हाँ ! मैं स्त्री हूँ ... - by Ruhi Singh



रिश्तों की हर नाम हूँ,
मैं तो गर्व और सम्मान हूँ।
खुद को कम क्यूँ आँकू,
मैं खुद में एक पहचान हूँ।।

हाँ ! मैं स्त्री हूँ ....

नई सी एक आशा मैं हूँ,
परिवार की परिभाषा मैं हूँ।
जीवन में उमंग भरने वाली,
प्रकृति स्वरूपा भी मैं हूँ।।

हाँ ! मैं स्त्री हूँ ....

ममता भरी एक क्यारी हूँ,
प्यार कि मैं फुलवारी हूँ।
चहकती हर आँगान की,
बाबा की मैं चिड़ियाँ दुलारी हूँ।।

हाँ ! मैं स्त्री हूँ ...

ससुराल की मान-मर्यादा हूँ,
एक नाजूक सा निर्मल धागा हूँ।
प्यार से सभी को सीचने वाली मैं,
वो निर्जल और निर्मल धारा भी हूँ।।

हाँ ! मैं स्त्री हूँ ...

ममता का संचार मैं हूँ ,
कहीं प्यार बेशुमार मैं हूँ।
हमेशा चारो तरफ खुशियाँ लुटाती,
बच्चों की पूरी संसार मैं हूँ।।

हाँ ! मैं स्त्री हूँ ...

कभी दुर्गा और कभी काली मैं हूँ,
हर जीव के पूर्णंता का आधार मैं हूँ।
पूजते है जिसे सारा संसार,
सृष्टि का वो आधार मैं ही हूँ।।

हाँ ! मैं स्त्री हूँ ...

त्योहारों की लाली मैं हूँ,
पूजा की वो पवित्र थाली भी मैं हूँ।
तुम्हारी हर पहचान मुझसे है,
लोक जगत कल्याणी मैं हूँ।।

हाँ ! मैं स्त्री हूँ ...



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