माँ - by Satyajeet Purkayastha
माँ
नहीं कहती है कुछ ....
सहती सब कुछ ......
हाथो में हो चाहे छाले
दिल में हो चाहे शोले ,
चूल्हे फूंककर पेट भरे
गुल्लक के पैसों से
कभी न रूठने दिया
मां की ममता की
छाव में पुष्प खिला ।
समय के साथ सब कुछ
दिया खिलौने बहु और
बटवारा ।
सबकुछ पाकर क्यों
कर लेते किनारा ।
सबके साथ भी तनहा
दादी पोते पोतियों के
साथ रहती खुश ....
हजार झंझटों के बाद
नहीं कहती है कुछ ....
सहती है सब कुछ...
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