कैसे भूलूं उसका मुड़ कर देखना - by Madhu Pradhan Madhur


कैसे भूलूं उसका मुड़ कर देखना


खो जाती हूं जब मैं

अतीत की अंतल गहराइयों में

याद उसकी आती है बहुत

पश्चाताप का समुंदर

उमड़ पड़ता है

उसके नयनों की भाषा

थोड़ी अब समझ में आती है

उसका पीछे मुड़कर देखना

आंखों में अनकहे शब्दों का

सहज उतरना

कैसे भूलूं उसका इस तरह 

मुड़ मुड़ कर देखना

प्रश्नचिन्हत बातों को कुरेदना 

व्यसन बन गया है मेरा

भूल सकती नहीं उसका 

मासूम सा चेहरा

अश्रुकण लिए आंखों में

कहीं दूर मुझसे चले गये

मुझे मुड़कर वह ओझल

होने तक देखती ही रही 

कुछ कह न सकी

भावनाओं का बोझ लिए

कौंधकर मुझे चली गई।

किस तरह भूलूं मैं उसका

इस तरह मुड़ मुड़ कर देखना।।


मधु प्रधान मधुर

मुम्बई, महाराष्ट्र

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