ईश्वर का दूजा रूप माँ - by Hirdesh Verma 'Mahak'
नौ माह गर्भ में सींचा,
तूने रक्त से अपने,
आँचल में छुपा कर,
अमृत पान कराया है।
अंक से जब तूने,
जमीं पर उतारा हमें,
नन्हें कदमों को,
पग-पग गिरने से बचाया है।
बल, बुद्धि, साहस, जग में हो,
आलोकित हमारा,
निवालों में तूने, फिर
ऐसा पोषण मिलाया है।
करुणा, स्नेह, तूने,
पल-पल छलकाया माँ,
प्रथम गुरु बनकर हमें,
संसार से अवगत कराया है।
कैसे लिखूँ माँ, रूप तेरा,
कैसी तेरी काया का वरण करूँ,
लोरियाँ, थपकियाँ भी तेरी माँ,
शौर्य, पराक्रम भी, तूने सिखाया है।
सूर्य सी उज्ज्वल तेरी आभा,
चाँद सी शीतलता, तेरे अंतस में,
अनमोल कृति जगत में तू,
ईश्वर का दूजा रूप,जिसे हमने पाया है।
अवगुणों से बचाकर तूने,
संस्कारों से बाँधा है हमें,
त्यागकर अभिलाषाएँ अपनी,
तूने भाग्य हमारा बनाया है।
संदेह में, तूने नई राह खोली,
दुःख और असफलता में सँभाला,
जूझ-जूझ कर संघर्ष से,
विजयी, होने का मार्ग बताया है।
मैं तेरे जिगर का टुकड़ा माँ,
तूने सीने से लगाकर वजूद मेरा सँवारा,
सर्वस्व करूँ, मैं अर्पण चरणों में तेरे
तेरी परवरिश से ही जग में,
मैंने अपना नाम कमाया है।
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