मैं भारत हूँ - by Pramod Thakur
मैं भारत हूँ
मैंने हर मंज़र देखा है
मैं भारत हूँ
मैंने समंदर भी सूखते देखा है।
गुलामी की जंज़ीरों को तोड़,
आज़ादी का सूरज निकलते देखा है।
जो शहीद हुए आज़ादी के रण में,
माँ को खून के आँसू पीते देखा है।
मैं भारत हूँ
मैंने हर मंज़र देखा है।
वो कहते है हम पड़ोसी है,
पड़ोसी का फर्ज़ निभाते देखा है।
सरहद की फ़िज़ाओं में,
गंध बारूद की फैलाते देखा है।
मैं भारत हूँ
मैंने हर मंज़र देखा है।
जब होते है साम्प्रदायिक दंगे,
हर धर्म का खून बहते देखा है।
हो किसी भी कौम का,
एक ही मिट्टी में दफन होते देखा है।
मैं भारत हूँ
मैंने हर मंज़र देखा है।
ग़मगीन है माहौल फ़िज़ा का,
सांसों की डोर टूटते देख रहा।
भाषणों से गला घोंटती हवा,
नाम के लिये दवा बटती देख रहा
मैं भारत हूँ
मैं ये भी मंज़र देख रहा
आज मैं समंदर को सूखते देख रहा।
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