इन अँधेरो ने ग़म सजाएं हैं - by Babita Agarwal Kanwal


इन अँधेरो ने ग़म सजाएं हैं


इन अँधेरो ने ग़म सजाएं हैं।

दीप अश्कों ने सब जलाएं हैं।


हर क़दम इम्तेहां से गुज़रा हैं,

हाथ मंजिल ने कब बढ़ाएं हैं।


नाते-रिश्तों का क्या भरोसा है,

सब तो दौलत के बिन पराएं हैं।


सब लगें मेरा मेरा कहने में,

साथ क्या लें जा संग में पाएं हैं।


आने-जाने का क्रम चलता है,

ज़िंदगी भी उधार लाएं हैं।


मुफलिसी में हो या अमीरी में,

मौत की बाहों में समाएं हैं।


ऐ कँवल जिंदादिल से जी लेना,

सब तो मेहमान बनकर आएं हैं।




No comments

Powered by Blogger.