टूटता आशियाना - by Swati Saurabh
काटने से पहले क्या सोचा तुमने!
यहां किसी परिंदे का आशियाना होगा?
तिनके तिनके को संजोकर,
उसने अपना घर बनाया होगा?
होती होगी सुबह कभी,
पंछियों की चहचहाट से।
उषा की पहली किरण संग,
भरते होंगे स्वछंद उड़ान।
लौटते होगें अपने घोसलें में,
थक कर जब ढलती होगी शाम।
तोड़ने से पहले क्या सोचा तुमने!
अपने बिखरे आशियाने को देख,
टूटी डालियों संग टूट जाते होंगे,
उनके अरमान भी?
कर लेते सामना अगर,
होता कोई तूफान भी।
मगर कैसे करें सामना!
इन्सान रूपी दानवों का?
तोड़ कर आशियाने को,
पश्चाताप भी ना होता होगा?
अब ना पंछियों की कलरव होगी,
अब ना चहचहाट भरी सुबह होगी।
करेंगे करुण क्रंदन, मगर समझेगा कौन?
फिर से बनायेंगे अपना आशियाना होकर मौन।
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