बारीश - by Priya Gupta "Pihu"


बारीश


यूं काली घटा बन बारिश हैं लाई ।

दामिनी दमके घनकघटा हैं छाई।

स्वागत को आतुर हुई हैं पूरवाई।

मोती सी बूंदों की हैं बौछारें आई।।


इन्द्र धनुष की भी छटा है निराली,

अम्बर पटल देखो छाई हैं लाली।

जन मानस में अब छाई खुशहाली,

वसुधा पर हैं देखो छाई हरियाली।।


धरा इन बूंदों की राह तक रही हो,

अमृतजल का स्वाद चख रही हों।

पावस नीर पी यह ना थक रही हो,

प्यासी अवनी पी पी छक रही हों।।


बून्दों में हो जैसे इक नशा सुहाना,

भीगे तन मन गाए मल्हार तराना।

मिट्टी की सौंधी खुश्बु क्या कहना,

खेत खलिहान और तर है अंगना।।


भीगे यौवन और तन मन हरषाए,

झूमे हैं सारंग सुन्दर नाच दिखाएं।

"प्रिया"पिहू पिहू कर कोयल गाए,

झूम के बदरा अमृत रस बरसाए।।

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