नदी के तट - by Shweta Sharma
नदी के तट
एक दुसरे के सम्मुख मीलों
चलते आ रहे नदी के तट
कभी परिचित और कभी अनजान भी
घाटों को स्पर्श कर संदेश बन
आती जाती नौकाओं
नित्य असंख्य पदतलो के
माध्यम से रेतकणो के
आदान-प्रदान और
घटनाक्रमों के साक्षी वे दोनों
कुछ बातें और सुख-दुख
साझा करना चाहते थे
नदी का सकरा हो जाना नहीं
एक दिन पहले तट ने पूछा
क्या यहां एक पुल बनाया जा सकता है?
दुसरे ने कहा हां यहां चित्रों और कविताओं से
एक पुल बनाया जा सकता है।
पहले ने अपना झोला खंगालकर देखा और कहा
मेरे पास न रंग है न शब्द
दुसरे ने कहा और एक बार देखो
क्या उसमें कोरा कागज़ है
उसने झोले में हाथ डाला
और कहा हां।
फिर दोनों ने एक स्वर में कहा
तो यह तय रहा यहां एक पुल बनाया जायेगा।
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