मैं अर्धागिनी तुम हो मेरे सजन - by Ruhi Singh
मैं माँ पापा की प्यारी चिड़िया
दादा जी की दुलारी गुड़िया
तीस अप्रैल सुहावन दिन था
जब मैं बनने जा रही थी दुल्हनीया ।
रस्मों रिवाजों संगीत बजते गया
गाँव और घर चारों ओर सजाया
धान और हल्दी की रस्म बनाया
सभी मिल के लगन मेरा घुमाया।
सांझ ढली बारात लगी द्वार थी
अंदर हीं अंदर मैं घबराई सी थी
नये से घर में जाना था मुझको
मोह पिया से मोह जोड़ चली थी।
लाल सुर्ख जोड़े में सजी थी मैं
रस्मों के संग पिया संग बन्धी मैं
रूही हुई अब अंकुर की रूह
अनदेखे से रंग में अब ढली मैं।
वर्षों की इस आंख मिचौली में
विचारों की अलग सी पहेली में
साथ रहे हमसफर साया बनकर
जीवन की हर अठखेलियों में।।
कहुँ और क्या कोई और शब्द नहीं
आपके बिना मेरे जीवन का अर्थ नहीं
आपके बिना मैं .मेरे बिना आप
हां कुछ नहीं हां कुछ नहीं।।।
साल पे साल गुजरते गये सनम
गहराई में खिलता रहा अपना संगम
माँगू मैं रब से बस तुम्हें हीं हर जनम ,
मैं अर्धागिनी तुम हो मेरे सजन।
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