मन - by Hemant Kumar Yogi


मन


मन चंचल होता है मन निर्मल होता है।

मन स्वच्छ-आस्वच्छ और ऐच्छिक होता है।

कोई मन ही मन रोता और कोई मन ही मन मुस्कुराता है।

कोई अपने गम को मन में छुपाकर रखता है।

किसी ने मन में सोचा किसी ने करके दिखाया है।

कोई मन में इमारत बनाता तो कोई मन की हकीकत को  ढाता है।

कोई किसी से मन ही मन जलता तो कोई प्रसन्नता के बोल देता है।

किसी का मन छल कपट से अपूर्ण है तो किसी का दुआओं से पूर्ण है।

किसी ने मन लगाया मात् पित् ईश्वर में तो किसी ने छल कपट और चोरी में।

सभी मनुष्य मन के पंछी हैं पर उड़ते है विभिन्न दिशाओं में।

मन को ना कोई बस में करता यह तो उसको एक पल में हरता।

जो अपने मन पर पाता है नियंत्रण वह हर जगह पाता है आमंत्रण।

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