'माँ' तेरी गुड़िया - Ruhi Singh
'माँ' तेरी गुड़िया
गिरते, सम्भलते,
कुछ बेपरवाह-सी चलते।
देख मैं कैसे खड़ी हो गई,
'माँ' तेरी गुड़िया...
तेरे बिना ही बड़ी हो गई !!
तेरे बिंदियों से खेलते,
कभी तेरी वो चूड़ियाँ पहनते।
उन पुरानी-सी तस्वीरों में तुझे ढूँढ़ते,
मुस्कुराहट में भी नमी हो गई ।
'माँ' तेरी गुड़िया...
तेरे बिना ही बड़ी हो गई !!
नहीं याद है मुझे तेरा जाना भी,
ना वो तेरा मुझे प्यार से सुलाना भी।
फिर भी तोड़ जाता है मुझे तेरा याद आना भी,
जैसे तेरे बाद मैं खाली सी हो गई।
'माँ' तेरी गुड़िया...
तेरे बिना ही बड़ी हो गई !!
रिश्तों में तेरा अक्श ढूँढ़ते,
हर साँस के साथ तुझे ख़ुद में भरते।
खामोशी में भी हमेशा तुझको ही सुनते,
मेरी हर कहानी में तेरी कमी हो गई।
'माँ' तेरी गुड़िया...
तेरे बिना बड़ी हो गई !!
- रूही सिंह
नैरोबी, केन्या
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