलती का अहसास,
बेटी को रह-रह कर रहा याद।
बिटिया वापस आ गई बनकर डाक्टर,
बाबा न हो उदास,मैं करूंगी आंखो का इलाज।।
क्या बिटिया डाक्टर बन गई?
मुझे माफ़ कर दे , मैं हूं तेरा अपराधी।
बाबा एक शर्त पर करूंगी माफ,
बोल क्या है शर्त? मुझको है मंजूर।।
न करोगे बेटा बेटी में फर्क,
क्योंकि दोनो है घर का चिराग।
बेटी को न बनाओगे बालिका वधू,
दोनो को पढ़ाकर बनाओगे काबिल।।
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