आज की नारी - by Sanju Verma


आज की नारी


मैं नहीं कहती करो मुझे महिमामंडित।

मत मानो मुझे देवी

रखो सिर्फ मेरा स्वाभिमान अखंडित।

बदल रही हूं निकल आई हूं

विवशता की चादर से। 

अब नहीं मिलेंगे मेरे अश्रु चिह्न

निकस आई हूं पीड़ा के बादर से

अब नहीं रही मैं अबला

घिसी पिटी कोई कहानी नहीं 

आंचल में दूध तो है पर 

आंखों में पानी नहीं।

देश दुनिया की खबर रखती हूं 

चूल्हे पर भी नजर रखती हूं।

स्वेटर की सलाई पर ही नहीं

लैपटॉप पर भी थिरकती हूँ 

सपनों को नए पंख देती हूँ

नित नई उड़ान भरती हूं।  


कोख में सृजन का लिए भार 

करती हूं हर बाजी स्वीकार

प्रकृति की अनुपम देन हूं

हाँ करती हूं नित नए सिंगार 

रखे जो बुरी नजर मुझ पर

दुर्गा बन कर दूं उसका संहार

हां मैं आज की नारी हूं 

बस तेरे प्यार पर वारी हूं।

तेरे प्यार पर वारी हूँ।



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