माँ तुम्हारे बारे में क्या लिखूं? - by Swati Saurabh
आती मैं जब भी घर,
ढूंढती सिर्फ आपको नजर।
और ना जब दिखती आप,
हो जाता है मन निराश।
इस नीरवता को क्या लिखूं?
माँ इस एहसास को क्या लिखूं?
आपके आंचल में समाकर,
खत्म हो जाता सारा डर।
मिलती है जो अजीब सी राहत,
दूर हो जाती सारी घबराहट।
इस अपनत्व को क्या लिखूं?
माँ तुम्हारी परिभाषा क्या लिखूं?
देखती जब आप अंबक भरकर,
निकल जाते दृगंब छलककर,।
छिपा नहीं पाती जज्बात,
कैसे समझ लेती हो आप।
इस प्रतीति को क्या लिखूं?
माँ इस अधूरेपन को क्या लिखूं?
पसंद नापसंद का रखती ख्याल,
डांट में भी आपके झलकता प्यार।
रोक टोक कर करती परवाह,
माफ़ कर तुरंत देती मुस्कुरा।
तुम्हारी इस उद्विग्नता को क्या लिखूं?
माँ तुम्हारे बारे में क्या लिखूं?
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