ये बारिश की बूंदें - by Ruhi Singh


ये बारिश की बूंदें ,ये मौसम का जादू ,

ये मिट्टी की ख़ुश्बू , और दिल बेकाबू। 

इन बूंदों का गिरना, हवाओं में उड़ना,

ये कैसी खुमारी जो छाने लगी है।


ये सांसों का चलना, दिलों का धड़कना,

ये धड़कन भी कुछ आज गाने लगी है।

नशेमन, ये जाने मुझे क्या हुआ है

ये काले बादल सी बदली, सताने लगी हैं। 


ना जाने, क्यूँ दिल ये मचलने लगा है,

फूलों पे एक नई रंगत सी दिखी है।

ये धरती भी खिल के जरा मुस्कुराई,

बदलती रूतों में चहकने लगी है।।


मिले साथ उनका, पतझड़ हो या सावन,

ये बारिश भी मुझ पे बरसने लगी है।।

वो हवा सा तेरा मुझे छू के जाना, 

हवाओं में खुश्बू बिखरने लगी है। 


थी सोई हुई! मेरी ख़्वाहिशें जाग आई,

आँखो ने जो देखे थे ख़्वाब उनके।

थी खोई हुई मैं ...फिर ये ख़्वाब टूटा,

अचानक से बिजली कड़कने लगी है। 


बरस जा रे बादल ...गरजता बहुत है। 

हाँ, तू भी तो कितना बरसा था उस दिन।

तुम्हें याद नहीं रहता, आज-कल कुछ,

बहानें तुम बहुत बनाने लगे हो ...२


मिलों साथ हम-तुम कभी ख़्वाबों में फिर,

है ज़ालिम जमाना नज़र को गड़ाये।

हो बरसात उस दिन, रूत हो मिलन की,

रिम-झिम का हो मौसम ...कोई गीत गाये।।




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